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रुपये की कम कीमत भारतीय एक्सपोर्टर्स के लिए कॉम्पिटिशन बढ़ा सकती है, क्योंकि भारत के बाहर से इंपोर्ट किया गया सामान सस्ता लगेगा. हालांकि, इंपोर्ट महंगा हो जाएगा जिससे पेट्रोल और डीज़ल, विदेश यात्रा और इलेक्ट्रॉनिक्स जैसे रोज़ाना के खर्चे बढ़ सकते हैं. इससे महंगाई पर दबाव बढ़ सकता है.
IMF की रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत “क्रॉल-लाइक अरेंजमेंट” को फॉलो कर रहा है. इसका मतलब है कि RBI रुपये को एक कंट्रोल्ड रेंज में चलने देता है और तेज़ उतार-चढ़ाव को रोकता है. यह अरेंजमेंट रुपये को धीरे-धीरे एडजस्ट करने देता है, आमतौर पर थोड़ी नीचे की तरफ.
रिपोर्ट बताती है कि गिरता रुपया लंबे समय में विदेशी निवेशकों के लिए फायदेमंद हो सकता है, क्योंकि रुपये में बदलने पर उनका रिटर्न बढ़ता है. हालांकि, जल्द ही दबाव बना रह सकता है. ग्लोबल फाइनेंशियल हालात महंगे इंपोर्ट और व्यापार से जुड़ी चुनौतियों की वजह से रुपया कमजोर रह सकता है. रिपोर्ट के मुताबिक, रुपये का मौजूदा अंडरवैल्यूएशन लंबे समय तक नहीं रहेगा, इसलिए आने वाले महीनों में बाजार इसके ट्रेंड पर करीब से नज़र रखेगा.
INR vs USD: इस फाइनेंशियल ईयर में भारतीय रुपया लगातार कमजोर दिख रहा है. डॉलर के मुकाबले इसमें करीब 5% की गिरावट आई है और पिछले कुछ दिनों से यह 90 डॉलर प्रति डॉलर से ऊपर बना हुआ है. HDFC Tru की एक हालिया रिपोर्ट में कहा गया है कि कई बाहरी और घरेलू वजहों से रुपया दबाव में है.
कमजोरी की बड़ी वजहें
रिपोर्ट के मुताबिक, अमेरिका द्वारा भारत पर लगाए गए ऊंचे ट्रेड टैरिफ, भारत का बढ़ता करंट अकाउंट डेफिसिट, विदेशों में ऊंचे इंटरेस्ट रेट की वजह से कैपिटल आउटफ्लो, और तेल और इलेक्ट्रॉनिक्स जैसे ज़रूरी सामानों के इम्पोर्ट पर बहुत ज़्यादा निर्भरता, ये सभी रुपये पर दबाव डाल रहे हैं. विदेशी इन्वेस्टर्स की लगातार बिकवाली से भी रुपया कमजोर हुआ है.
पिछले 50 सालों में रुपये में औसतन 4-5% की सालाना गिरावट देखी गई है. हालांकि, इस बार यह गिरावट हाल के सालों की तुलना में ज़्यादा है. जहां 2024 में रुपये को ओवरवैल्यूड माना गया था, वहीं 2025 में यह थोड़ा अंडरवैल्यूड हो गया है. इसका संकेत REER (रियल इफेक्टिव एक्सचेंज रेट) के 100 से नीचे गिरने से मिलता है. पिछले 10 सालों में ऐसा सिर्फ़ चौथी बार हुआ है.
फायदे और नुकसान
रुपये की कम कीमत भारतीय एक्सपोर्टर्स के लिए कॉम्पिटिशन बढ़ा सकती है, क्योंकि भारत के बाहर से इंपोर्ट किया गया सामान सस्ता लगेगा. हालांकि, इंपोर्ट महंगा हो जाएगा जिससे पेट्रोल और डीज़ल, विदेश यात्रा और इलेक्ट्रॉनिक्स जैसे रोज़ाना के खर्चे बढ़ सकते हैं. इससे महंगाई पर दबाव बढ़ सकता है.
RBI का क्या रोल है?
IMF की रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत “क्रॉल-लाइक अरेंजमेंट” को फॉलो कर रहा है. इसका मतलब है कि RBI रुपये को एक कंट्रोल्ड रेंज में चलने देता है और तेज़ उतार-चढ़ाव को रोकता है. यह अरेंजमेंट रुपये को धीरे-धीरे एडजस्ट करने देता है, आमतौर पर थोड़ी नीचे की तरफ.
भविष्य में क्या होगा?
रिपोर्ट बताती है कि गिरता रुपया लंबे समय में विदेशी निवेशकों के लिए फायदेमंद हो सकता है, क्योंकि रुपये में बदलने पर उनका रिटर्न बढ़ता है. हालांकि, जल्द ही दबाव बना रह सकता है. ग्लोबल फाइनेंशियल हालात महंगे इंपोर्ट और व्यापार से जुड़ी चुनौतियों की वजह से रुपया कमजोर रह सकता है. रिपोर्ट के मुताबिक, रुपये का मौजूदा अंडरवैल्यूएशन लंबे समय तक नहीं रहेगा, इसलिए आने वाले महीनों में बाजार इसके ट्रेंड पर करीब से नज़र रखेगा.