No Temples Country: दुनिया के ज्यादातर देशों में मंदिर, मस्जिद और चर्च आम बात हैं. ये जगहें लोगों की आस्था और परंपराओं से जुड़ी होती हैं. लेकिन एक देश ऐसा भी है जहां धर्म को निजी आस्था नहीं, बल्कि खतरे के रूप में देखा जाता है. उस देश का नाम है नार्थ कोरिया.
नार्थ कोरिया खुद को नास्तिक राज्य मानता है. यहां की सरकारी विचारधारा किसी भी तरह के संगठित धर्म को स्वीकार नहीं करती. बचपन से ही बच्चों को ये सिखाया जाता है कि धर्म बाहर से आया हुआ विचार है और ये लोगों को गलत रास्ते पर ले जा सकता है.
सरकार को धर्म से डर क्यों है
उत्तर कोरियाई सरकार का मानना है कि धर्म लोगों की निष्ठा को बांट सकता है. अगर कोई व्यक्ति ईश्वर या किसी धार्मिक विचार के प्रति ज्यादा वफादार होगा, तो उसकी निष्ठा राज्य से कम हो सकती है. इसी वजह से धर्म को व्यक्तिगत पसंद नहीं, बल्कि राज्य के खिलाफ सोच माना जाता है.
धर्म मानने की सजा
उत्तर कोरिया में धर्म का पालन करना बहुत बड़ा अपराध है. अगर किसी व्यक्ति के पास बाइबल, कुरान या कोई भी धार्मिक किताब मिल जाए, या वो छुपकर प्रार्थना करता पकड़ा जाए, तो उसे कड़ी सजा मिल सकती है. इसमें लंबी जेल, जबरन मजदूरी शिविर और कुछ मामलों में मौत तक की सजा शामिल है.
राजधानी में दिखावे की इमारतें
राजधानी प्योंगयांग में कुछ चर्च और मंदिर दिखाई देते हैं. लेकिन अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संगठनों का कहना है कि ये आम लोगों के लिए नहीं हैं. इन्हें ज्यादातर विदेशी मेहमानों को दिखाने के लिए बनाया गया है, ताकि बाहर की दुनिया को लगे कि यहां धार्मिक आजादी है.
नेता के प्रति भक्ति
धर्म की जगह उत्तर कोरिया के लोगों से ये उम्मीद की जाती है कि वे देश के शासक किम परिवार के प्रति पूरी निष्ठा रखें. खास तौर पर वर्तमान नेता किम जोंग-उन, उनके पिता और दादा को लगभग पूजा जैसा सम्मान दिया जाता है.
निजी जीवन पर भी कंट्रोल
उत्तर कोरिया में धर्म पर रोक सिर्फ सार्वजनिक जगहों तक सीमित नहीं है. लोगों के निजी जीवन पर भी कड़ी नजर रखी जाती है. निगरानी तंत्र, मुखबिर और विचारधारा से जुड़ी जांच यह सुनिश्चित करती है कि कोई भी व्यक्ति निजी तौर पर भी धार्मिक आस्था न रखे.
उत्तर कोरिया दुनिया के उन गिने-चुने देशों में शामिल है जहां धर्म को आजादी नहीं, बल्कि अपराध माना जाता है. यहां आस्था की जगह राज्य और उसके नेताओं के प्रति पूर्ण निष्ठा को सबसे ऊपर रखा जाता है.

