Indian Ocean: दक्षिण एशिया के नीचे फैला विशाल महासागर जिसे हम भारतीय महासागर कहते हैं, उसके नाम के पीछे एक दिलचस्प कहानी है. क्या आपने कभी सोचा है कि सिर्फ यही महासागर किसी देश के नाम पर क्यों रखा गया? 1960 और 1970 के दशक में इंडोनेशिया और पाकिस्तान ने ‘भारतीय महासागर’ नाम पर सवाल उठाया. उनका कहना था कि ये नाम भारत को ज्यादा महत्व देता है. 1963 में, इंडोनेशिया के राष्ट्रपति सुकर्णो ने अपने नौसेना प्रमुख को कहा कि इसे ‘इंडोनेशियाई महासागर’ कहा जाए. 1971 में, पाकिस्तान के विद्वान लतीफ अहमद शेरवानी ने इसे ‘आफ्रो-एशियाई महासागर’ नाम देने का सुझाव दिया. उनका मानना था कि महासागर किसी एक देश के नाम पर नहीं होना चाहिए.
1980 के दशक तक ये बहस चलती रही. इतिहास ने नाम बनाए रखा. ‘भारतीय महासागर’ नाम की कहानी 2000 साल पुरानी है. दूसरी सदी ईसा पूर्व, भारतीय मसाले, कपड़े और रत्न रोमन साम्राज्य में भेजे जाते थे. उस समय रोमन भूगोलविदों ने भारत के दक्षिण में समुद्र को Oceanus Indicus कहा. ग्रीक और रोमन लोग इसे कभी-कभी Erythraean Sea भी कहते थे. प्राचीन संस्कृत ग्रंथों में इसे सिंधु महासागर कहा गया, जो सिंधु नदी के नाम पर रखा गया था. समय के साथ ये नाम मिलकर महासागर की पहचान बने.
यूरोपीय खोजकर्ताओं का योगदान
15वीं सदी में जब यूरोपीय खोजकर्ता आए, उन्होंने इसे ‘Sea of India’ या ‘Eastern Sea’ कहा. 1515 में लैटिन मानचित्रों में इसे Oceanus Orientalis Indicus लिखा गया. बाद में ये नाम अंग्रेजी में Indian Ocean बन गया. 18वीं सदी तक ये नाम पूरी दुनिया में मान्यता प्राप्त हो गया.
आज का भारतीय महासागर
आज, भारतीय महासागर दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा महासागर है. इसका क्षेत्रफल लगभग 72 मिलियन वर्ग किलोमीटर है. ये महासागर लंबे समय से देशों के बीच व्यापार और सांस्कृतिक आदान-प्रदान का रास्ता रहा है.

