Gambhir vs McCullum: एक जैसी आक्रामक सोच, लेकिन नतीजों में ज़मीन–आसमान का फर्क; जानें किसकी कोचिंग में टीम को मिला फायदा?

Gautam Gambhir News: गंभीर और मैकुलम, बल्लेबाज़ी स्टाइल और देश अलग होने के बावजूद, स्वभाव में काफी समान हैं—निडर, सीधे बोलने वाले, आक्रामक सोच वाले और आलोचना से न डरने वाले.

Published by Shubahm Srivastava

Gambhir vs McCullum: जुलाई की एक धूप भरी दोपहर ओवल में, भारत और इंग्लैंड के बीच सीरीज़ के निर्णायक मैच से पहले, गौतम गंभीर और ब्रेंडन मैकुलम पिच के पास खड़े होकर दोस्ताना बातचीत करते दिखे. हालिया घटनाओं—मैनचेस्टर टेस्ट में हाथ मिलाने से इनकार, पिच विवाद—को देखते हुए यह दृश्य आम फैन के लिए चौंकाने वाला था. लेकिन दोनों के बीच पुरानी दोस्ती और साझा इतिहास है. वे IPL 2013 में कोलकाता नाइट राइडर्स (KKR) के लिए साथ खेले थे, और यही फ्रेंचाइज़ी आगे चलकर दोनों के कोचिंग करियर की पहचान बनी.

दोनों में ही दिग्गजों में है कई समानता

गंभीर और मैकुलम, बल्लेबाज़ी स्टाइल और देश अलग होने के बावजूद, स्वभाव में काफी समान हैं—निडर, सीधे बोलने वाले, आक्रामक सोच वाले और आलोचना से न डरने वाले. दोनों ऐसे कोच हैं जो सिर्फ़ पर्दे के पीछे नहीं रहते, बल्कि खुद “शो” बन जाते हैं. उनके फैसले, बयान और रणनीतियां लगातार चर्चा में रहती हैं. हालांकि, यही खूबी तब भारी पड़ती है जब नतीजे उनके पक्ष में नहीं जाते.

मैकुलम की आक्रामक सोच उनके कप्तानी दिनों से ही दिखने लगी थी. न्यूजीलैंड के कप्तान रहते हुए वह वनडे में भी पारंपरिक सोच से हटकर फैसले लेते थे—जैसे 50 ओवर का इंतज़ार किए बिना 40 ओवर में ही अपने मुख्य गेंदबाज़ों का कोटा खत्म कर देना. यह सोच हमेशा सफल नहीं हुई, लेकिन यह दिखाती थी कि वह क्रिकेट को अलग नजरिए से देखते हैं.

मैकुलम की “बैज़बॉल” फिलॉसफी

उनकी “बैज़बॉल” फिलॉसफी की पहली झलक PSL 2017 में लाहौर कलंदर्स के साथ दिखी. कप्तान और बैटिंग कंसल्टेंट के रूप में उनका ‘हर कीमत पर हमला’ वाला स्टाइल टीम के लिए विनाशकारी साबित हुआ और लगातार हार के बाद उन्हें पद छोड़ना पड़ा. लेकिन मैकुलम ने इससे सबक लेकर अपने स्टाइल को छोड़ा नहीं.

कोच के रूप में मैकुलम, कप्तान मैकुलम से भी ज़्यादा आक्रामक निकले. KKR में उन्होंने दिनेश कार्तिक जैसे फिनिशर को नंबर 3 पर उतारने जैसे प्रयोग किए. इंग्लैंड की टेस्ट टीम की कमान संभालते ही उन्होंने टेस्ट क्रिकेट की पारंपरिक परिभाषा को चुनौती दी. फर्क यह था कि इंग्लैंड में उन्हें बेन स्टोक्स (कप्तान) और रॉब की (मैनेजिंग डायरेक्टर) जैसे लोग मिले, जो उनके विचारों पर पूरी तरह भरोसा करते थे.

