Earthquake News: दिल्ली-एनसीआर में गुरुवार (10 जुलाई, 2025) को भूकंप के तेज झटके महसूस किए गए हैं। जानकारी के अनुसार, भूकंप का केंद्र हरियाणा का झज्जर था। झटके महसूस होने के बाद लोग अपने घरों से बाहर निकल आए। आपने एक चीज अमूमन सुनी होगी कि जलवायु परिवर्तन हो रहा है, जिसके कारण भूकंप का खतरा लगातार सिर पर मंडरा रहा है, वहीं गर्मी के मौसम में भी भूकंप के झटके ज्यादा महसूस किए जाते हैं, लेकिन इसमें कितनी सच्चाई है? आइए जानते हैं।
भूकंप से पहले बदल जाता है मौसम?
भूकंप को लेकर कई मिथक हैं। कहा जाता है कि ‘भूकंप वाला मौसम’ जैसी कोई चीज भी होती है। भूकंप से पहले मौसम बदल जाता है। जैसे-जैसे मौसम शुष्क होता जाता है और आसमान बादलों से ढक जाता है। यह मिथक चौथी शताब्दी ईसा पूर्व में यूनानी दार्शनिक अरस्तू ने दिया था। उन्होंने कहा था कि भूकंप भूमिगत गुफाओं से निकलने वाली हवाओं के कारण आते हैं। उनका मानना था कि जमीन के अंदर फंसी हवा की बड़ी मात्रा भूकंप से पहले पृथ्वी की सतह पर मौसम को गर्म और शांत बना देती है।
क्यों आता है भूकंप?
पृथ्वी के अंदर कुल सात प्लेटें हैं। जो हमेशा क्रियाशील रहती हैं। जहाँ ये प्लेटें टकराती हैं, उन्हें भ्रंश क्षेत्र कहते हैं। जब ये प्लेटें टकराती हैं, तो ऊर्जा बाहर निकलने की कोशिश करती है। इससे उत्पन्न होने वाली हलचल भूकंप का रूप ले लेती है। भूकंप का केंद्र सतह के जितना करीब होता है, विनाश उतना ही ज्यादा होता है।
यदि भूकंप की तीव्रता 0 से 1.9 रिक्टर है, तो इसका एहसास नहीं होता। इसका पता सीस्मोग्राफ से लगाया जाता है। वहीं, जब तीव्रता 2 से 2.9 रिक्टर होती है, तो हल्का कंपन महसूस होता है।
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इसके अलावा, अगर इसकी तीव्रता 3 से 3.9 है, तो हल्के झटके महसूस होते हैं। अगर रिक्टर स्केल पर यह 4 से 4.9 है, तो खिड़कियां टूट सकती हैं। वहीं, अगर रिक्टर स्केल पर यह 5 से 5.9 है, तो सामान और पंखे हिलने लगते हैं। अगर इसकी तीव्रता 6 से 6.9 है, तो घर की नींव दरक सकती है और अगर यह 7 से 7.9 है, तो मकान गिर सकते हैं और भारी तबाही हो सकती है। इसके बाद, अगर 8 से 8.9 की तीव्रता से भूकंप आता है, तो सुनामी का खतरा होता है। अगर भूकंप की तीव्रता 9 है, तो खड़े होने पर भी धरती हिलती हुई दिखाई देगी।
क्या जलवायु परिवर्तन का भूकंपों पर असर पड़ता है?
शोध बताते हैं कि हमारी बदलती जलवायु का असर सिर्फ पृथ्वी के ऊपरी हिस्से पर ही नहीं पड़ता, बल्कि जलवायु परिवर्तन और खासकर बढ़ती वर्षा दर और ग्लेशियरों के पिघलने से पृथ्वी की सतह के नीचे भूकंप और ज्वालामुखी विस्फोट जैसे ख़तरे भी बढ़ सकते हैं। यूरोप और उत्तरी अमेरिका में सूखे को पहले भी मीडिया में काफ़ी कवरेज मिली है, लेकिन जलवायु परिवर्तन पर अंतर-सरकारी पैनल की 2021 की छठी आकलन रिपोर्ट से पता चलता है कि 1950 के बाद से दुनिया के कई क्षेत्रों में औसत वर्षा वास्तव में बढ़ी है।
मौसम की वजह से आता है भूकंप?
एक गर्म वातावरण अधिक जलवाष्प को धारण कर सकता है, जिससे बहुत तेज वर्षा हो सकती है। भू-वैज्ञानिकों ने वर्षा दर और भूकंपीय गतिविधि पर लंबे समय से शोध किया है, और पाया है कि हिमालय में, भूकंप की आवृत्ति पूरे वर्ष मानसून के मौसम से प्रभावित होती है। शोध से पता चलता है कि हिमालय में 48% भूकंप शुष्क और मानसून-पूर्व महीनों मार्च, अप्रैल और मई के दौरान आते हैं, जबकि केवल 16% मानसून के मौसम में आते हैं। वर्षा ऋतु के दौरान, भूमि ऊर्ध्वाधर और क्षैतिज रूप से 4 मीटर तक धंस जाती है। जब सर्दियों में पानी गायब हो जाता है, तो प्रभावी ‘रिबाउंड’ क्षेत्र अस्थिर हो जाता है और भूकंपों की संख्या बढ़ जाती है।

