बकरों के ‘खून’ से नहाया छोटा भाई, US में रची गई थी ‘बउआ’ की हत्या की साजिश! क्यों कांप उठी थीं इंदिरा गांधी

lalit narayan mishra murder mystery: ललित नारायण मिश्रा का बेसब्री से आयोजन स्थल पर इंतजार किया जा रहा था, जहां मौत भी ताक में थी. 50 साल भी उनकी हत्या की गुत्थी अनसुलझी है.

Published by JP Yadav

lalit narayan mishra murder conspiracy : 1970 के दशक में केंद्रीय मंत्री ललित नारायण मिश्रा भारतीय राजनीति में वह शख्सियत थे, जिनकी धमक बिहार से दिल्ली तक थी. तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से करीबी ने उनका कद और भी बढ़ा दिया था. बिना उनकी अनुमति के बिहार में कोई भी कांग्रेसी नेता किसी राजनीतिक आयोजन की सोच भी नहीं सकता था. 3 जनवरी, 1975 को उनकी हत्या ने देशभर को हिला दिया. इंदिरा गांधी सरकार तक हिल गई. दरअसल, स्वतंत्र भारत में पहली बार किसी केंद्रीय मंत्री की हत्या हुई थी, जिसकी कोई कल्पना भी नहीं कर सकता था. मौत भले ही ललित नारायण मिश्रा की 3 जनवरी को हुई, लेकिन बम उन पर एक दिन पहले यानी 2 जनवरी, 1975 को फेंका गया था. हमला समस्तीपुर रेलवे स्टेशन का प्लेटफॉर्म नंबर तीन (घटना के समय ये दो नंबर प्लेटफॉर्म था) हुआ, जहां पर उनकी आज भी समाधि है.  संतोषानंद, सुदेवानंद, गोपालजी और अधिवक्ता रंजन द्विवेदी उनकी हत्या में आजीवन उम्र की सजा भुगत रहे हैं. यह अलग बात है कि वह जमानत पर हैं. इस स्टोरी में हम बात करेंगे ललित नारायण मिश्रा की राजनीति, परिवार और हत्या की साजिश के बारे में. 

केंद्रीय मंत्री पर बम से किया गया था हमला ( Union Minister attacked with a bomb)

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और तत्कालीन कैबिनेट मंत्री ललित नारायण मिश्रा का 2 जनवरी, 1975 को समस्तीपुर (बिहार) में एक कार्यक्रम तय था. आयोजन की पूरी तैयारी हो चुकी थी. मौसम खराब था और दिल्ली से पटना केंद्रीय मंत्री को आना था. पायलट ने खराब मौसम का हवाला देते हुए समारोह स्थल पर नहीं जाने की सलाह दी, क्योंकि धुंध भी बहुत ज्यादा थी. पायलट के अनुरोध पर ललित नारायण मिश्रा ने तर्क दिया कि समारोह स्थल पर जनता मेरा इंतजार कर रही है. मैं वहां जरूर जाऊंगा. मुझे ऐसे आयोजन में हर हाल में शामिल होना है. समारोह स्थल पर उनका बेसब्री से इंतजार हो रहा था. समस्तीपुर रेलवे स्टेशन का प्लेटफॉर्म नंबर तीन (घटना के समय ये दो नंबर प्लेटफॉर्म था) पर पहुंचे तो अधिकारियों के अलावा प्रशंसकों की भी भीड़ जमा थी. वह यहां पर ब्राडगेज लाइन का उद्घाटन के लिए आए थे. इस बीच 52 वर्षीय ललित नारायण मिश्रा और उनके साथ मंच पर मौजूद लोगों पर बम से हमला हो गया. इस मौके पर मंच पर ललित नारायण मिश्रा के साथ कांग्रेस के कुछ लोग थे, जिनमें छोटे भाई जगन्नाथ मिश्रा भी थे. ललित नारायण मिश्रा ब्राडगेज लाइन का उद्घाटन करने के बाद भाषण देकर मंच से उतरने लगे, इस बीच उन पर बम से हमला किया गया. हथगोले से किए गए हमले में ललित नारायण मिश्रा और जगन्नाथ मिश्रा समेत 11 लोग बुरी तरह से घायल हुए. 18 लोगों को तो गंभीर चोट आई. यह हमला 2 जनवरी, 1975 को हुआ था. बुरी तरह से घायल वरिष्ठ कैबिनेट मंत्री ललित नारायण मिश्रा ने 3 जनवरी, 1975 को बिहार के अस्पताल में ही दम तोड़ दिया. 

