Vande Mataram Controversy: महाराष्ट्र में वंदे मातरम को लेकर एक बार फिर विवाद छिड़ गया है. राज्य सरकार ने 31 अक्टूबर से 7 नवंबर तक वंदे मातरम की 150वीं वर्षगांठ मनाने के लिए सभी स्कूलों में इसका पूरा संस्करण गाने का आदेश दिया, जिसके बाद समाजवादी पार्टी के नेता अबू आज़मी ने इसका विरोध किया. इसके चलते यह सवाल फिर उठा कि क्या वंदे मातरम गाने से इनकार करने पर कोई सज़ा हो सकती है.
क्या कहता है भारतीय कानून?
भारतीय कानून के अनुसार, वंदे मातरम गाना पूरी तरह स्वैच्छिक है, अनिवार्य नहीं. संविधान या किसी भी केंद्रीय कानून में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है जो नागरिकों को वंदे मातरम गाने के लिए बाध्य करे या इसके न गाने पर किसी प्रकार की सज़ा दे. संसद में भी सरकार ने यह स्पष्ट किया है कि वंदे मातरम से जुड़े कोई दंडात्मक नियम लागू नहीं हैं.
वंदे मातरम को भारत के राष्ट्रीय गीत का सम्मान प्राप्त है, लेकिन इसे राष्ट्रगान ‘जन गण मन’ जैसा संवैधानिक दर्जा नहीं मिला है. इसका अर्थ यह है कि भले ही यह गीत राष्ट्रीय एकता और देशभक्ति का प्रतीक है, पर नागरिक इसे गाने या न गाने के लिए स्वतंत्र हैं.
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सुप्रीम कोर्ट का इस मुद्दे पर निर्णय
सुप्रीम कोर्ट ने भी अपने कई निर्णयों में यह स्पष्ट किया है कि किसी व्यक्ति को राष्ट्रगान या वंदे मातरम गाने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता, जब तक वह उनका अनादर न करे. न्यायालय ने कहा कि देशभक्ति को बाध्यता से नहीं, बल्कि भावनाओं से मापा जाना चाहिए. संविधान का अनुच्छेद 19(1)(क) नागरिकों को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता देता है, जिसमें यह अधिकार शामिल है कि कोई व्यक्ति राष्ट्रीय प्रतीकों का सम्मान किस तरह व्यक्त करना चाहता है.
मद्रास हाईकोर्ट का स्कूलों को निर्देश
मद्रास हाईकोर्ट ने 2017 में स्कूलों और सरकारी दफ्तरों में वंदे मातरम गाने का निर्देश दिया था, लेकिन यह आदेश परामर्शात्मक था, बाध्यकारी नहीं. वहीं राष्ट्रीय सम्मान अपमान निवारण अधिनियम, 1971 केवल ध्वज और राष्ट्रगान के सम्मान को नियंत्रित करता है, वंदे मातरम को नहीं. इसलिए वंदे मातरम न गाना कोई अपराध नहीं है.
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