Mohan Bhagwat: आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान शिक्षा और समाज को लेकर कई बातें कहीं। इस दौरान उन्होंने भाजपा से संघ के रिश्ते पर भी बात की। उन्होंने कहा कि अगर कोई भी तकनीक आती है, तो उसका इस्तेमाल मानव हित में करना होगा और उसके दुष्प्रभावों से बचना होगा। ताकि तकनीक मानव पर हावी न हो जाए। इसलिए शिक्षा ज़रूरी है। मोहन भागवत ने कहा, “अच्छी शिक्षा सिर्फ़ साक्षरता नहीं है। शिक्षा वह है जो इंसान को सच्चा इंसान बनाती है। ऐसी शिक्षा से इंसान ज़हर को दवा में बदल सकता है।”
हमारे राज्य सरकारों और केंद्र सरकारों के साथ अच्छे संबंध (RSS BJP Relation)
मोहन भागवत ने कहा, “हमारे हर सरकार, राज्य सरकारों और केंद्र सरकारों, दोनों के साथ अच्छे संबंध हैं, लेकिन कुछ व्यवस्थाएँ ऐसी होती हैं जिनमें कुछ आंतरिक विरोधाभास होते हैं। कुल मिलाकर व्यवस्था वही है जिसका आविष्कार अंग्रेजों ने शासन करने के लिए किया था। इसलिए हमें कुछ नवाचार करने होंगे।”
RSS के चीफ ने आगे कहा-“भले ही कुर्सी पर बैठा व्यक्ति हमारे प्रति पूरी तरह समर्पित हो, उसे यह करना ही होगा और वह जानता है कि इसमें क्या बाधाएँ हैं। वह यह कर सकता है या नहीं भी कर सकता है। हमें उसे वह आज़ादी देनी होगी, इसमें कहीं कोई विवाद नहीं है। हमारे देश में शिक्षा बहुत पहले ही लुप्त हो गई थी और एक नई शिक्षा प्रणाली शुरू की गई क्योंकि हम शासकों के गुलाम थे। उन्हें इस देश पर शासन करना था, विकास नहीं। उन्होंने देश पर शासन करने के लिए ही सारी व्यवस्थाएँ बनाईं।”
हमें सिर्फ़ राज्य नहीं चलाना है…
मोहन भागवत ने कहा, “अब हम स्वतंत्र हो गए हैं। हमें सिर्फ़ राज्य नहीं चलाना है, जनता का ध्यान रखना है। उनकी मानसिकता विकसित होनी चाहिए। उनकी मानसिकता विकसित करने के लिए ज़रूरी है कि बच्चों को अतीत यानी इतिहास की जानकारी मिले, ताकि बच्चों को गर्व हो कि हम भी कुछ हैं, हम भी कुछ कर सकते हैं। ये सभी बदलाव ज़रूरी थे।”
मोहन भागवत ने कहा कि पिछले कुछ वर्षों में जागरूकता बढ़ी है। इसलिए नई शिक्षा नीति में ये सभी चीज़ें शामिल की जानी चाहिए। मैं सुन रहा हूँ कि इस तरह के प्रयास चल रहे हैं। कुछ चीज़ें हो चुकी हैं और कुछ होने वाली हैं। प्रशासन में इस तरह की व्यवस्था को बदलना ज़रूरी है।
‘अंग्रेज़ी एक भाषा है, भाषा सीखने में क्या दिक्कत है’ (Universal Habits)
मोहन भागवत ने आगे कहा, “हमारी परंपरा और मूल्यों की शिक्षा दी जानी चाहिए, यह धार्मिक नहीं बल्कि सामाजिक है। हमारे धर्म अलग-अलग हो सकते हैं, लेकिन एक समाज के रूप में हम एक हैं। जैसे माता-पिता का सम्मान करना, क्या किसी धर्म में वर्जित है? यह शिक्षा दी जानी चाहिए, यह एक तरह से सार्वभौमिक है। अच्छी आदतें सार्वभौमिक होती हैं। ऐसा नहीं है कि आपको अंग्रेजी उपन्यासों में यह नहीं मिलेगा। अंग्रेज़ी एक भाषा है, भाषा सीखने में क्या दिक्कत है।”
