Chhath Puja Indian Festivals: छठ पूजा (Chhath puja) की बात हो और कोसी पूजा का ज़िक्र न आए, ऐसा हो ही नहीं सकता. बिहार और पूर्वी भारत के कई हिस्सों में मनाई जाने वाली इस पूजा का एक खास मकसद होता है. धन्यवाद देना छठी मइया को, उस हर मन्नत के लिए जो पूरी हो चुकी है.
छठ पर्व के तीसरे दिन शाम को जब डूबते सूरज को अर्घ्य दिया जाता है, उसी दिन घरों में कोसी पूजा होती है. आंगन या छत पर गन्नों की छतरी बनाई जाती है. पांच या सात गन्ने खड़े करके उसके बीच में एक बांस की टोकरी या सूप रखा जाता है. इस टोकरी में ठेकुआ, फल, अदरक, मूली और कई तरह के प्रसाद रखे जाते हैं. वहीं एक मिट्टी का हाथी और घड़ा भी सजाया जाता है, जो समृद्धि और स्थिरता का प्रतीक माना जाता है.
फिर टोकरी के चारों ओर बारह दीए जलाए जाते हैं, जो साल के बारह महीनों का संकेत देते हैं. इस समय घर की महिलाएँ गीत गाती हैं, परिक्रमा करती हैं और छठी मइया से अपने परिवार की सेहत और खुशहाली की दुआ मांगती हैं.
क्या है मान्यता?
कहा जाता है कि जब किसी की बड़ी मन्नत पूरी होती है. जैसे किसी बीमारी से मुक्ति, संतान की प्राप्ति या कोई बड़ा संकट टल जाना. तो परिवार वाले कोसी भरते हैं यानी यह पूजा करते हैं. यह मानो छठी मईया को धन्यवाद कहने का तरीका है कि “जो मांगा, वो दे दिया- अब बस आपका आशीर्वाद बना रहे.”
छठ की असली खूबसूरती
जब शाम को नदी किनारे अर्घ्य देने का समय आता है और सूरज की लालिमा पूरे आसमान को रंग देती है. तो दूर-दूर तक दीयों की लौ और गीतों की गूंज सुनाई देती है. यही है छठ की असली खूबसूरती- भक्ति, कृतज्ञता और उम्मीद का संगम.

