IndusInd Bank Scam: देश के चर्चित बैंकों में शुमार इंडसइंड बैंक में सैकड़ों करोड़ रुपये के घोटाले का मामला सामने आया है. बैंक के भीतर चल रही धांधली का खुलासा होने के बाद अब निवेशकों के साथ-साथ वित्त क्षेत्र में हड़कंप की स्थिति है. बैंक के एक पूर्व CFO के मुताबिक, बैंक में यह धांधली 10 सालों से चल रही थी, जिसका खुलासा अब जाकर हुआ है. शिकायत
इंडसइंड बैंक अकाउंटिंग लैप्स मामले की जांच में नया खुलासा हुआ है. मुंबई पुलिस की आर्थिक अपराध शाखा (Economic Offences Wing of Mumbai Police) की शुरुआती जांच में पता चला है कि बैंक के शेयरों के दामों में ‘चालाकी’ से इजाफा किया गया. इसका मतलब बैंक के शेयरों में बढ़ोतरी बनावटी थी. इस दौरान बैंक से जुड़े कुछ टॉप मैनेजमेंट अधिकारियों ने इस जानकारी का फायदा उठाया और इनसाइडर ट्रेडिंग की. इस कमजोरी का फायदा उठाकर टॉप मैनेजमेंट अधिकारियों ने ‘अनैतिक’ तरीके से सैकड़ों करोड़ रुपये कमाए.
किसने किया खुलासा? (who disclose IndusInd Bank Scam)
साल 1992 में हुए शेयर बाजार के घोटाले ने देशभर में हड़कंप मचा दिया था. इससे ना केवल तत्कालीन केंद्र सरकार पर सवाल उठे बल्कि इससे आम निवेशकों का विश्वास भी डगमगाया. दरअसल, 1992 के शेयर बाजार घोटाले के नाम से भी जाना जाता है. यह भारत के इतिहास के सबसे बड़े वित्तीय घोटालों में से एक था. इसमें 1,439 करोड़ रुपये (उस समय लगभग 3 अरब डॉलर के बराबर) का गबन हुआ. इसके चलते भारतीय शेयर बाजार में भारी गिरावट आई और 3,542 करोड़ रुपये ($7 अरब) की जीवन भर की बचत स्वाहा हो गई. इसका खुलासा एक महिला पत्रकार ने किया था. इस लिहाज से बैंकों में व्हिसलब्लोअर कोई नई बात नहीं है. इंडसइंड बैंक में गड़बड़ी की कहानी भी कुछ अलग नहीं है. इस कथित घोटाले के बारे में सीधे तौर पर जानकारी रखने वाले दो लोगों के अनुसार, बैंक के पूर्व मुख्य वित्तीय अधिकारी गोबिंद जैन ने इस गड़बड़ी का खुलासा किया है. उन्होंने कई सालों से बैंकों में चल रहे गंभीर गलत कामों के सबूत पेश किए. गोबिंद जैन के मुताबिक, यह घोटाला 2 लोगों में से एक व्यक्ति से सीधे तौर पर जांच से जुड़ा है, जबकि दूसरा व्यक्ति जांच की प्रत्यक्ष जानकारी रखता है. एनडीटीवी प्रॉफिट ने भी इन दस्तावेजों के एक हिस्से की समीक्षा की है. उन्होंने इसमें पाया है कि मेल ट्रेल्स, लेखा दस्तावेज और गोबिंद जैन और इंडसइंड बैंक की पिछली प्रबंधन टीम के बीच महीनों से चल रहा व्यक्तिगत पत्राचार शामिल है. यह भी जानकारी सामने आई है कि पूर्व सीएफओ गोबिंद जैन ने पहले भी ट्रेज़री से जुड़ी गड़बड़ियों का आरोप लगाया था, लेकिन संस्थागत स्तर पर इसको लेकर कोई भी कदम नहीं उठाया है. उन्होंने 26 अगस्त को प्रधानमंत्री कार्यालय को पत्र लिखकर कहा था कि बैंक की ट्रेज़री ऑपरेशंस में एक दशक से गंभीर अनियमितताएं हो रही हैं, जिनकी रकम लगभग 2000 करोड़ रुपये तक हो सकती है.
