Chief Justice of India B R Gavai: भारत के मुख्य न्यायाधीश बी आर गवई ने शनिवार को बताया कि कैसे आरक्षण के लिए अनुसूचित जातियों के उप-वर्गीकरण पर उनके फैसले के लिए उनकी आलोचना की गई है,जिसमें उनके अपने समुदाय के लोग भी शामिल हैं।
शनिवार को गोवा हाई कोर्ट बार एसोसिएशन में दिए अपने भाषण में बोलते हुए भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) भूषण रामकृष्ण गवई ने कहा कि पहले भी वक्ताओं ने भी उप-वर्गीकरण पर मेरे फैसले के बारे में बात की। क्रीमी लेयर और अनुसूचित जाति में उप-वर्गीकरण पर अपने विवादास्पद फैसले का उल्लेख करते हुए CJI गवई ने कहा, ‘मेरे इस फैसले की मेरे अपने समुदाय के लोगों ने कड़ी आलोचना की, लेकिन मैं हमेशा मानता हूं कि फैसला जनता की इच्छाओं या दबाव के आधार पर नहीं, बल्कि कानून और अपनी अंतरात्मा के अनुसार होना चाहिए।’
सहयोगियों ने जताई फैसले पर आपत्ति
उन्होंने कहा कि उनके कुछ सहयोगियों ने भी इस फैसले पर आपत्ति जताई थी, लेकिन उनका तर्क स्पष्ट था। सीजेआई बीआर गवई ने कहा, ‘मैंने देखा है कि आरक्षित वर्ग से पहली पीढ़ी आईएएस बनती है, फिर दूसरी और तीसरी पीढ़ी भी उसी कोटे का लाभ उठाती है। क्या मुंबई या दिल्ली के सर्वश्रेष्ठ स्कूलों में, हर सुविधा से लैस, पढ़ने वाला बच्चा, जिला परिषद या ग्राम पंचायत के स्कूल में पढ़ने वाले ग्रामीण मजदूर या किसान के बच्चे के बराबर हो सकता है?’
क्या था फैसला ?
बता दें कि अगस्त 2024 में 6-1 बहुमत से दिए गए ऐतिहासिक फैसले में सात न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने कहा कि अनुसूचित जातियां सामाजिक रूप से समरूप वर्ग नहीं हैं और राज्यों द्वारा उनमें से कम सुविधा प्राप्त लोगों को आरक्षण प्रदान करने के उद्देश्य से उन्हें उप-वर्गीकृत किया जा सकता है।
समानता का मतलब सभी के लिए समान व्यवहार नहीं है-गवई
संविधान के अनुच्छेद 14 का हवाला देते हुए भारत के मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि, “समानता का मतलब सभी के लिए समान व्यवहार नहीं है। संविधान असमानता को समान बनाने के लिए असमान व्यवहार की वकालत करता है। एक मुख्य सचिव के बच्चे, जो सबसे अच्छे स्कूलों में पढ़ता है, और एक मजदूर के बच्चे, जो सीमित संसाधनों में पढ़ता है, की तुलना करना संविधान की मूल भावना के खिलाफ है।”
आलोचना का हमेशा स्वागत है-गवई
भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) भूषण रामकृष्ण गवई ने कहा कि उनके इस विचार का समर्थन सुप्रीम कोर्ट के तीन अन्य जजों ने भी किया। क्रीमी लेयर पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले की आलोचना पर मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई ने कहा, “आलोचना का हमेशा स्वागत है। जज भी इंसान हैं और गलतियाँ कर सकते हैं।” उन्होंने खुलासा किया कि हाईकोर्ट के जज के तौर पर उन्होंने खुद अपने दो फैसलों को ‘पर इनक्यूरियम’ (बिना सोचे-समझे दिए गए फैसले) माना था। सुप्रीम कोर्ट में भी एक बार ऐसा हुआ था।
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