इलाज में देरी से गई ललित नारायण मिश्रा की जान (Lalit Narayan Mishra lost his life due to delay in treatment)

ललित नारायण मिश्रा का दुर्भाग्य ही था कि उस दिन उन्हें समय पर इलाज नहीं मिल सका और उनकी जान चली गई. बम फेंके जाने के बाद उन्हें अस्पताल ले जाया जाने लगा. दरभंगा मेडिकल कॉलेज समस्तीपुर रेलवे स्टेशन से महज 40 किलोमीटर दूर है. इसे ही DMCH कहा जाता है.  यहां पर 30 मिनट में पहुंचा जा सकता था, लेकिन इस दिन DMCH में डॉक्टरों की हड़ताल थी. ऐसे में यहां नहीं ले जाने का फैसला हुआ. इसमें संशय यह है कि क्या इतने बड़े नेता का इलाज डॉक्टर नहीं करते? यहां पर ले जाया जाता तो डॉक्टर शायद मरीज की जान बचाने के लिए इलाज पर सहमत हो जाते. इस पर तब मीडिया ने सवाल भी उठाया था. बम हमले में घायल हुए कई लोगों को इलाज के लिए डॉक्टर नवाब के पास दरभंगा भेज दिया गया, जबकि बुरी तरह घायल ललित नारायण मिश्रा को दूर पटना भेजने का फैसला हुआ, जो करीब 150 किलोमीटर के आसपास था. यहीं पर चूक हो गई. आननफानन में ललित नारायण मिश्रा और जगन्ननाथ मिश्रा के साथ कुछ अन्य घायलों को एक ट्रेन के जरिये पटना के लिए रवाना किया गया. ट्रेन से करीब 132 किलोमीटर की दूरी थी, जहां पहुंचने में 6 घंटे का समय लगता है. ताज्जुब है कि घायल ललित नारायण मिश्रा को लेकर रवाना हुई ट्रेन 14 घंटे से ज्यादा वक्त लगाकर दानापुर पहुंची. यहां इलाज के दौरान उनका निधन हो गया. इतनी देर में बहुत खून बह चुका था. 

ललित नारायण मिश्रा को भाई जगन्नाथ मिश्रा की थी फिक्र (Lalit Narayan Mishra was worried about his brother Jagannath Mishra)

मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो बम हमले में बुरी तरह से घायल ललित नारायण मिश्रा को अपने छोटे भाई जगन्नाथ मिश्रा की अधिक फिक्र थी. अस्पताल ले जाने के दौरान रास्ते में ललित नारायण मिश्रा बार-बार लोगों से कह रहे थे कि जगन्नाथ को देखो, उसकी हालत खराब लग रही है बहुत. यही ललित नारायण मिश्रा के छोटे भाई जगन्नाथ मिश्रा आगे चलकर बिहार के मुख्यमंत्री भी बने. एक बार नहीं बल्कि बिहार के तीन-तीन बार सीएम बने. घटना वाले दिन जगन्नाथ के दोनों पैरों में बम के छर्रे लगे थे. काफी खून बह रहा था. वहीं, हत्या की जांच पर ललित नारायण मिश्रा का परिवार सवाल उठाता रहा है. वह आज भी ये मानता है कि इस हत्या के पीछे कोई बड़ी साजिश थी, जो अब तक छिपी हुई है. पहले जांच सीआईडी को फिर केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (CBI) को सौंपी गई. वहीं, जगन्नाथ मिश्रा के बेटे नीतीश मिश्रा का आज भी दावा है कि हत्या के पीछे बहुत बड़ी साजिश थी. नीतीश हादसे के दौरान सिर्फ 2 साल के थे, लेकिन जैसे-जैसे बड़े हुए इसके बारे में जानकारी लगती रही. 

हत्या में आया था आनंदमार्गियों का नाम (The name of Anand Margis came up in the murder)

