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Ahoi Asthami 2025: करवा चौथ के बाद क्यों करते हैं आहोई अष्टमी का व्रत, जानें इसका महत्व

Ahoi Asthami 2025: अहोई अष्टमी का व्रत मां अपने बच्चों के उज्जवल भविष्य के लिए रखती हैं. साल 2025 में ये व्रत 13 अक्टूबर को किया जाएगा. तो आइए जानते हैं इससे जुड़े पूजा के मुहूर्त और पूजा विधि के बारे में.

Published by Shivi Bajpai

Ahoi Asthami 2025: हिंदू धर्म में व्रत और त्योहार परिवार की सुख-समृद्धि और संतानों की लंबी आयु के लिए विशेष महत्व रखते हैं. करवा चौथ के तुरंत बाद पड़ने वाला अहोई अष्टमी व्रत माताओं के लिए अत्यंत पवित्र माना जाता है. यह व्रत मुख्य रूप से संतान की दीर्घायु, अच्छे स्वास्थ्य और सुखमय जीवन के लिए किया जाता है. जिस प्रकार करवा चौथ पति की लंबी आयु के लिए किया जाता है, उसी प्रकार अहोई अष्टमी का व्रत बच्चों के मंगलमय जीवन हेतु समर्पित होता है.

अहोई अष्टमी 2025 की तिथि और मुहूर्त

पंचांग के अनुसार, साल 2025 में अहोई अष्टमी व्रत 5 नवंबर, बुधवार को रखा जाएगा.

अष्टमी तिथि प्रारंभ: 5 नवंबर, सुबह 07:04 बजे

अष्टमी तिथि समाप्त: 6 नवंबर, सुबह 04:46 बजे

पूजा का शुभ मुहूर्त (संध्या समय): सूर्यास्त के बाद शाम को 05:30 बजे से 06:50 बजे तक (स्थानीय समय अनुसार अंतर संभव)

अहोई अष्टमी व्रत की पूजा विधि

व्रती महिलाएं प्रातः स्नान कर संकल्प लेती हैं और दिनभर निर्जल व्रत करती हैं.

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संध्या समय दीवार पर या कागज पर अहोई माता की प्रतिमा (आमतौर पर सात बिंदुओं और स्याहूरे यानी साही के चित्र के साथ) बनाई जाती है.

पूजन स्थल को स्वच्छ करके वहां जल से भरा कलश, दीया, रोली, चावल और गेहूं के दाने रखे जाते हैं.

महिलाएं अहोई माता की कथा सुनती हैं और धूप-दीप जलाकर पूजा करती हैं.

पूजा के बाद तारा उदय देखकर या सितारे को अर्घ्य देकर व्रत खोला जाता है.

व्रत का महत्व

अहोई अष्टमी का व्रत केवल धार्मिक दृष्टि से ही नहीं बल्कि भावनात्मक रूप से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है. यह व्रत मातृत्व के समर्पण और संतान के प्रति असीम प्रेम का प्रतीक है. मान्यता है कि इस दिन अहोई माता की आराधना करने से संतान पर आने वाले संकट टल जाते हैं और बच्चे का जीवन सुखी और समृद्ध होता है. जिन दंपतियों को संतान की प्राप्ति में कठिनाई आती है, उनके लिए भी यह व्रत विशेष रूप से फलदायी माना गया है.

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क्यों होता है करवा चौथ के बाद?

करवा चौथ जहां पति की लंबी आयु और दांपत्य सुख के लिए किया जाता है, वहीं अहोई अष्टमी माताओं द्वारा बच्चों की सुरक्षा के लिए मनाई जाती है. इन दोनों व्रतों के बीच का रिश्ता यह दर्शाता है कि हिंदू परंपरा में परिवार के हर सदस्य के स्वास्थ्य और दीर्घायु के लिए विशेष व्रत और पूजा का विधान है.

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