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Khatu Shyam Baba: महाभारत में खाटूश्याम जी की भूमिका क्या थी? बर्बरीक की कथा के बारे में जानें यहां

Khatu Shyam Baba: बर्बरीक खाटू श्याम बाबा के नाम से मशहूर हुए. खाटू श्याम बाबा कलयुग में भगवान श्री कृष्ण के अवतार कहे जाते हैं. कहा जाता है कि भगवान कृष्ण के इस अवतार की कलयुग में पूजा करने से आपके सारे कष्टों का निवारण हो जाता है. महाभारत में खाटूश्याम बाबा अर्थात बर्बरीक की क्या भूमिका थी. आइए विस्तार से जानते हैं यहां.

Published by Shivi Bajpai

Khatu Shyam Baba ki Katha: हर साल कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी देवउठनी एकादशी होती है. ये सबसे बड़ी एकादशी होती है. इसी पावन तिथि पर खाटू श्याम बाबा का जन्मदिन मनाया जाता है. ये एकादशी कल के दिन यानी 1 नवंबर को मनाई जाएगी. राजस्थान के सीकर जिले में श्री खाटू श्याम बाबा का मंदिर है. इनका असली नाम बर्बरीक है. 

महाभारत में दी गई कथा के अनुसार, बर्बरीक का सिर राजस्थान के खाटू नगर में दफना दिया गया था, इसलिए बर्बरीक खाटू श्याम बाबा के नाम से मशहूर हुए. खाटू श्याम बाबा को कलयुग में भगवान श्री कृष्ण के अवतार के रूप में पूजा जाता है. महाभारत में खाटू श्याम की क्या भूमिका थी जानें यहां.

बर्बरीक बचपन से ही वीर और तेजस्वी थे

महाभारत में दी गई कथा के अनुसार, खाटू श्याम बाबा अर्थात बर्बरीक घटोत्कच और नाग कन्या मौरवी के पुत्र हैं. उनके दादा-दादी भीम और उनकी पत्नी हिडिम्बा थी. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार जब बर्बरीक का जन्म हुआ था तो उनके बाल बब्बर शेर के समान थे, इसलिए उनका नाम बर्बरीक रखा गया. बर्बरीक बचपन से ही वीर और तेजस्वी थे. बर्बरीक ने भगवान श्री कृष्ण और अपनी मां मौरवी से युद्धकला सीखी थी. 

बर्बरीक ने भगवान शिव की घोर तपस्या की थी. इसके बाद भगवान शिव से तीन चमत्कारी बाण मिले थे. यही नहीं भगवान अग्निदेव से उनको एक दिव्य धनुष मिला था, जिससे वो तीनों लोकों पर विजय प्राप्त कर सकते थे. जब बर्बरीक को महाभारत के युद्ध की जानकारी मिली तो उन्होंने फैसला किया वो भी इस युद्ध का हिस्सा बनेंगे. फिर बर्बरीक ने अपनी मां का आशीर्वाद लिया.

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कौन था वो ब्राह्मण?

साथ ही उन्होंने मां को वचन दिया कि वो हारे हुए पक्ष की ओर से युद्ध लड़ेंगे. इसी वचन के कारण हारे का सहारा बाबा हमारा वाली बात मशहूर हो गई. जब बर्बरीक जा रहे थे तो उनको रास्ते में एक ब्राह्मण मिला. ये ब्राह्मण कोई और नहीं बल्कि भगवान श्री कृष्ण ही थे, जो बर्बरीक की परीक्षा लेने गए थे. इसके बाद ब्राह्मण के भेष मे श्री कृष्ण ने बर्बरीक को एक पीपल का वृक्ष दिखाया और कहा कि वो एक ही बाण से उस पेड़ के सारे पत्ते भेद दें. बर्बरीक ने भगवान का ध्यान करके एक बाण छोड़ दिया. उस बाण ने पीपल के सारे पत्तों को छेद दिया.

