नहीं मिलती थी दोनों की सोच
जहां महात्मा गांधी ने भी देश की आजादी में अहम भूमिका निभाई है वहीं महात्मा गांधी की सफलता और उनके लंबे संघर्ष में उनकी पत्नी कस्तूरबा के योगदान को कभी झुटलाया नहीं जाता. महात्मा गांधी खुद ये बात मानते थे कि कस्तूरबा गांधी के समर्पित सहयोग के बिना, वो कभी इतने सफल नहीं बन पाते. आपकी जानकारी के लिए बता दें कि महात्मा गांधी विदेश से कानून की पढ़ाई करके लौटे थे, जबकि उनकी पत्नी कस्तूरबा काफी कम पढ़ी-लिखी थीं. गांधी के समय में समाज और स्थति ऐसी थीं कि लड़कियों को शिक्षा नहीं दी जाती थी और जल्द ही उनकी शादी कर दी जाती थी. परिणामस्वरूप, महात्मा गांधी और कस्तूरबा की सोच भी एक दूसरे से काफी अलग थी.
दोनों के बीच हुई थी लड़ाई
शादी के बाद उनके बीच झगड़ा हो गया और इस झगड़े की वजह कुछ और नहीं था बल्की उनकी अलग सोच का होना ही था. यही वजह है कि जब महात्मा गांधी देश भर में छुआछूत के खिलाफ मुखर हुए, तो उनके बीच जानबूझकर और अनजाने में मतभेद उत्पन्न हो गए. दरअसल, महात्मा गांधी छुआछूत की प्रथा से बहुत दुखी हो चुके थे. वो ये अच्छे से जानते थे कि सदियों पुरानी इस मानसिकता को मिटाना काफी मुश्किल है. इसके बाद भी, उन्होंने आश्रम की स्थापना के तुरंत बाद नौ सिद्धांतों की स्थापना की, जिनमें सत्य, अहिंसा, वाणी पर संयम, अपरिग्रह और चोरी का पूर्ण त्याग शामिल थे. इन सिद्धांतों में विदेशी वस्त्रों का त्याग, निर्भयता और छुआछूत का विरोध शामिल था.
जन आश्रम पहुंचा दलित परिवार
जब अहमदाबाद में आश्रम बन गया उसके बाद, महात्मा गांधी और कस्तूरबा से सभी खुश थे. वहीं फिर सितंबर 2015 में, मुंबई से एक ईमानदार और सम्मानित दलित परिवार आश्रम में रहने के लिए आया. बताया जाता है कि दंपति की एक बेटी और एक बच्चा था. पति एक स्कूल शिक्षक थे, और पत्नी एक गृहिणी थीं. उनके नाम दूधा भाई और दीना बेन थे. कहीं न कहूं कर्मचारी दलित परिवार के आश्रम में आने से खुश नहीं थे. आश्रम में भी दीना बेन को रसोई में जाने की अनुमति नहीं थी. दूधा भाई को बाहर ही रखा गया था. अगर बच्ची लक्ष्मी बर्तनों को छू लेती, तो उन्हें दोबारा धोया जाता. रसोई भी धोई जाती. महात्मा गांधी को ये बात पता चल गई, गांधी जी के लिए हैरान कर देने वाली बात ये थी कि मगनलाल की पत्नी और कस्तूरबा, दोनों इस पूरे प्रकरण में शामिल थीं.
गांधी से क्यों खफा हुईं कस्तूरबा
इस दौरान महात्मा गांधी भी कस्तूरबा के व्यवहार से खुश नहीं थे. ऐसा इसलिए क्योंकि दक्षिण अफ्रीका में रहने के बावजूद, अस्पृश्यता के प्रति उनकी मान्यता समझ से परे थी. उस शाम, एक संक्षिप्त बैठक में, महात्मा गांधी ने इस बात की घोषणा की कि दलितों को आश्रम में रहने की अनुमति दे दी गई है. इस घटना के बाद, कस्तूरबा आते-जाते महात्मा गांधी की ओर देखने से भी कतराने लगीं.
अचानक पिघला कस्त्रुबा का दिल
इसके बाफ एक दिन, बरामदे में बैठी कस्तूरबा की नज़र दूधा भाई और दीना बेन की बेटी लक्ष्मी पर पड़ी. वो वहां बेफ़िक्र होकर खेल रही थी. कस्तूरबा को आश्चर्य हुआ कि आश्रम में सब उसे बा क्यों कहते हैं, फिर वो इस छोटी बच्ची के बारे में इतना संकोची कैसे हो सकती है. वो लक्ष्मी के पास गई और उसे गले लगा लिया. उसने खुद से सवाल किया और जवाब मिला बापू ठीक थे, और उससे गलती हो गई थी. इस घटना का गिरिराज किशोर के उपन्यास “बा” में विस्तार से वर्णन किया गया है.

