Cheapest Cashews in India: संथाल परगना क्षेत्र में बसा जामताड़ा झारखंड का एक ऐसा ज़िला है जहां हरियाली के बीच जीवन की सादगी बसती है. इसकी लाल दोमट मिट्टी, हल्की वर्षा और मध्यम तापमान मिलकर काजू के पौधों के लिए स्वर्ग का काम करते है. खेतों की मेड़ों पर हवा में लहराते काजू के पेड़ अब इस क्षेत्र की एक नई पहचान बन गए है.
झारखंड मिलता है ये
लगभग बीस साल पहले तक यहां किसी ने कल्पना भी नहीं की थी कि यह जमीन काजू की खेती के लिए उपयुक्त हो सकती है. लेकिन झारखंड सरकार की ‘कृषि विविधीकरण योजना’ ने किसान का नजरिया बदल दिया है. इस योजना के तहत दिए गए प्रशिक्षण ने उनमें नई ऊर्जा का संचार किया है. धीरे-धीरे कुंडहित, नारायणपुर और करमाटांड़ जैसे प्रखंडों में काजू के पौधे खिलने लगे और देखते ही देखते जामताड़ा का परिदृश्य काजू की खेती से बदल गया है.
काजू की किफ़ायती खेती की कहानी भी दिलचस्प है. यहां जमीन सस्ती है. मज़दूरी सस्ती है और बार-बार बारिश होने से सिंचाई की अच्छी व्यवस्था है. सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि किसान अपनी उपज बिचौलियों के बजाय सीधे बाज़ार या छोटे सहकारी समूहों के माध्यम से बेचते है. यही कारण है कि जामताड़ा में काजू गोवा या केरल के काजू से 25-30 प्रतिशत सस्ते हैं और स्वाद व गुणवत्ता में भी लगभग बराबर है.
कैसे किलो मिलता है?
जामताड़ा में काजू सड़क किनारे ठेलों पर बिकते हैं, ठीक वैसे ही जैसे दिल्ली-एनसीआर में सब्ज़ियां बिकती हैं. जामताड़ा में आप काजू 50 रुपये किलो से भी कम में खरीद सकते हैं. आप चाहें तो 2 किलो का एक पैकेट 100 रुपये में घर ला सकते हैं. जबकि दिल्ली-एनसीआर में यही काजू 600 से 900 रुपये किलो बिकते है.
जामताड़ा में काजू इतने सस्ते होने के कई कारण है. जामताड़ा में काजू की खेती तो बड़ी मात्रा में होती है, लेकिन प्रसंस्करण इकाइयों की कमी है. भंडारण सुविधाओं की कमी और खराब परिवहन व्यवस्था भी बड़ी चुनौतियां पेश करती है. इसलिए किसानों को काजू की कटाई के तुरंत बाद उसे बेचना पड़ता है. वरना वे खराब होकर सड़ सकते है. इसलिए वे पटरियों पर दुकानें लगाकर कच्चे काजू बेहद सस्ते दामों पर बेचते है. वहां से देश के विभिन्न हिस्सों के बड़े व्यापारी काजू खरीदते हैं और उन्हें ऊंचे दामों पर बेचते है.