श्री कृष्ण बर्बरीक के पराक्रम से प्रसन्न हुए

इसके बाद वो बाण भगवान के पैरों की चारों तरफ मंडराने लगा. असली बात तो ये थी कि श्री कृष्ण ने एक पत्ता अपने पैरों के नीचे छिपाया हुआ था.  बर्बरीक इस समझ गए और कहा कि ब्राह्मण अपना पैर हटा लें. 
इस पर श्रीकृष्ण बर्बरीक के पराक्रम से प्रसन्न हुए और पूछा कि वह किसकी ओर से युद्ध लड़ने जा रहे हैं। बर्बरीक ने कहा कि उन्होंने अभी इस बात का निर्धारण नहीं किया है. बर्बरीक ने कहा कि वह अपने वचन के अनुसार, हारे हुए पक्ष की ओर से युद्ध लड़ेंगे। श्रीकृष्ण जानते थे कि इस युद्ध में कौरवों की पराजय निश्चित है. ऐसे में बर्बरीक की बात सुनकर वह विचारमग्न हो गए। फिर उन्होंने बर्बरीक से एक दान देने का वचन मांगा. बर्बरीक ने वचन दे दिया. इस पर ब्राह्मण के भेष में श्रीकृष्ण ने बर्बरीक से कहा कि वह दान में उनको अपना सिर दें। बर्बरीक यह सुनकर आश्चर्यचकित हुए.

भगवान से जताई युद्ध देखने की इच्छा

इसके बाद बर्बरीक समझ गए कि यह कोई साधारण ब्राह्मण नहीं है. बर्बरीक ने ब्राह्मण से कहा कि वह उन्हें अपना सिर अवश्य दान में देंगे, लेकिन पहले ब्राह्मणदेवता को अपना असली परिचय देना होगा. यह सुनकर भगवान कृष्ण अपने असली रूप में प्रकट हुए. बर्बरीक ने अपना शीश काटकर श्री कृष्ण को दे दिया, लेकिन उन्होंने भगवान से कहा कि उनकी युद्ध देखने की इच्छा है. श्रीकृष्ण बर्बरीक के दान और वचनबद्धता से प्रसन्न हुए और उन्हें उनकी इच्छा पूरी होने का आशीर्वाद दे दिया.
श्री कृष्ण ने बर्बरीक के सिर को 14 देवियों के द्वारा अमृत से सींचकर युद्धभूमि के पास एक पहाड़ी पर स्थित कर दिया, जहां से वह युद्ध देख पाएं। बाद में श्रीकृष्ण ने बर्बरीक के धड़ का शास्त्रोक्त विधि से अंतिम संस्कार कर दिया.

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बर्बरीक ने बताया युद्ध में विजय का सच

महाभारत युद्ध में पांडवों ने विजय प्राप्त की. इसके बाद युद्ध में जीत के श्रेय को लेकर बहस होने लगी, तो श्रीकृष्ण ने कहा कि बर्बरीक ने युद्ध देखा है, चलकर उनसे ही पूछ लिया जाए. तब परमवीर बर्बरीक ने कहा कि इस युद्ध की विजय का श्रेय सिर्फ श्रीकृष्ण को ही जाता है। विजय के पीछे सब कुछ श्री कृष्ण की ही माया थी. बर्बरीक के सत्य वचन सुनकर देवताओं ने उन पर पुष्पों की वर्षा की. श्रीकृष्ण बर्बरीक की महानता से अति प्रसन्न हुए.
श्रीकृष्ण ने बर्बरीक को आशीर्वाद दिया कि वह उनके नाम श्याम से प्रसिद्ध होंगे। कलियुग में कृष्ण अवतार रूप में उनकी पूजा होगी और वह भक्तों की मनोकामनाएं पूर्ण करेंगे.

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(Disclaimer: इस खबर में दी गई जानकारी धार्मिक मान्यताओं पर आधारित है. इनखबर इस बात की पुष्टि नहीं करता है)

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