मैकुलम ने इंग्लैंड की टेस्ट टीम संभाली

जब मैकुलम ने इंग्लैंड की टेस्ट टीम संभाली, तब टीम बेहद खराब दौर से गुजर रही थी—पिछले 19 टेस्ट में सिर्फ़ एक जीत. बैज़बॉल ने टीम में जान फूंक दी. इंग्लैंड ने पाकिस्तान और न्यूजीलैंड जैसी जगहों पर आक्रामक क्रिकेट खेलते हुए सीरीज़ जीतीं और फैंस को रोमांच मिला. हालांकि, यह तरीका हर जगह सफल नहीं रहा. भारत और ऑस्ट्रेलिया जैसी मजबूत टीमों के खिलाफ और एशेज जैसी परिस्थितियों में यह आक्रामकता अक्सर उलटी पड़ गई. इससे साफ हुआ कि बैज़बॉल कोई परफेक्ट फॉर्मूला नहीं, बल्कि अभी भी विकसित हो रही सोच है.

कोच गंभीर की कमान में टीम इंडिया

अब बात गौतम गंभीर की. गंभीर ने बैज़बॉल पर टिप्पणी करते हुए कहा था कि असली टेस्ट क्रिकेट अडैप्टेबिलिटी है—ज़रूरत पड़े तो एक दिन में 400 रन बनाना और ज़रूरत पड़े तो दो दिन बैटिंग करके ड्रॉ बचाना. यह बयान भारत की उस पारंपरिक मजबूती को दर्शाता था, जिसमें टीम हालात के हिसाब से ढलने में माहिर रही है.

गंभीर की टीम ने कानपुर टेस्ट में बांग्लादेश के खिलाफ इसका उदाहरण भी दिया, जहां सिर्फ़ 35 ओवर के खेल के बावजूद भारत ने आक्रामक बल्लेबाज़ी से मैच जीत लिया. मैनचेस्टर टेस्ट में जडेजा और वाशिंगटन सुंदर की संयमित बल्लेबाज़ी ने भी यह दिखाया कि टीम दोनों तरह का क्रिकेट खेल सकती है.

घर में भारत का प्रदर्शन

लेकिन गंभीर के बयान के बाद के नतीजे उनके खिलाफ गए. भारत ने घर पर सात में से पाँच टेस्ट गंवाए और एक दशक से ज्यादा समय बाद बॉर्डर-गावस्कर ट्रॉफी हार गई. इंग्लैंड में 2-2 की बराबरी को छोड़ दें, तो गंभीर का रेड-बॉल कोचिंग कार्यकाल भारतीय क्रिकेट के लिए निराशाजनक रहा है.

इसके अलावा, गंभीर “ट्रांज़िशन फेज़” को बार-बार वजह के तौर पर पेश करते हैं. विराट कोहली और रोहित शर्मा जैसे दिग्गजों का फॉर्म गिरा, लेकिन उनके विदाई प्रबंधन और रविचंद्रन अश्विन जैसे सीनियर खिलाड़ियों को बाहर करने के फैसलों पर सवाल उठे.

दोनों ही कोच के काम और निर्णय में फर्क

यहां गंभीर और मैकुलम के बीच बड़ा फर्क सामने आता है. मैकुलम को एक टूटी हुई इंग्लिश टीम मिली थी, जबकि गंभीर को एक मजबूत, चैंपियन भारतीय टीम—T20 वर्ल्ड कप विजेता, घर में अजेय टेस्ट टीम और विदेशों में जीत दर्ज करने वाली साइड. इसके बावजूद, गंभीर के कार्यकाल में भारत ने घर पर सिर्फ़ बांग्लादेश और वेस्ट इंडीज़ को हराया, श्रीलंका में वनडे सीरीज़ हारी और चयन में भारी अस्थिरता दिखी.

सीमित ओवरों में भी चयन नीति सवालों के घेरे में रही—रोहित की जगह गिल, संजू सैमसन की भूमिका में बदलाव, अश्विन-सुंदर की अदला-बदली, अक्षर पटेल का असामान्य बैटिंग ऑर्डर, अर्शदीप और शमी जैसे गेंदबाज़ों की अनिश्चित स्थिति. फैसलों में कोई स्पष्ट लॉजिक नहीं दिखता, लेकिन गंभीर अपने रुख पर कायम हैं.

BCCI ने अब तक गंभीर को सार्वजनिक रूप से जवाबदेह ठहराने के संकेत नहीं दिए हैं. T20 वर्ल्ड कप और WTC जैसे बड़े इवेंट्स करीब हैं. ऐसे में फैंस कम से कम गंभीर से वही निरंतरता चाहते हैं, जो मैकुलम ने इंग्लैंड को दी—जहां नतीजे भले उतार-चढ़ाव वाले हों, लेकिन टीम की पहचान और दिशा साफ़ रहती है.

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