Bihar election 2025: मधुबन विधानसभा क्षेत्र बिहार के पूर्वी भाग में स्थित है और इसकी जनसंख्या में विभिन्न जातियों और समुदायों का वास है.यहां मुख्य रूप से दलित और अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) समुदायों का बड़ा समर्थन है.इन समुदायों का वोट बैंक चुनाव के परिणाम को प्रभावित करता है, इसलिए राजनीतिक दल अपनी रणनींतियों में इन्हें मुख्य ध्यान देते हैं.वर्षों से इस सीट पर सत्ताधारी दल और विपक्षी दलों के बीच कड़ा मुकाबला देखने को मिलता रहा है.पूर्व के चुनावों में यहां राजनीतिक ध्रुवीकरण और जातीय समीकरणों का बड़ा प्रभाव रहा है, जिसने चुनावी परिणामों को निर्णायक रूप से प्रभावित किया है.
2020 में भाजपा जीत
बिहार में चुनावी माहौल धीरे-धीरे गर्म होने लगा है,गठबंधनों और चुनावी रणनीतियों को लेकर खींचतान तेज हो रही है. इससे पहले मधुबन की यह सीट भाजपा के राणा रणधीर सिंह का गढ़ रही है, जो पिछले दो चुनावों से इस पर अपनी पकड़ बनाए हुए हैं.
1957 में हुआ था पहला चुनाव
मधुबन का इतिहास बहुत पुराना है.पहली बार यहां 1957 में चुनाव हुआ था,जिसमें ज्यादातर सीटों पर कांग्रेस का कब्जा रहा, लेकिन इस सीट पर शुरुआत में ही कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा. उस समय निर्दलीय उम्मीदवार रूपलाल राय ने कांग्रेस के उम्मीदवार को 7,871 वोट से हराया था.
1962 में कांग्रेस की वापसी
1962 के चुनाव में कांग्रेस ने वापसी की और यहां से उम्मीदवार मंगल प्रसाद यादव विजेता बने. 1967 से 1972 तक यह सीट वामपंथी दलों के कब्जे में रही. इस दौरान भाकपा के उम्मीदवारों ने लगातार जीत हासिल की. 1967 में एम. भारती ने कांग्रेस के एम.पी. यादव को 23,849 वोट से हराया और 1969 में महेंद्र भारती ने फिर से अच्छा प्रदर्शन किया. 1972 में भाकपा ने अपने उम्मीदवार का टिकट बदला और राजपति देवी विजेता रहे.
निर्दलीय रूपलाल राय की पहली जीत
यहां से एक दिलचस्प बात यह भी है कि 1957 में निर्दलीय रूपलाल राय ने पहली जीत हासिल की थी और 1977 में वह फिर से कांग्रेस के टिकट पर जीते. उस दौर में भी राजनीतिक बदलाव देखने को मिला. 1980 में कांग्रेस के वृज किशोर सिंह ने यहां जीत दर्ज की, जिन्होंने जनता पार्टी के महेंद्र राय को हराया.
1985 में पहली बार जनता पार्टी की हुई जीत
1985 में पहली बार जनता पार्टी के उम्मीदवार सीताराम ने जीत हासिल की.इसके बाद से ही यह सीट लगातार राजनीतिक गतिविधियों का केंद्र बन गई. 1990 में जनता दल के सीता राम सिंह ने भाजपा के रामजी सिंह को हराया और 1995 में फिर से जीत हासिल की. 2000 में वह फिर से जीतकर लगातार चार बार इस सीट पर अपना दबदबा बनाए रहे.
2005 से 2020 तक
2005 में बिहार में दो बार चुनाव हुए थे. इसमें पहली बार राणा रणधीर सिंह जो कि पूर्व विधायक सीताराम सिंह के बेटे हैं, उन्होनें जदयू के टिकट पर जीत दर्ज की. लेकिन दूसरे चुनाव में जदयू के शिवाजी राय ने राजद के राणा रणधीर को हराया. 2010 और 2015 के बीच की स्थिति भी काफी दिलचस्प रही. 2010 में जदयू के शिवाजी राय ने फिर से जीत हासिल की, लेकिन 2015 में भाजपा के राणा रणधीर सिंह ने पार्टी बदली और फिर से जीत दर्ज की. इस बार उन्होंने अपने प्रतिद्वंद्वी शिवाजी राय को 16,222 वोट से हराया.2020 में राणा रणधीर सिंह ने फिर से अपना विजय अभियान जारी रखा. इस बार उन्होंने राजद के मदन प्रसाद को 5,878 वोट से हराया. अब देखना दिलचस्प होगा कि आगामी चुनाव में इस सीट का समीकरण कैसा रहेगा, और कौन इस बार बाजी मारेगा.
आने वाले दिनों में स्थिति और भी दिलचस्प होगी
मधुबन का इतिहास बताता है कि यहां का मतदाता बदलाव को करीब से समझता है. यह सीट राजनीतिक दलों के बीच रणनीति का खेल भी है, जहां हर चुनाव नए समीकरण बनते और बिगड़ते रहते हैं. आने वाले दिनों में स्थिति और भी दिलचस्प हो सकती है, क्योंकि बिहार की राजनीति में बदलाव का दौर जारी है.