बैंक घोटाले के खुलासे से मचा हड़कंप
गोबिंद जैन के खुलासे के बाद बैंक कर्मचारियों और अधिकारियों में हड़कंप की स्थिति है. बताया जा रहा है कि पहला शख्स सीधे तौर पर जांच से जुड़ा है. जांच जुड़े इसी शख्स के मुताबिक, बैंक के पूर्व सीएफओ ने नियामकों और अन्य हितधारकों से जानकारी छिपाने में बोर्ड के वरिष्ठ पदाधिकारियों और प्रबंधन के सदस्यों की मिलीभगत की ओर इशारा किया है. उधर, गोबिंद जैन की मानें तो उन्होंने अपनी दलीलों में आरोप लगाया है कि बैंक की वरिष्ठ प्रबंधन टीम वर्षों से गंभीर लेखा खामियों को आगे बढ़ा रहीथी. उन्होंने यह बताया कि बैंक में कई सालों से जारी कथित तौर पर घोटाले की जानकारी निदेशक मंडल को भी थी. इसके बावजूद इसे रोकने या फिर एक्शन लेने का कदम नहीं उठाया गया. उन्होंने यह भी आरोप लगाया है कि अनुचित लेखांकन (Improper accounting) के महत्वपूर्ण सबूतों को छिपाने के लिए उन्हें अपना इस्तीफा दोबारा लिखने के लिए मजबूर किया गया. हैरत की बात यह भी है कि गोबिंद जैन ने ऐसा 2024 में चार बार किया था, यानी अपना इस्तीफा दिया था.
पूर्व अधिकारियों ने किया आरोपों से इन्कार
सूत्रों के मुताबिक, इंडसइंड बैंक में यह घोटाला 2000 करोड़ रुपये से अधिक का है. इससे भी बड़ी बात कि इस घोटाले के सामने आने से निवेशकों का भरोसा भी टूटा है. इतना ही नहीं बैंक की साख पर भी बट्टा लगा है. वहीं, बैंक से जुड़े पूर्व अधिकारियों ने गड़बड़ी के आरोपों से साफ-साफ इन्कार किया है. वहीं, EOW ने जांच के दौरान पाया है कि गड़बड़ियां कई स्तर पर हुई हैं. EOW ने बैंक से जुड़े कई कर्मचारियों और पूर्व अधिकारियों से पूछताछ में पाया कि बैंक की बुक्स को दो अलग-अलग हेडर्स में एडजस्ट किया गया था. इससे इसका असर स्टॉक प्राइस पर असर पड़ा. बैंक में हुई इस गड़बड़ी पर कुछ पूर्व अधिकारियों का यह दावा है कि उन्होंने किसी भी तरह की गड़बड़ी में हिस्सा नहीं लिया. ये अधिकारी कितना सच बोल रहे हैं? यह तो जांच के बाद ही सामने आ पाएगा. जांच में जुटी EOW के सूत्रों के मुताबिक, वह जल्द ही कानूनी अधिकारियों और वित्तीय विशेषज्ञों से राय लेगी कि आगे किस तरह की कार्रवाई की जाए. जांच से जुड़े एक वरिष्ठ अधिकारी ने यह भी कहा कि यह मामला कई मायनों में सत्यम घोटाले से मिलता-जुलता है. EOW के अधिकारियों की मानें तो जांच का दायरा बढ़ सकता है. हालांकि, यह घोटाला कितने का है? इस पर EOW अधिकारियों ने आधिकारिक रूप से कुछ भी नहीं कहा है. वहीं, EOW जांच की कड़ी में इंडसलैंड बैंक से जुड़े 7-8 कर्मचारियों के बयान दर्ज कर चुकी है. कर्मचारियों के बयान के आधार पर ही बैंक के पूर्व शीर्ष अधिकारियों को समन भेजा गया था. EOW की मानें तो जांच और पूछताछ की कड़ी में इन अधिकारियों को दोबारा भी बुलाया जा सकता है.
