Aurangzeb’s last words: मुगल इतिहास हमेशा से एक लोकप्रिय कहानी रहा है. बाबर से लेकर बहादुर शाह जफर तक की कहानियां आज भी बड़े ध्यान से सुनी जाती है. कुछ कला प्रेमी थे, कुछ रंगीन, और एक थे औरंगज़ेब जिन्हें मुगल साम्राज्य का सबसे क्रूर बादशाह माना जाता है. उनकी मृत्यु को काफ़ी समय हो गया है. जिस स्थान पर उनकी मृत्यु हुई और जिस राज्य में उन्हें दफनाया गया, वे आज भी चर्चा में है. आइए आपको एक कहानी सुनाते है कि जब उन्हें एहसास हुआ कि उनके अंतिम क्षण निकट आ रहे हैं, तो उनके मन में क्या चल रहा था.
आलमगीर औरंगजेब
मुगल साम्राज्य के छठे बादशाह औरंगजेब थे. जिन्होंने 31 जुलाई 1658 से 3 मार्च 1707 तक अपनी मृत्यु तक शासन किया. औरंगज़ेब खुद को आलमगीर, जिसका अर्थ है “विश्व विजेता” कहलाना पसंद करते थे. सत्ता हासिल करने के लिए उन्होंने अपने पिता शाहजहां को कैद कर लिया और अपने भाई दारा शिकोह की हत्या करवा दी. उत्तर भारत पर विजय प्राप्त करने के बाद वे दक्कन चले गए और विजित क्षेत्रों में इस्लामी कानून लागू किया. उसने गैर-मुसलमानों से जजिया कर भी वसूलना शुरू कर दिया, जिसे अकबर ने समाप्त कर दिया था.
औरंगजेब को किस बात का अपसोस रहा
औरंगजेब को इस बात का अफसोस था कि उसके हरम में सबसे कम औरतें थी. इतिहासकारों के अनुसार अपने अंतिम क्षणों में औरंगजेब खुद से बातें कर रहा था. उसने कहा “मैं ईश्वर द्वारा दिए गए जीवन की एक सांस भी नहीं ले पाया. मैं उसका सामना कैसे करूंगा?” यह कहकर उसने बोलना बंद कर दिया. हालांकि उसके होंठ अभी भी बुदबुदा रहे थे. उसके शहज़ादे आजम शाह, अपने पिता के चेहरे को गौर से देखकर दंग रह गए. वह नीचे झुका और उनकी बात सुनने की कोशिश की लेकिन असफल रहा. उसने मुगल साम्राज्य के सबसे शक्तिशाली हाथों को अपनी हथेलियों में थामने की कोशिश की. लेकिन औरंगज़ेब का शरीर ठंडा था. जिससे वह ऐसा नहीं कर सका.
मौत से पहले क्या किया था?
अपनी मृत्यु के दिन औरंगज़ेब ने अपने छोटे बेटे कामबख्श को बुलाया और अपनी चिंता व्यक्त की. उसने कहा “मेरी मृत्यु के बाद, मेरे लोगों के साथ बुरा व्यवहार किया जाएगा. मैंने लोगों के साथ जो किया वही मेरे अपने लोगों के साथ होगा.” उसने अपने दूसरे और सबसे प्रिय पुत्र, आजम शाह से कहा “मैं एक राजा के रूप में असफल रहा हूं. मेरा बहुमूल्य जीवन किसी काम का नहीं रहा. अल्लाह सर्वत्र है लेकिन मैं अभागा हूं कि जब उससे मिलने का समय निकट आ रह. है, तो मैं उसकी उपस्थिति का अनुभव नहीं कर पा रहा हूं. मैं एक पापी हूं. शायद मेरे पाप ऐसे नहीं हैं कि उन्हें क्षमा किया जा सके.”
मृत्यु निकट आ रही थी, वह व्याकुल था. उसने प्रार्थनाओं में सांत्वना खोजी. अपनी मृत्यु की सुबह उसने आजम शाह को बुलाया और उससे बात की. उसकी आंखें ठीक से नहीं खुल पा रही थी. लोगों की भीड़ ने मरते हुए औरंगज़ेब को घेर लिया. उसके अंतिम क्षण आ गए थे. अंतिम प्रार्थना की गई. उसकी आंखें बंद हो गईं, और उसकी आत्मा विदा हो गई.

