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कौन-सी दाल कितनी देर भिगोएं? न्यूट्रिशनिस्ट का खुलासा ,नहीं होगी गैस और पेट फूलने की समस्या

दाल हमारे संतुलित आहार का जरूरी हिस्सा है, लेकिन इसे सीधे पकाकर खाने के बजाय सही समय तक भिगोकर खाना ज्यादा फायदेमंद होता है। न्यूट्रिशनिस्ट्स के मुताबिक, बिना छिलके वाली दालें (जैसे लाल मसूर, मूंग, अरहर) कम से कम 30 मिनट भिगोनी चाहिए, वहीं टूटी और छिलके वाली दालें 2 से 4 घंटे और साबुत दालें 6 से 8 घंटे तक पानी में रखनी जरूरी हैं,आइए समझते हैं इसके बारे में...

By: Shivashakti Narayan Singh | Last Updated: September 5, 2025 1:00:31 PM IST



Healthy Diet: दाल हमारे संतुलित आहार का जरूरी हिस्सा है, लेकिन इसे सीधे पकाकर खाने के बजाय सही समय तक भिगोकर खाना ज्यादा फायदेमंद होता है। न्यूट्रिशनिस्ट्स के मुताबिक, बिना छिलके वाली दालें (जैसे लाल मसूर, मूंग, अरहर) कम से कम 30 मिनट भिगोनी चाहिए, वहीं टूटी और छिलके वाली दालें 2 से 4 घंटे और साबुत दालें 6 से 8 घंटे तक पानी में रखनी जरूरी हैं। राजमा, छोले और चना जैसी लेग्यूम्स को रातभर भिगोना सबसे बेहतर है। दाल भिगोने से एंटी न्यूट्रिएंट्स खत्म होते हैं, पोषक तत्व बेहतर अवशोषित होते हैं और गैस या ब्लोटिंग की समस्या नहीं होती।

दालें कितनी देर भिगोकर रखनी चाहिए?

दालें हमारे आहार का अहम हिस्सा हैं और इन्हें सही तरीके से भिगोकर खाना सेहत के लिए बेहद फायदेमंद होता है। न्यूट्रिशनिस्ट के अनुसार, बिना छिलके वाली दालें जैसे लाल मसूर, मूंग और अरहर को कम से कम 30 मिनट तक भिगोकर रखना चाहिए। इससे वे जल्दी पकती हैं और पचने में आसान होती हैं। वहीं, टूटी हुई दालें जिनमें छिलका होता है, उन्हें 2 से 4 घंटे तक पानी में रखना जरूरी है, ताकि उनमें मौजूद फाइबर मुलायम हो जाए। चना दाल जैसी सख्त दालों को भी 2 से 4 घंटे तक भिगोना जरूरी है। जबकि साबुत दालें जैसे उड़द, मूंग या मसूर को 6 से 8 घंटे तक भिगोना चाहिए। सबसे सख्त दालें और लेग्यूम्स जैसे राजमा, चना और छोले को रातभर पानी में रखना सही माना जाता है। इससे वे फूलकर नरम हो जाते हैं और पचाने में आसानी होती है।

दालें क्यों भिगोनी चाहिए?

दालों को भिगोकर रखने के कई वैज्ञानिक कारण हैं। सबसे बड़ा फायदा यह है कि भिगोने से उनमें मौजूद एंटी न्यूट्रिएंट्स जैसे फाइटिक एसिड और टैनिंस खत्म हो जाते हैं। ये तत्व आयरन, कैल्शियम और जिंक जैसे पोषक तत्वों के अवशोषण को ब्लॉक करते हैं। भिगोने से दालों में मौजूद खास शुगर भी टूट जाती है, जिसे हमारा पेट सामान्य तौर पर पचा नहीं पाता। यही वजह है कि दाल खाने के बाद गैस और ब्लोटिंग की समस्या होती है। soaking से ये समस्या काफी हद तक खत्म हो जाती है। इसके अलावा दालों को भिगोने से उनमें एंजाइम्स एक्टिवेट हो जाते हैं और अगर उन्हें अंकुरण की अवस्था तक रखा जाए तो उनमें प्रोटीन, बी-विटामिन्स और मिनरल्स की मात्रा और भी बढ़ जाती है।

दाल भिगोने के हेल्थ और कुकिंग बेनिफिट्स

दाल भिगोने का फायदा सिर्फ पोषण तक सीमित नहीं है, बल्कि इससे कुकिंग भी आसान हो जाती है। जब दालें भिगोई जाती हैं तो वे जल्दी पकती हैं और ज्यादा देर तक उबालने की जरूरत नहीं पड़ती। इससे उनमें मौजूद पोषक तत्व भी सुरक्षित रहते हैं। पकाने के दौरान इनमें हींग, अदरक और जीरे का तड़का लगाने से गैस बनने की संभावना और भी कम हो जाती है। वहीं, छोले और राजमा जैसी दालों को तेजपत्ता, मोटी इलायची और लौंग के साथ उबालने से उनका स्वाद और पाचन दोनों बेहतर होते हैं। कुल मिलाकर दाल को सही समय तक भिगोकर खाने से उसका टेक्सचर मुलायम होता है, पोषक तत्वों का नुकसान नहीं होता और सबसे बड़ी बात पेट फूलने या गैस की समस्या भी नहीं होती।

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