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जानिए रामबोला से तुलसीदास बनने तक की वो घटना जिसने बदल दी जीवन की दिशा, जानिए कैसे एक पत्नी का वाक्य बन गया भक्ति का मार्ग

रामचरितमानस के रचयिता गोस्वामी तुलसीदास की जयंती 31 जुलाई को है, इनकी जयंती हर वर्ष सावन माह के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि पर मनाई जाती है।

Tuldidas Life Story: हर वर्ष सावन माह के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि पर रामचरितमानस के रचयिता गोस्वामी तुलसीदास की जयंती मनाई जाती है इस बार यह तिथी 31 जुलाई को है, रामचरितमानस एक अद्भुत रचना है जो श्रीराम के बखान में लिखी गई है। सगुण भक्ति के प्रणेता गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरितमानस की रचना के अलावा हनुमान चालीसा भी लिखी है। 

कैसे पड़ा रामबोला नाम

जानकारियों के अनुसार  जन्म लेते ही तुलसीदासजी के मुख से रामशब्द निकला था, इसलिए उनका नाम रामबोला रखा गया, बाद में चलकर, तुलसीदास संस्कृत और हिंदी के प्रकांड विद्वान और अद्भुत कवि हुए, एक कवि के रूप मे उनका जीवन श्रीरामभक्ति कि तरफ तब गया जब विवाहोपरांत अपनी पत्नी की फटकार लगी  

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रामबोला से तुलसीदास

मान्यताओं के अनुसार तुलसीदास यानी रामबोला को अपनी पत्नी रत्नावली से अनन्य प्रेम करतें थें और .  उनकी पत्नी एक बार अपने मायके गयी थी तभी रामबोला उनसे मिलने का मन हुआ और वह उसी समय अपनी पत्नी से मिलने के लिए निकल गए, रामबोला मिलने के लिए इतने उत्साहित हो गए थे कि रात के अंधियारे में ही तेज बारिश में उफनती नदी को शव पकड़कर पार कर लिया और जब अपने ससुराल पहुंचे तो दरवाजा बंद था, ऐसे में रामबोला ने दीवार फांदने के प्रयास किया व इतने में उन्होंने खिड़की से लटकती एक रस्सी देखी और उसे ही पकड़कर दीवार पार कर गए, इतने अथक प्रयासों के बाद जब वो अपनी पत्नी सामने आए और अपनी यात्रा की सारी बारें अपनी पत्नी को बताई तो यह सब जानने के बाद  रत्ना ने रामबोला को जोरदार फटकार लगाई और गुस्से में कहा-  ‘लाज न आई आपको दौरे आएहु नाथ, अस्थि चर्म मय देह यह, ता सों ऐसी प्रीत। नेकु जो होती राम से, तो काहे भव-भीत।।‘. जिसका अर्थ होता है कि मेरी हाड़-मास के शरीर से प्रेम करने की जगह अगर राम नाम से इतना प्रेम करते तो जीवन सुधर जाता

जिसका अर्थ है कि मेरी हाड़-मास के शरीर से प्रेम करने की जगह अगर आप राम के नाम से इतना प्रेम करते तो आपका जीवन सुधर जाता, पत्नी की यही बात सुनकर रामबोला की अंतआत्मा जाग उठी,और वह पत्नी के पास से तुरंत उल्टे पांव राम नाम की खोज में निकला गए  व भविष्य का तुलसीदास बनकर उभरें। राम कि भक्ति में शामिल होनें का बाद इन्होनें अपना जीवन काशी, अयोध्या और चित्रकूट में ही बिताया व लोकभाषा में साहित्य रचना की और उन्होंने अपने जीवन में रामचरितमानस के अलावा कई दूसरी स रचनाएं कीं, इनमें, कवितावली, विनयपत्रिका, गीतावली जानकीमंगल और हनुमान चालीसा जैसी प्रमुख रचनाएं शामिल हैं।

Shivashakti Narayan Singh

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