कभी शोहरत की ऊंचाइयों पर बैठी, कैमरे की चमक के बीच मुस्कुराता एक चेहरा- अभिनेत्री विमी। बी.आर. चोपड़ा की सुपरहिट फिल्म ‘हमराज़’ के साथ साल 1967 में बॉलीवुड इंडस्ट्री में एंट्री लेने वाली विमी को उस दौर की सबसे ग्लैमरस अभिनेत्रियों में गिना जाता था। लेकिन वही चेहरा, जो लाखों दिलों की धड़कन बना, कुछ ही सालों में गुमनामी, गरीबी और तन्हाई की ऐसी गहराइयों में चला गया कि आखिरी सांस तक किसी ने साथ नहीं दिया।
अमीर घर से बॉलीवुड तक
विमी का जन्म पंजाब के एक समृद्ध सिख परिवार में हुआ था। शादी के बाद उन्होंने फिल्मों में आने का फैसला किया, जो उस दौर में एक बड़ा कदम माना जाता था। फिल्म ‘हमराज़’ की सफलता के बाद उनकी झोली में कई फिल्में आईं। लेकिन, शादीशुदा ज़िंदगी और इंडस्ट्री की राजनीति के बीच वो खुद को संभाल नहीं पाईं।
एक फैसले ने बदल दी किस्मत
शादी टूटने के बाद विमी ने एक फिल्म डिस्ट्रीब्यूटर ”जॉली” के साथ रहना शुरू किया। यहीं से उनकी जिंदगी ने ऐसी करवट ली, जिससे वो कभी उबर नहीं सकीं। फिल्में मिलनी बंद हुईं, और बताया जाता है कि आर्थिक तंगी में उन्हें गलत रास्तों पर भी धकेला गया। उनकी हालत इतनी खराब हो गई थी कि शराब उनकी रोज़मर्रा का हिस्सा बन गई।
अंत इतना अकेला कि रुला दे
1977 में जब विमी की लीवर की बीमारी से मौत हुई, तो उनके पास इलाज तक के पैसे नहीं थे। सबसे दुखद बात यह रही कि उनके शव को एंबुलेंस भी नसीब नहीं हुई। अंतिम यात्रा में उनका शरीर एक हाथगाड़ी यानी ठेले पर श्मशान ले जाया गया। बॉलीवुड से सिर्फ एक अभिनेता सुनील दत्त उनकी अंतिम विदाई में पहुंचे थे।
एक सच्चाई जो आज भी सवाल छोड़ जाती है
विमी की कहानी हमें ये सोचने पर मजबूर करती है कि ग्लैमर की इस दुनिया में ऐसे कितने चेहरे हैं जो मुस्कराहट के पीछे दर्द छुपाए बैठे हैं। बॉलीवुड का ये चमकता मंच, जब किसी की रौशनी कम हो जाए, तो उसे कितनी जल्दी अंधेरे में छोड़ देता है। ये हमें एक्ट्रेस विमी की इस दर्दनाक कहानी से साफ झलकता है।