ललित नारायण मिश्रा की हत्या में कई नाम सामने आए. 1970 के दशक में पीआर सरकार का नाम दो बड़े मामलों में सुनने को मिला था, जिसकी खूब चर्चा भी हुई. ललित नारायण मर्डर केस और एयर इंडिया के विमान एंपरर अशोका के क्रैश में भी आनंदमार्गियों का नाम आया. कहा गया कि पीआर सरकार को छुड़वाने के लिए यह प्लेन क्रैश करवाया गया. संतोषानंद, सुदेवानंद, गोपालजी और अधिवक्ता रंजन द्विवेदी इस हत्याकांड में सजा भुगत रहे हैं, लेकिन ललित नारायण मिश्रा का परिवार जांच से कभी संतुष्ट नहीं हुआ. इसकी फिर सीबीआई से जांच कराने की मांग करता रहा है.  ललित नारायण मिश्रा पोते वैभव मिश्र ने हाई कोर्ट में याचिका भी दी. वैभव का कहना है कि इस हत्या से आनंदमार्गियों का कोई लेना-देना नहीं है. दावा तो यहां तक किया गया कि सीबीआई ने पहले जिन चार आनंदमार्गियों को पकड़ा था उनमें से दो- अरुण कुमार ठाकुर और अरुण कुमार मिश्र के खिलाफ बाद में हत्या के आरोप हटा दिए गए थे. एक दौर ऐसा भी आया जब पटना पुलिस ने पीआर सरकार अरेस्ट किया. आरोप लगा कि पीआर सरकार ने ‘आनंद प्रचारक संघ’ को छोड़कर गए लोगों की हत्या की साजिश रची. साल 1973 में उसके एक समर्थक ने पटना में आत्मदाह कर लिया और एक ने दिल्ली में आत्मदाह कर लिया. यह भी चौंकाने वाली घटना थी. ऐसा कहा जाता है कि पीआर सरकार ने जेल के अंदर से संदेश भिजवाया था. जब तक सरकार मुझे रिहा न करे, तुम लोग चैन न लेना. बाद में यानी 1975 में ललित नारायण मिश्रा की हत्या के साथ पीआर सरकार और आनंदमार्गियों का नाम जुड़ गया.  हैरत की बात यह है कि ललित नारायण मिश्रा का परिवार लगातार इसमें आनंदमार्गियों का हाथ होने से इन्कार करता रहा. 

सभा करके दी गई थी हत्या की जिम्मेदारी (responsibility for murder of Lalit Narayan taken in a meeting)

CBI की चार्जशीट के मुताबिक, त्रिमोहन गांव में ललित नारायण मिश्रा समेत अन्य लोगों की हत्या की जिम्मेदारी तय की गई. सभा में जिम्मेदारियां भी तय हुईं कि कौन-किसकी हत्या करेगा. इसमें तय हुआ कि विनयानंद उर्फ जगदीश माधवानंद दुश्मन नंबर-1 का मर्डर करेगा, लेकिन यह नाम ललित नारायण मिश्रा का नहीं था. इसके बाद विश्वेश्वरानंद उर्फ विजय बिहार के मुख्यमंत्री अब्दुल गफूर की हत्या करेगा. पूरी साजिश के तहत राम आश्रय प्रसाद नाम के एक शख्स ने पांच बमों का इंतजाम किया. विनयानंद और संतोषानंद ने हथियार जुटाए थे. ये सारे हथियार गोपाल जी नाम के एक शख्स को दिए गए थे. इसके बाद ये हथियार आरोपियों तक पहुंचे. रंजन द्विवेदी, संतोषानंद और सुदेवानंद के जिम्मे ललित बाबू की हत्या की जिम्मेदारी थी.

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पहला ही चुनाव भाभी की वजह से हारे जगन्नाथ मिश्रा (Jagannath Mishra lost his first election because of his sister-in-law.)

ललित नारायण मिश्रा की हत्या के बाद पत्नी कामेश्वरी देवी की देवर जगन्नाथ मिश्रा से बातचीत बंद हो गई. चुनाव से पहले कुछ  महीने पहले कामेश्वरी देवी ने देवर जगन्नाथ मिश्रा पर यह आरोप लगाया कि उन्होंने मुख्यमंत्री का पद अपने भाई की मौत के इनाम के तौर पर पाया था. जांच में हो रही देरी के चलते कामेश्वरी देवी ने इंदिरा गांधी तक के रिश्ता तोड़ लिया. चुनाव प्रचार के दौरान कामेश्वरी ने यहां तक कहा था कि जब से पति ललित नारायण मिश्रा की हत्या हुई जगन्नाथ मिश्रा ने परिवार पर ध्यान नहीं दिया. इसके चलते जगन्नाथ मिश्रा पहला लोकसभा चुनाव हार गए.

