Dularchand Yadav Murder Case: बिहार के पटना में मोकामा विधानसभा चुनाव का मैदान अब अलग ही मोड़ ले चुका है. 30 अक्टूबर, 2025 को जनसुराज पार्टी के समर्थक दुलारचंद यादव की हत्या मामले में चुनाव आयोग और प्रशासन द्वारा ताबड़तोड़ कार्रवाई की जा रही है. दुलारचंद यादव की हत्या के मामले में बिहार के मोकामा से जदयू प्रत्याशी अनंत सिंह को 14 दिन के लिए ज्यूडिशियल कस्टडी में भेज दिया गया है. इससे पहले उन्हें गिरफ्तार कर पुलिस लाइन में रखा गया था. ऐसे में आज हम जानेंगे कि आखिर पुलिस हिरासत और न्यायिक हिरासत में क्या अंतर होता है?
पुलिस हिरासत का अर्थ क्या है? (What is the meaning of police custody?)
जब कोई पुलिस अधिकारी किसी व्यक्ति को संज्ञेय अपराध करने के संदेह में गिरफ्तार करता है, तो गिरफ्तार व्यक्ति को पुलिस हिरासत में कहा जाता है. पुलिस हिरासत का उद्देश्य संदिग्ध व्यक्ति से पूछताछ करके अपराध के बारे में अधिक जानकारी जुटाना, साक्ष्यों को नष्ट होने से बचाना और गवाहों को डराने-धमकाने से रोकना है. दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 57 के अनुसार, मजिस्ट्रेट के आदेश के बिना यह हिरासत 24 घंटे से अधिक नहीं हो सकती.
पुलिस द्वारा गिरफ्तार और हिरासत में लिए गए प्रत्येक व्यक्ति को गिरफ्तारी के 24 घंटे के भीतर निकटतम मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश किया जाना चाहिए, जिसमें गिरफ्तारी स्थल से मजिस्ट्रेट की अदालत तक की यात्रा का समय शामिल नहीं है.
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न्यायिक हिरासत क्या होता है? (What is judicial custody?)
जब कोई अभियुक्त न्यायालय, चाहे वह मजिस्ट्रेट हो, सत्र न्यायालय हो या उच्च न्यायालय, के प्रत्यक्ष नियंत्रण या हिरासत में होता है, तो उसे न्यायिक हिरासत में कहा जाता है. जेल भेजा गया अभियुक्त न्यायिक हिरासत में होता है. पुलिस न्यायिक हिरासत में किसी अभियुक्त से पूछताछ के लिए केवल संबंधित मजिस्ट्रेट की अनुमति से ही पहुंच सकती है. मजिस्ट्रेट की अनुमति से ऐसी हिरासत के दौरान पुलिस द्वारा की गई पूछताछ मात्र से हिरासत की प्रकृति में कोई बदलाव नहीं आ सकता.
अगर पुलिस हिरासत की बात करें तो अभियुक्त पुलिस की भौतिक हिरासत में होगा. इसलिए पुलिस हिरासत में भेजे जाने पर अभियुक्त को पुलिस थाने के लॉकअप में रखा जाएगा. ऐसी स्थिति में पुलिस को पूछताछ के लिए अभियुक्त तक हर समय पहुंच प्राप्त होगी.
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