सीईओ और डिप्टी सीईओ ने अप्रैल में दिया था इस्तीफा (CEO and deputy CEO resigned in April)
सूत्रों के मुताबिक, इंडसइंड बैंक में यह गड़बड़ी करीब 10 सालों से चल रही थी, जिसका खुलासा अब जाकर हुआ. दरअसल, आंतरिक जांच के दौरान इंडसइंड बैंक को यह अकाउंटिंग गड़बड़ी पहले अपने डेरिवेटिव्स पोर्टफोलियो में मिली थी. इस पर ध्यान नहीं देने और कार्रवाई नहीं करने पर घोटाला माइक्रोफाइनेंस बिजनेस तक फैल गया. इस मामले के खुलासे के बाद अप्रैल, 2025 में सीईओ सुमंत कथपालिया और डिप्टी सीईओ अरुण खुराना ने इस्तीफा दे दिया था. यह भी जानकारी सामने आई है कि उस समय के शीर्ष प्रबंधन अधिकारियों ने अकाउंटिंग बुक्स में एडजस्टमेंट किए जाने की बात स्वीकार की है. यह मामला लगभग 2000 करोड़ रुपये के गड़बड़ी से जुड़ा है. सूत्रों के मुताबिक, पिछले दिनों ही EOW ने जांच की कड़ी में बैंक के पूर्व सीएफओ गोबिंद जैन, पूर्व डिप्टी सीईओ अरुण खुराना और पूर्व सीईओ सुमंत कथपालिया के बयान दर्ज किए. इनसे पूछताछ में कई जानकारारियां सामने आई हैं. इसके बाद पूर्व डिप्टी सीईओ खुराना को बाद में फिर से समन भेजा गया है. बताया जा रहा है कि अरुण खुराना की भूमिका बेहद अहम है, क्योंकि वे उन बदलावों और एडजस्टमेंट से वाकिफ थे जो बैंक की बुक्स में कथित तौर पर किए गए थे. ऐसे में वह कटघरे में हैं.
क्या गोबिंद जैन को थी लेन-देन की जानकारी
यह भी अहम है कि 18 जनवरी को, 2025 को इंडसइंड बैंक ने एक्सचेंजों को अपने तत्कालीन मुख्य वित्तीय अधिकारी गोबिंद जैन के त्यागपत्र के बारे में सूचित किया था. एक्सचेंज की अधिसूचना में कहा गया था कि गोबिंद जैन 20 जनवरी 2025 को अपने पद से मुक्त हो जाएंगे. इसमें यह भी शर्त रखी गई थी कि उन्हें नोटिस पीरियड के तहत 90 दिनों की नोटिस अवधि पूरी करनी होगी. पत्र में बैंक की ओर से यह भी आरोप लगाया गया था कि गोबिंद जैन करीब 3.25 साल तक काम करने के बाद बैंक के बाहर या प्रमोटर समूह के भीतर अवसरों का लाभ उठाना चाहते हैं. उन्होंने यह भी कहा कि वह अपनी बेटी की परीक्षा और प्रवेश प्रक्रिया के लिए अमेरिका जाना चाहते हैं, ताकि “जल्द से जल्द” सेवामुक्त हो सकें. यह भी अहम है कि 18 जनवरी, 2025 को गोबिंद जैन द्वारा इस्तीफा देने के 2 महीने बाद 10 मार्च, 2025 को बैंक मुश्किल में आ गया. इंडसलैंड के तत्कालीन एमडी और सीईओ सुमंत कठपालिया और डिप्टी सीईओ अरुण खुराना ने विश्लेषकों के साथ एक कॉन्फ्रेंस कॉल की. इसमें उन्होंने ऋणदाता द्वारा हाल ही में किए गए एक खुलासे के बारे में जानकारी मुहैया कराई. उन्होंने यह भी जानकारी दी कि डेरिवेटिव अकाउंटिंग पोर्टफोलियो में गड़बड़ियां मिलीं. विश्लेषकों के साथ कॉन्फ्रेंस कॉल के दौरान विश्लेषकों ने इस तथ्य की ओर इशारा किया कि सीएफओ ने केवल दो महीने पहले ही इस्तीफा दिया. यह पूछे जाने पर कि क्या दोनों घटनाओं का एक-दूसरे से कोई संबंध है? इस पर सीईओ सुमंत कठपालिया ने कहा कि इनका आपस में कोई संबंध नहीं है. सुमंत कठपालिया का कहना था कि उन्हें (गोबिंद जैन) इस लेन-देन की जानकारी थी और यह सार्वजनिक डोमेन में है. उन्होंने दावा किया था कि इसका सिर्फ़ इसी लेन-देन से कोई संबंध है. उनके जाने का एक अलग कारण था और हमें इससे कोई आपत्ति नहीं थी. तत्कालीन एमडी और सीईओ ने कॉन्फ्रेंस कॉल में कहा था.