उन्होंने आगे कहा कि जब मैं आठवीं कक्षा में था, तब मेरे पिताजी ने मुझे ओलिवर ट्विस्ट पढ़ाया था। मैंने कई अंग्रेज़ी उपन्यास पढ़े हैं, लेकिन इससे हिंदू धर्म के प्रति मेरे प्रेम में कोई कमी नहीं आई। लेकिन हमने ओलिवर ट्विस्ट पढ़ा और प्रेमचंद की कहानियाँ छोड़ दीं, यह ठीक नहीं है। हर भाषा की एक लंबी और अच्छी परंपरा होती है, उसे सीखना चाहिए। इसकी शिक्षा हर जगह मिशनरी स्कूलों और मदरसों में उपलब्ध होनी चाहिए।
‘आरिफ बेग ने कहा था…’
एक घटना का ज़िक्र करते हुए मोहन भागवत ने कहा, “एक बार श्री आरिफ बेग नागपुर आए थे, उन्होंने कहा था कि इस देश की परंपरा सबके लिए अच्छी है। उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा था कि जब सुग्रीव और अन्य वानरों को आभूषण मिले, तो उन्हें पहचानना था कि वे सीता जी के हैं या नहीं, तब लक्ष्मण को उन्हें पहचानने के लिए बुलाया गया। उन्होंने कहा कि मुझे केवल पैर की उंगलियाँ दिखाओ क्योंकि मैंने सीता जी का चेहरा कभी नहीं देखा, मैंने तो केवल उनके पैर देखे थे।
मोहन भागवत ने कहा कि इसमें जो संस्कृति झलकती है, वह बहुत महान है। यह सबके लिए समान है। सभी को इसकी शिक्षा मिलनी चाहिए, इससे हमारे धर्म को कोई ठेस नहीं पहुँचती। सभी में ये मूल्य होने चाहिए।
मैंने कई अंग्रेजी उपन्यास पढ़े… (Cultural Values)
उन्होंने आगे कहा कि जब मैं आठवीं कक्षा में था, तब मेरे पिताजी ने मुझे ओलिवर ट्विस्ट पढ़ाया था। मैंने कई अंग्रेजी उपन्यास पढ़े हैं, इससे मेरे हिंदू धर्म के प्रति प्रेम में कोई कमी नहीं आई। लेकिन हमने ओलिवर ट्विस्ट पढ़ा और प्रेमचंद की कहानियाँ छोड़ दीं, यह अच्छा नहीं है। हर भाषा की एक लंबी और अच्छी परंपरा होती है, उसे सीखना चाहिए। इसकी शिक्षा हर जगह मिशनरी स्कूलों और मदरसों में उपलब्ध होनी चाहिए।
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‘संस्कृत का अध्ययन जरूरी…’
मोहन भागवत ने कहा, “स्वयं को, अपने ज्ञान को, अपनी परंपरा को समझने के लिए संस्कृत का बुनियादी ज्ञान ज़रूरी है। इसे अनिवार्य बनाने की ज़रूरत नहीं है, लेकिन भारत को सही मायने में समझने के लिए संस्कृत का अध्ययन ज़रूरी है। यह उत्साह पैदा करना होगा।”
उन्होंने आगे कहा कि नई शिक्षा नीति में पंचकोशी शिक्षा के तत्व को स्वीकार किया गया है, इसमें सभी कोशों यानी कला, खेल, योग, सभी का विकास शामिल है। इसे धीरे-धीरे विकसित करना होगा। हर व्यक्ति को कला आनी चाहिए। अच्छा गीत सभी को समझ में आना चाहिए, कान उसे समझ सकें, भले ही बुद्धि उसे न समझे। लेकिन इसे भी अनिवार्य नहीं बनाया जाना चाहिए क्योंकि इसे अनिवार्य करने पर प्रतिक्रिया होती है।
घुसपैठ को रोकना चाहिए
RSS प्रमुख मोहन भागवत ने कहा, “घुसपैठ को रोकना चाहिए। सरकार कुछ प्रयास कर रही है, धीरे-धीरे आगे बढ़ रही है। लेकिन समाज के हाथ में है कि हम अपने देश में रोज़गार अपने देश के लोगों को देंगे। अपने देश में भी मुसलमान नागरिक हैं। उन्हें भी रोज़गार की जरूरत है। मुसलमान को रोज़गार देना है तो उन्हें दीजिए। जो बाहर से आया है उन्हें क्यों दे रहे हो? उनके देश की व्यवस्था उन्हें करनी चाहिए…”
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