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1980 में दोबारा लोकसभा चुनाव हुए तो जगन्नाथ मिश्रा झंझारपुर सीट से मैदान में उतरे तो भाभी कामेश्वरी देवी भी मैदान में आ गईं. परिणाम आया तो कामेश्वरी देवी को 84,000 से अधिक वोट मिले, जबकि जगन्नाथ मिश्रा 45,483 वोट से धनिक मंडल से हार गए. जाहिर है जगन्नाथ मिश्रा की हार में भाभी कामेश्वरी देवी की भूमिका थी. इंडिया टुडे मैगजीन के अनुसार, वर्ष 1982 में एक अफवाह यह भी फैली कि जगन्नाथ मिश्रा खुद को सत्ता में बनाए रखने के लिए तंत्र-मंत्र का सहारा ले रहे हैं. उन्होंने यूपी और बिहार की सीमा पर मौजूद एक तांत्रिक मठ में 108 बकरों की बलि दी. दावा तो यहां तक किया गया कि मुख्यमंत्री को इन बकरों के खून से नहलाया भी गया. जब इस बारे में जगन्नाथ मिश्रा से सवाल किए गए तो तत्कालीन मुख्यमंत्री इस सवाल पर पत्रकारों से नाराज हो गए. उन्होंने चिल्लाते हुए कहा कि यह सब झूठ है-फरेब है.

इंदिरा गांधी पर लगे हत्या के आरोप

ललित नारायण मिश्रा बेशक इंदिरा गांधी और संजय गांधी दोनों के काफी करीबी माने जाते थे. बावजूद इसके हत्या के बाद कई लोग कटघरे में आए. अफवाह उड़ी कि इसके पीछे इंदिरा का हाथ है. आरोप लगा कि इंदिरा गांधी बिहार के नेता ललित नारायण मिश्रा की तरक्की से जलने लगीं थी. उन्हें राजनीतिक रूप से डर भी लगने लगा था. ऐसे में उन्होंने ही यह हत्या करवाई. इस हत्याकांड में अमेरिका की एजेंसी एफबीआई का भी जिक्र आया. वहीं, जांच के बाद भाई जगन्नाथ मिश्रा और बेटे विजय कुमार मिश्रा ने कहा भी कि आनंदमार्गियों की ललित बाबू से कोई दुश्मनी नहीं थी. वर्ष 2014 में सेशन कोर्ट ने रंजन द्विवेदी, संतोषानंद, सुदेवानंद और गोपाल जी को उम्रकैद सुनाई. इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील हुई. इसके बाद वर्ष 2015 में आरोपी जमानत पर छूट गए. ललित बाबू के परिवार ने बार-बार कहा कि जिन्हें सजा हुई है, वो निर्दोष हैं. 

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आज भी सक्रिय राजनीति में परिवार के कई सदस्य (many members of the family are active in politics.)

ललित नारायण मिश्रा का परिवार आजादी की लड़ाई से जुड़ा रहा. मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो परिवार के कुल 11 सदस्यों ने स्वतंत्रता आंदोलन में हिस्सा लिया था. देश को आजादी मिलने के बाद छोटे भाई ललित नारायण मिश्रा जब सक्रिय हुए तो बड़े भाई राजा बाबू ने राजनीति से संन्यास ले लिया.  इसके बाद ललित नारायण मिश्रा लंबे समय तक बिहार के अलावा केंद्र की राजनीति में भी सक्रिय रहे. ऐसा कहा जाता है कि तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी भी  ललित नारायण मिश्रा को प्रतिद्वंद्वी मानने लगी थीं. कहा तो यहां तक जाता है कि अगर कुछ साल और जिंदा रहते तो इंदिरा गांधी को पछाड़कर वह देश के प्रधानमंत्री बन जाते. खैर परिवार के लोग अभी राजनीति में सक्रिय हैं.  

ललित नारायण मिश्रा के छोटे भाई डॉ. जगन्नाथ मिश्रा तो रिकॉर्ड तीन बार मुख्यमंत्री बने. इसके साथ ही एक बार केंद्रीय मंत्री रहे. वह बिहार प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष भी रहे. ललित नारायण मिश्र के पुत्र विजय कुमार मिश्र 1984 में दलित मजदूर किसान पार्टी (दमकिपा) से दरभंगा से लोकसभा से चुनाव जीते थे. यह अलग बात है कि बाद BJP के विधायक और जदयू के विधान परिषद सदस्य बने थे. ऋषि मिश्रा उनके ही बेटे हैं जो जदयू टिकट पर विधायक बने. नीतीश कुमार और जीतनराम मांझी की सरकार में कैबिनेट मंत्री भी रहे.

अमरेंद्र मिश्रा विधायक और मंत्री रहे. वह भी  ललित नारायण मिश्रा के परिवार से ताल्लुक रखते हैं. बावजूद इसके यह कहा जा सकता है कि डॉ. जगन्नाथ मिश्रा इस परिवार से जुड़े अंतिम सक्रिय कांग्रेसी थे. जगन्नाथ मिश्रा ने बिहार में कांग्रेस की बदहाली देखकर जनता दल यू को अपना ठिकाना बना लिया. वह इस दल के किसान प्रकोष्ठ के राष्ट्रीय अध्यक्ष भी बने. 

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