India Russia Oil: भारत ने पिछले कुछ वर्षों में अपनी ऊर्जा सुरक्षा के लिए रूसी कच्चे तेल पर निर्भरता बढ़ाई है। वित्तीय वर्ष 2025 (FY25) में रूस से भारत के कच्चे तेल के आयात का हिस्सा लगभग 35.1% तक पहुंच गया, जबकि वित्तीय वर्ष 2020 (FY20) में यह केवल 1.7% था। भारत ने रूस से करीब 88 मिलियन टन कच्चा तेल खरीदा, जो कुल 245 मिलियन टन के आयात का बड़ा हिस्सा है।
लेकिन अब अमेरिका ने भारत पर अपने दबाव बढ़ा दिए हैं और रूस से तेल खरीदने के कारण भारत के निर्यात पर अतिरिक्त 50% तक की टैरिफ लगाई है। इससे भारत का कच्चे तेल आयात बिल इस वित्तीय वर्ष में लगभग 9 अरब डॉलर और अगले वर्ष करीब 12 अरब डॉलर तक बढ़ सकता है।
अमेरिका के टैरिफ का कारण और असर
अमेरिकी सरकार ने भारत को रूसी तेल आयात के लिए एक विशेष टैक्स लगाया है। अमेरिकी पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने एक आदेश जारी किया है जिसमें उन्होंने भारत पर 25% से बढ़ाकर 50% तक टैरिफ लगाने की बात कही। उनका मानना है कि भारत रूसी तेल खरीदकर वैश्विक प्रतिबंधों की अवहेलना कर रहा है।
इस कदम से भारत को न केवल तेल की महंगाई झेलनी पड़ सकती है, बल्कि कृषि और फार्मास्यूटिकल क्षेत्र भी प्रभावित हो सकते हैं।
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भारत के लिए विकल्प: मध्य पूर्व की ओर रुख
अगर भारत रूस से तेल आयात बंद करता है, तो उसे अपने पारंपरिक आपूर्तिकर्ताओं जैसे कि इराक, सऊदी अरब और यूएई से तेल खरीदने पर मजबूर होना पड़ेगा। इससे भारत का तेल आयात बिल बढ़ सकता है क्योंकि रूसी तेल आमतौर पर 60 डॉलर प्रति बैरल की छूट पर मिलता है, जबकि अन्य स्रोतों से तेल महंगा हो सकता है।
भारत के तेल रिफाइनर मध्य पूर्व से सालाना अनुबंध के आधार पर तेल खरीदते हैं, जो हर महीने अतिरिक्त सप्लाई की मांग करने की अनुमति देता है। रूस से तेल बंद होने पर ये अनुबंध भारत के लिए राहत का स्रोत बन सकते हैं।
वैश्विक तेल कीमतों पर प्रभाव
रूस वैश्विक कच्चे तेल की लगभग 10% आपूर्ति करता है। अगर सारे देश रूस से तेल खरीदना बंद कर देते हैं, तो तेल की कीमतों में लगभग 10% की वृद्धि हो सकती है, क्योंकि अन्य उत्पादक देशों की उत्पादन क्षमता तुरंत बढ़ना मुश्किल है।
कृषि और फार्मा सेक्टर पर प्रभाव
अमेरिका ने कृषि और फार्मास्यूटिकल्स पर भी संभावित टैरिफ की चेतावनी दी है। इससे भारत के किसानों और फार्मा कंपनियों को बड़ा नुकसान हो सकता है।
फार्मा सेक्टर में अगर 50% टैरिफ लगती है, तो इससे कंपनियों की आय में 5 से 10% तक की गिरावट आ सकती है। यह अमेरिका में दवाओं की कीमतों में बढ़ोतरी और प्रतिस्पर्धा में कमी का कारण बनेगा।
भारत विश्व के लिए किफायती और गुणवत्तापूर्ण दवाइयां उपलब्ध कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, विशेषकर कैंसर, एंटीबायोटिक्स और पुरानी बीमारियों के उपचार में। इसलिए, इस टैरिफ का असर सिर्फ भारत पर ही नहीं, बल्कि अमेरिकी जनता पर भी पड़ेगा।
भारत की प्रतिक्रिया
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा है कि भारत अपने किसानों, मछुआरों और डेयरी क्षेत्र के हितों पर कभी समझौता नहीं करेगा, भले ही इसके लिए उन्हें व्यक्तिगत तौर पर बड़ा नुकसान उठाना पड़े।
भारत और अमेरिका के बीच यह टैरिफ विवाद ऊर्जा सुरक्षा, व्यापार, और रणनीतिक हितों का महत्वपूर्ण मुद्दा बन गया है। भारत को अपनी ऊर्जा आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए आपूर्ति श्रृंखला को विविध बनाना होगा, जबकि अमेरिकी टैरिफ से निपटने के लिए भी नई रणनीतियां अपनानी होंगी।
भारत की रूसी तेल पर निर्भरता कम होने पर उसके तेल आयात का खर्च बढ़ेगा, लेकिन मध्य पूर्व और अन्य स्रोतों से संतुलन बनाने की क्षमता इसे आर्थिक झटकों से बचा सकती है। वहीं, कृषि और फार्मा उद्योगों को भी इस स्थिति में सावधानी बरतनी होगी ताकि दोनों देशों के बीच व्यापार संबंध बनाए रखे जा सकें।

