अगर मोबाइल नंबर 9 या 11 अंकों के होते तो क्या होता? जवाब सुनकर दिमाग घूम जाएगा!

क्या आपने कभी सोचा है कि मोबाइल नंबर हमेशा 10 अंकों के ही क्यों होते हैं? अगर एक भी अंक कम या ज़्यादा हो जाए तो कॉल क्यों नहीं लगती? दरअसल, इन 10 अंकों के पीछे छिपा है एक स्मार्ट गणित और तकनीकी सोच और....

Published by Anuradha Kashyap

हम रोज़ाना अपने मोबाइल से किसी न किसी को कॉल करते हैं, लेकिन शायद ही कभी सोचा हो कि आखिर ये मोबाइल नंबर 10 अंकों के ही क्यों होते हैं. अगर एक भी नंबर कम या ज़्यादा हो जाए, तो कॉल नहीं लगती, कभी सोचा है क्यों? दरअसल, ये सिर्फ टेक्निकल सुविधा नहीं, बल्कि गणित, जनसंख्या और नेटवर्क के बैलेंस से जुड़ी हुई एक सोची-समझी योजना का हिस्सा है. भारत जैसे विशाल देश में हर व्यक्ति को एक अलग पहचान देने के लिए जो नंबर सिस्टम अपनाया गया है, उसके पीछे गहरी सोच और योजना छिपी है.

क्यों चुने गए 10 अंक – इसके पीछे है गणित का कमाल

हर देश अपने मोबाइल नंबरों की लंबाई अपनी जनसंख्या के अनुसार तय करता है, भारत जैसे देश के लिए, जहां 140 करोड़ से अधिक लोग हैं, एक विशाल संख्या में यूनिक नंबरों की ज़रूरत होती है, 10 अंकों का सिस्टम इस ज़रूरत को पूरी तरह बैलेंस करता है. गणित के अनुसार, 10 अंकों वाले सिस्टम से कुल 10 अरब (10,000,000,000) यूनिक नंबर बनाए जा सकते है, ये इतनी बड़ी संख्या है कि हर नागरिक को अलग मोबाइल नंबर देना संभव हो जाता है. अगर नंबर सिर्फ 9 अंकों के होते, तो केवल 100 करोड़ संभावनाएं होतीं, जो भारत की बढ़ती जनसंख्या के लिए काफी नहीं थीं इसलिए TRAI और टेलीकॉम विभाग ने 10 अंकों की संरचना को भारत के लिए सबसे सही माना.

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हर अंक की अपनी भूमिका – नंबर के पीछे छिपा सिस्टम

मोबाइल नंबर सिर्फ एक पहचान नहीं है, बल्कि यह आपके टेलीकॉम नेटवर्क का पता भी है, भारत में हर मोबाइल नंबर की संरचना को दो भागों में बांटा गया है पहले चार या पांच अंक “नेटवर्क कोड” कहलाते हैं, जो बताते हैं कि आपका नंबर किस टेलीकॉम कंपनी और किस सर्कल (जैसे दिल्ली, मुंबई, बिहार) से जुड़ा है. इसके बाद के पांच या छह अंक “यूज़र नंबर” होते हैं, जो ग्राहक की व्यक्तिगत पहचान बनाते हैं. उदाहरण के तौर पर, अगर किसी नंबर की शुरुआत 98 या 99 से होती है, तो यह पहले BSNL या Airtel जैसे नेटवर्क से जुड़ा होता था। आज भी यही कोड सिस्टम कॉल को सही दिशा में रूट करने में मदद करता है.

पहले 6 या 7 अंकों के होते थे नंबर – फिर क्यों आया बदलाव

अगर आप 90 के दशक में फोन इस्तेमाल करते थे, तो याद होगा कि तब फोन नंबर 6 या 7 अंकों के होते थे. उस समय भारत में टेलीफोन सीमित लोगों तक ही था, इसलिए कम अंकों वाले नंबर पर्याप्त थे लेकिन 2000 के बाद मोबाइल क्रांति आई — हर हाथ में फोन और हर जेब में सिम कार्ड आने लगा. लोगों की संख्या बढ़ने के साथ-साथ नए कनेक्शनों की मांग भी तेज़ी से बढ़ी इस वजह से पुराने नंबरिंग सिस्टम में नंबर खत्म होने लगे तब TRAI ने पूरे देश में एक नया नंबरिंग प्लान लागू किया, जिसके तहत मोबाइल नंबरों को 10 अंकों का बना दिया गया.

Anuradha Kashyap

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