Modi Governance Institutional Renaming: केंद्र सरकार के हालिया फैसले के बाद देशभर के सभी राज्यों में मौजूद राजभवन का नाम आधिकारिक रूप से बदलकर लोकभवन कर दिया गया है. यह कदम सिर्फ नाम परिवर्तन नहीं, बल्कि शासन की सोच और दृष्टिकोण में आए बड़े बदलाव का प्रतीक माना जा रहा है. मोदी सरकार के 11 वर्षों में कई महत्वपूर्ण सरकारी स्थानों और मार्गों के नाम बदले गए हैं, जिनका उद्देश्य सत्ता को विशेषाधिकार की बजाय जनता की सेवा के रूप में प्रस्तुत करना है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के शासनकाल में नाम बदलने की प्रक्रिया के पीछे लगातार यह संदेश दिया जाता रहा है कि सत्ता कोई पद-लाभ का साधन नहीं बल्कि कर्तव्य, जिम्मेदारी और जनसेवा का अवसर है. नाम परिवर्तन को ‘दिखावा’ नहीं, बल्कि प्रशासनिक सोच में बदलाव का संकेत बताया जाता है.
राजपथ का नाम बदलकर ‘कर्तव्य पथ’ रखा गया
सबसे पहले, प्रतिष्ठित राजपथ का नाम बदलकर कर्तव्य पथ रखा गया. पहले यह मार्ग शक्ति, साम्राज्य या राजाओं के प्रतीक से जुड़ा हुआ था. लेकिन “कर्तव्य पथ” नाम से यह संदेश दिया गया कि सत्ता शासकों को नहीं, बल्कि कर्तव्यनिष्ठ सेवकों के रूप में कार्य करने का अवसर प्रदान करती है. यह बदलाव सत्ता से जनता की ओर झुकाव का प्रतीक बन गया.
बदला गया पीएम आवास का नाम
इसी तरह, प्रधानमंत्री के आधिकारिक निवास 7 रेस कोर्स रोड का नाम वर्ष 2016 में बदलकर लोक कल्याण मार्ग किया गया. इस नाम का मूल भाव है कि प्रधानमंत्री का पद विशेषाधिकार का नहीं, बल्कि जनता के कल्याण के लिए काम करने की जिम्मेदारी का है. यह बदलाव उच्च पदों की प्रतिष्ठा को जनता के हितों के अधीन रखने की सोच का मजबूत उदाहरण है.
प्रधानमंत्री कार्यालय का नाम बदलकर हुआ ‘सेवा तीर्थ’
प्रधानमंत्री कार्यालय वाले नए परिसर को सेवा तीर्थ नाम दिया गया है. “तीर्थ” आमतौर पर पवित्र स्थल के लिए इस्तेमाल होता है, और यह नाम इंगित करता है कि यह परिसर प्रशासनिक निर्णयों का केंद्र होने के साथ-साथ सेवा और समर्पण की भावना का भी प्रतीक है. इसका उद्देश्य यह दर्शाना है कि शासन का हर कदम सेवा-प्रधान होना चाहिए.
सेंट्रल सचिवालय का नाम बदलकर कर्तव्य भवन
इसी क्रम में, देश के प्रमुख प्रशासनिक केंद्र सेंट्रल सचिवालय का नाम बदलकर कर्तव्य भवन रखा गया है. यह भी इस भावना को रेखांकित करता है कि सरकारी पद किसी सम्मान या अधिकार का प्रतीक नहीं, बल्कि जनता की सेवा का कर्तव्य है.
अब राजभवन का नाम बदलकर लोकभवन किया जाना उसी सोच की निरंतरता है. यह दर्शाता है कि सत्ता का हर संस्थान जनता से जुड़ा है, जनता के लिए है और जनता के प्रति जवाबदेह है. नाम बदलने की यह श्रृंखला लोक सेवा, पारदर्शिता और जिम्मेदारी की दिशा में एक वैचारिक बदलाव का प्रतीक बन चुकी है.
समग्र रूप से, यह कदम शासन के ढांचे में ‘सेवा भाव, कर्तव्य भावना, और जनता सर्वोपरि’ की नई संस्कृति स्थापित करने का प्रयास है, जो भारत के लोकतांत्रिक चरित्र को और मजबूत बनाता है.
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