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Urban Fertility: शहरी महिलाएं नहीं बनना चाहती हैं माँ? वजह जानकर हैरान हो जाएंगे आप!

शहरी महिलाएं माँ बनने से क्यों पीछे हट रही हैं? जानिए घटती जन्मदर के पीछे की असली कहानी और इसका भविष्य पर क्या असर पड़ेगा.

Published by Shivani Singh

भारत के लिए एक नई डेमोग्राफिक चुनौती का वक्त आ गया है, और इस पर विचार करना बेहद जरुरी हो गया है. हाल ही में इंडिया इकोनॉमिक समिट 2025 में इकोनॉमिस्ट और प्रधानमंत्री की इकोनॉमिक एडवाइजरी काउंसिल की सदस्य, शमिका रवि ने इस मुद्दे पर बात की है. उन्होंने कहा कि भारत एक अहम डेमोग्राफिक बदलाव से गुजर रहा है, क्योंकि शहरी क्षेत्रों में जन्म दर लगातार घट रही है और अधिक महिलाएं मदरहुड को टालने लगी हैं या इससे बचने का प्रयास कर रही हैं.

यह सिर्फ स्वास्थ्य या सामाजिक बदलाव नहीं है, बल्कि एक बड़ा आर्थिक संकेत है, जिस पर ध्यान देने की जरुरत है. उनके अनुसार, इस गिरावट के पीछे बदलती अपेक्षाएं, बढ़ते खर्चे और महिलाओं के लिए सहायक संरचनाओं की कमी जिम्मेदार हैं, जो उन्हें काम और परिवार के बीच संतुलन बनाने में मदद कर सकें.

आर्थिक दबाव और बदलती प्राथमिकताएं

रवि ने इस मुद्दे को और गहराई से समझाया कि बड़े शहरों में जीवनयापन की बढ़ती लागत, कठिन करियर विकल्प और सीमित पारिवारिक सहायता संरचनाओं ने महिलाओं के परिवार नियोजन के विकल्पों को प्रभावित किया है. उन्होंने कहा कि अब शहरी महिलाएं मदरहुड को अपनी व्यक्तिगत स्वतंत्रता और पेशेवर विकास के मुकाबले एक “ट्रेड-ऑफ” के रूप में देख रही हैं.

रवि ने यह भी कहा कि महिलाओं के लिए परिवार-समर्थक नीतियां अब आर्थिक स्थिरता और विकास के लिए महत्वपूर्ण हो गई हैं। उन्होंने यह सुझाव दिया कि भारत को ऐसी नीतियां बनानी चाहिए जो महिलाओं को मदरहुड छोड़े बिना करियर बनाने में मदद करें.

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परिवार-समर्थक नीतियों की आवश्यकता

शमिका रवि ने इस बदलाव के लिए संरचनात्मक सुधारों की जरूरत पर जोर दिया, जिनमें बेहतर चाइल्डकेयर सिस्टम, लचीले कामकाजी मॉडल और घरों में बिना भुगतान के देखभाल कार्य को अधिक महत्व देना शामिल है. उन्होंने कहा कि “परिवार-समर्थक नीतियां आर्थिक वृद्धि के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं.”

वह यह भी मानती हैं कि घटती जन्म दर सीधे तौर पर श्रमबल के अनुमान और भविष्य के डेमोग्राफिक संतुलन से जुड़ी हुई है. अगर यह ट्रेंड जारी रहा, तो भारत को अपने डेमोग्राफिक लाभ को खोने का खतरा हो सकता है.

भविष्य के लिए रणनीतियाँ

रवि ने चेतावनी दी कि यदि भारत इस ट्रेंड पर समय रहते ध्यान नहीं देता, तो उसे श्रमबल की कमी और बढ़ती उम्र पर निर्भरता जैसी असल चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है. उन्होंने यह भी कहा कि घरों में काम करने वाली महिलाओं को सम्मान और समर्थन देना भी आवश्यक है, ताकि परिवारों का इकोसिस्टम मजबूत हो और दीर्घकालिक डेमोग्राफिक लक्ष्य पूरे किए जा सकें.

समिट के दौरान, रवि ने यह भी स्पष्ट किया कि भारत को शहरी घरों में बदलती सोच को पहचानने की जरूरत है और इस बदलाव के लिए अस्थायी प्रोत्साहनों के बजाय स्थायी नीति सुधारों के जरिए काम करना चाहिए. उन्होंने यह भी कहा कि यह ट्रेंड केवल संख्याओं तक सीमित नहीं है, बल्कि यह सामाजिक और आर्थिक बदलावों का संकेत देता है, जिसे अभी से सही दिशा में संभालने की जरूरत है.

Shivani Singh
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