किस-किसने कहा बैंक को अलविदा?
विवाद के सामने आने के बाद सीईओ सुमंत कठपालिया और गोबिंद खुराना ने सितंबर, 2025 में बैंक छोड़ दिया, क्योंकि पीडब्ल्यूसी और फिर ग्रांट थॉर्नटन भारत द्वारा स्वतंत्र जांच की जा रही थी. इस दौरान यह पता चला कि डेरिवेटिव अकाउंटिंग में लगभग 2,100 करोड़ रुपये के लेखांकन अंतरालों के साथ-साथ बैंक ने माइक्रोफाइनेंस बहीखाते में भी 2,800 करोड़ रुपये के अंतरालों की पहचान की थी. मामला सामने आने के बाद मुंबई पुलिस की आर्थिक अपराध शाखा ने इस मामले के संबंध में लगभग 13 लोगों से पूछताछ की है. इनमें सुमंत कठपालिया, अरुण खुराना और गोबिंद जैन जैसे पूर्व पदाधिकारी और बैंक के कुछ मौजूदा कर्मचारी शामिल थे. गोबिंद जैन ने बताया कि वह लगभग एक साल से बैंक छोड़ने की कोशिश कर रहे थे, क्योंकि प्रबंधन लेखांकन विसंगतियों की स्वतंत्र ऑडिट शुरू करने में विफल रहा था. गोविंद जैन ने जून से शुरू होकर 2024 तक कम से कम चार बार त्यागपत्र सौंपे थे. सुमंत कठपालिया और बैंक के मानव संसाधन प्रमुख जुबिन मोदी को भेजे गए अपने त्यागपत्रों में पूर्व सीएफओ ने “कोषागार द्वारा अपनाई गई गलत प्रक्रियाओं और प्रथाओं” पर प्रकाश डाला था. यहां पर बता दें कि कोषागार विभाग खुराना को रिपोर्ट करता था. आरोप है कि सुमंत कठपालिया द्वारा स्वतंत्र और निष्पक्ष जांच का आश्वासन दिए जाने के बाद गोबिंद जैन ने अपने इस्तीफ़े रोक दिए थे. 29 सितंबर, 2025 को अपने त्यागपत्र में पूर्व मुख्य वित्तीय अधिकारी ने बताया कि बार-बार अनुरोध के बावजूद सुमंत कठपालिया ने स्वतंत्र ऑडिट शुरू नहीं किया था. गोबिंद जैन ने अपने एक पत्र में आरोप लगाया था कि कि ऑडिट न होने से “एक असहनीय और जोखिम भरी स्थिति” पैदा हो रही है.
कौन-कौन है घेरे में?
पूछताछ के दौरान गोबिंद जैन ने इंडसइंड बैंक के अध्यक्ष सुनील मेहता, बोर्ड की ऑडिट समिति की प्रमुख भावना दोशी, क्षतिपूर्ति नामांकन एवं पारिश्रमिक समिति के प्रमुख अकिला कृष्णकुमार और जोखिम प्रबंधन समिति के प्रमुख एलवी प्रभाकर पर उनकी कथित संलिप्तता का आरोप लगाया. उन्होंने इंडसइंड बैंक की प्रबंधन टीम के वरिष्ठ अधिकारियों, मुख्य जोखिम अधिकारी विवेक वाजपेयी और स्वयं मोदी पर भी सीधे तौर पर संलिप्त होने का आरोप लगाया है.

