Bihar Politics: किस्मत ने साथ नहीं दिया! ये है Bihar के सबसे कम दिनों तक CM रहने वाले नेता

Bihar Poitics: भारत की आजादी के 20 साल बाद बिहार को सतीश प्रसाद सिंह के रूप में पिछड़ा वर्ग का पहला मुख्यमंत्री मिला था. हालांकि उनका कार्यकाल बहुत छोटा रहा. महज 5 दिन सीएम रहने के बाद उन्होंने अपने पद से इस्तीफा दे दिया था.

Published by Mohammad Nematullah

Bihar Politics: बिहार की राजनीति में पिछड़े और अति पिछड़े वर्ग का बहुत प्रभावशाली है. ये वर्ग न केवल राज्य की आबादी का एक बड़ा हिस्सा है. बल्कि दशकों से राज्य की राजनीतिक गतिशीलता को भी निर्धारित करते रहे है. हालांकि देश को आजादी मिलने के बाद ये वर्ग दो दशकों तक सत्ता के सर्वोच्च पदों से अछूते रहे थे. आज़ादी के 20 साल बाद बिहार को अपना पहला पिछड़ी जाति का मुख्यमंत्री मिला. 1968 में सतीश प्रसाद सिंह बिहार के पहले पिछड़ी जाति के मुख्यमंत्री बने. हालांकि उन्हें भी केवल 5 दिनों के भीतर ही इस्तीफ़ा देना पड़ा. वे बिहार के सबसे छोटे कार्यकाल वाले मुख्यमंत्री भी है.

बिहार के पहले मुख्यमंत्री

भारत को अंग्रेजों से आज़ादी मिलने के बाद श्री कृष्ण सिंह बिहार के पहले मुख्यमंत्री बने. उन्होंने 1961 तक सत्ता की बागडोर संभाली. वे भूमिहार जाति से थे. उनके बाद मैथिली ब्राह्मण समुदाय से आने वाले बिनोदानंद झा ने अक्टूबर 1963 तक पद संभाला. इसके बाद कृष्ण वल्लभ सहाय (के.बी. सहाय) और महामाया प्रसाद सिन्हा दोनों कायस्थ समुदाय से आए. चारों नेता ऊंची जातियों से थे. इस प्रकार लगभग दो दशकों तक बिहार में ऊंची जातियों का शासन रहा.

कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी

1967 के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी और उसे सबसे ज़्यादा सीटें मिलीं लेकिन वे बहुमत से काफ़ी दूर रह गई थी. इसके बाद सभी कांग्रेस-विरोधी दल एकजुट हुए और बिहार में पहली गैर-कांग्रेसी सरकार बनी. उस समय महामाया प्रसाद सिन्हा जो निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव जीते थे मुख्यमंत्री बने. हालांकि बिहार की राजनीति का ये दौर काफ़ी अस्थिरता से भरा रहा. अलग-अलग विचारधाराओं वाली सत्तारूढ़ पार्टियों में अंदरूनी कलह और उथल-पुथल मची रही. इसके परिणामस्वरूप महामाया प्रसाद सिन्हा ने अपना एक साल का कार्यकाल पूरा न कर पाने के कारण जनवरी 1968 में इस्तीफा दे दिया था.

महामाया प्रसाद सिन्हा के बाद सतीश सिंह मुख्यमंत्री बने

महामाया प्रसाद सिन्हा की सरकार गिरने के बाद 28 जनवरी 1968 को यादव सतीश प्रसाद सिंह मुख्यमंत्री बने. हालांकि उन्होंने 5 दिन के भीतर ही 1 फ़रवरी 1968 को इस्तीफ़ा दे दिया. दरअसल उन्होंने बिंदेश्वरी प्रसाद मंडल जिन्हें बीपी मंडल के नाम से भी जाना जाता है. सत्ता में आने का मार्ग प्रशस्त किया. सतीश प्रसाद के बाद 1 फ़रवरी 1968 को बीपी मंडल ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली.

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बीपी मंडल की सरकार भी उथल-पुथल भरी रही

बीपी मंडल के मंत्रिमंडल में दलित पिछड़े और अल्पसंख्यक मंत्री शामिल थे. ये पहली बार था जब किसी मंत्रिमंडल में उच्च जाति के नेताओं को सत्ता के शीर्ष पदों से बाहर रखा गया था. कांग्रेस पार्टी ने भी बीपी मंडल की सरकार का समर्थन किया था. हालांकि इससे कांग्रेस पार्टी में भी फूट पड़ गई. पूर्व मुख्यमंत्री बिनोदानंद झा के गुट ने बगावत कर दी और 18 विधायकों के साथ सरकार से समर्थन वापस ले लिया. इस प्रकार बीपी मंडल की सरकार एक महीने के भीतर ही गिर गई.

2 मार्च 1968 को बी.पी. मंडल को पद छोड़ना पड़ा. उनके बाद दलित समुदाय से ही भोला पासवान शास्त्री मुख्यमंत्री बने. हालांकि वे भी अपना 100 दिन का कार्यकाल पूरा नहीं कर पाए. जिसके कारण बिहार में राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया गया.

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