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Virginity Test Law: भारत में किसी लड़की का ‘वर्जिनिटी टेस्ट’ पर पूरी तरह रोक! जानें क्या हैं कानूनी

Virginity Test Law: मदरसा प्रबंधन ने कक्षा 8 में दाखिले के लिए छात्रा से वर्जिनिटी सर्टिफिकेट (मेडिकल टेस्ट) की मांग की है. आइए जानें कि भारत में वर्जिनिटी टेस्ट से जुड़े क्या कानून हैं.

Published by Mohammad Nematullah

Virginity Test Law: मुरादाबाद के पाकबड़ा इलाके से हाल ही में एक चौंकाने वाली घटना सामने आई है. चंडीगढ़ की एक मदरसे में कथित तौर पर वर्जिनिटी सर्टिफिकेट मांगा गया था. जब उसने मेडिकल जांच कराने से इनकार कर दिया, तो उसका नाम रजिस्टर से हटा दिया गया और कथित तौर पर उसे ट्रांसफर सर्टिफिकेट जारी कर दिया गया था. छात्रा के पिता की शिकायत के बाद जांच शुरू कर दी गई है. लेकिन इस मामले ने एक सवाल खड़ा कर दिया है. क्या भारत में किसी भी लड़की का वर्जिनिटी टेस्ट कराया जा सकता है? आइए जानें.

क्या है कानून ?

भारत में वर्जिनिटी टेस्ट करवाना या फिर उसकी मांग करना गैरकानूनी, असंवैधानिक और अमानवीय है. पिछले कुछ सालों में सर्वोच्च न्यायालय से लेकर अलग-अलग न्यायालयों तक कई अदालती फैसलों ने इस बात को साफ कहा कि ऐसी प्रथाएं महिलाओं की गरीमा और मौलिक अधिकारों का पूरी तरह से उल्लंघन करती है.

अदालतों ने क्या बताया?

दिल्ली उच्च न्यायालय ने 2023 में और छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय ने 2025 में साफ साफ कहा कि कौमार्य परीक्षण असंवैधानिक, भेदभावपूर्ण और महिलाओं के लिए अपमानजनक है. इन निर्णय में इस बात पर भी ज़ोर दिया गया कि सभ्य समाज में इस प्रथा का कोई स्थान नहीं है और यह लैंगिक समानता और मानवाधिकारों के सिद्धांतों के विरुद्ध है.

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संविधान के अनुच्छेद 21 का उल्लंघन

कौमार्य परीक्षण को भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 का सीधा उल्लंघन माना जाता है. यह जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार की गारंटी देता है. जिसमें सम्मान और निजता के साथ जीने का अधिकार भी शामिल है. किसी महिला को इस तरह के परीक्षण के अधीन करने से उसे दोनों अधिकारों से वंचित किया जाता है.

ऐतिहासिक सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय

इतना ही नहीं 2013 में भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने यौन उत्पीड़न के मामलों में इस्तेमाल होने वाले टू-फिंगर टेस्ट पर भी प्रतिबंध लगा दिया था. यह परीक्षण वैज्ञानिक रूप से निराधार है और पीड़िता के निजता और सम्मान के अधिकार का उल्लंघन करता है.

मनोवैज्ञानिक और शारीरिक प्रभाव

किसी महिला पर कौमार्य परीक्षण कराने के लिए दबाव डालने से गहरा मनोवैज्ञानिक आघात हो सकता है. पीड़ितों को शर्म अपमान, चिंता और अवसाद का अनुभव होता है. और यह आघात लंबे समय तक बना रह सकता है. चिकित्सा विशेषज्ञ इस बात पर ज़ोर देते हैं कि कौमार्य का निर्धारण करने का कोई वैज्ञानिक तरीका नहीं है. इसके अलावा ऐसी प्रथाओं को यौन उत्पीड़न, हमले और निजता के उल्लंघन से संबंधित प्रावधानों के तहत कानून के तहत आपराधिक रूप से दंडनीय माना जाता है.

Mohammad Nematullah

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