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इन देशों में काफी तेजी से बढ़ रही मुस्लिमों की आबादी, अन्य धर्मों की जनसंख्या जान हैरत में खुली रह जाएंगी आंखें

Pew research On Muslim: यूरोप के देशों में मुसलमानों की आबादी में 16 फीसदी की बढ़ोतरी देखने को मिली है, जो पहले 3 करोड़ 92 लाख थी, वो अब बढ़कर करीब 4 करोड़ 60 लाख हो गई है।

Published by Sohail Rahman

Pew research On Muslim: यूरोप की धार्मिक आबादी में 2010 से 2020 के बीच ऐसा बदलाव देखने को मिला है, जिससे सामाजिक और राजनीतिक मामले प्रभावित होते हुए नजर आ रहे हैं। प्यू रिसर्च सेंटर की एक रिपोर्ट के मुताबिक, इस दशक के अंदर ईसाइयों की कुल आबादी 9 फीसदी घटकर 50.5 करोड़ रह गई, जबकि यहूदियों की संख्या भी 8 फीसदी घटकर 13 लाख रह गई। इसके उलट, लगभग हर दूसरे प्रमुख धार्मिक समूह की आबादी में बढ़ोतरी हुई। इस दौरान धार्मिक रूप से असंबद्ध लोगों की संख्या 13 करोड़ से बढ़कर 19 करोड़ हो गई। इस तरह यह आबादी का 37 फीसदी हो गया।

मुसलमानों की आबादी कितनी बढ़ी?

मुसलमानों में 16 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है, जो पहले 3 करोड़ 92 लाख थी, जो बढ़कर करीब 4 करोड़ 60 लाख हो गई है। वहीं, हिंदुओं की संख्या 16 लाख से बढ़कर 20 लाख हो गई है, जो करीब 30 फीसदी है। यह बदलाव सिर्फ संख्या में ही नहीं, बल्कि आबादी में हिस्सेदारी में भी दिखा। ईसाइयों की हिस्सेदारी 75 फीसदी से घटकर 67 फीसदी हो गई है। यह 8 प्रतिशत की गिरावट है, जबकि असंबद्ध लोगों की हिस्सेदारी 18 प्रतिशत से बढ़कर 25 प्रतिशत हो गई है, जो 7 प्रतिशत की वृद्धि दर्शाती है। इस बदलाव का सबसे बड़ा कारण धार्मिक विमुखता में वृद्धि है। धार्मिक संस्थाओं से युवा पीढ़ी की दूरी, आध्यात्मिक स्वतंत्रता की चाह और धर्मनिरपेक्ष राजनीतिक सोच इसके मुख्य कारण हैं।

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आव्रजन और मुस्लिम आबादी में वृद्धि

2010 से 2020 के बीच सीरिया जैसे मुस्लिम बहुल देशों से यूरोप में शरणार्थियों का आप्रवासन सामाजिक चर्चा का केंद्र बन गया। कुल यूरोप में मुसलमानों की हिस्सेदारी में लगभग 1 प्रतिशत की वृद्धि हुई, जो अब 6 प्रतिशत है। स्वीडन में मुस्लिम आबादी 4 प्रतिशत से बढ़कर 8 प्रतिशत हो गई, जो पहले से दोगुनी है। अल्बानिया, जो पहले से ही मुस्लिम बहुल था, में 4 प्रतिशत की और वृद्धि देखी गई है। जर्मनी में 1 प्रतिशत की वृद्धि हुई है, जो 7 प्रतिशत है। यह वृद्धि न केवल आप्रवासन के कारण है, बल्कि कुछ देशों में सरकारी शरणार्थी नीतियों के कारण भी है, जैसे स्वीडन की उदार नीति या जर्मनी में एंजेला मर्केल का स्वागत करने वाला रुख।

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