प्रधान जी के बारे में आपने सुना? रौबदार अंदाज, भारी भरकम शरीर, ऊंची चाल जिसे देखने के लिए भीड़ इकठ्ठा हो रही है. जिसके चर्चे दूर-दूर तक फ़ैल रहे हैं ये कोई इंसान नहीं बल्कि एक भैंसा है. एशिया का सबसे बड़ा पशु मेला, सोनपुर मेला हर साल किसी ना किसी अनोखे पशुओं की वजह से सुर्ख़ियों में रहता है. इस बार भी कुछ ऐसा ही देखने को मिला है. हर साल नवंबर के महीने में लगने वाले सोनपुर मेले में इस बार ऐसा ही कुछ अनोखा दिखा जो मेले में आकर्षण का केंद्र बना हुआ है. इस बार मेले में 1 करोड़ का भैंसा लोगों को अपनी ओर आकर्षित कर रहा है. जी हाँ आपने सही सुना, पुरे 1 करोड़ का भैंसा। यही नहीं इस भैंसा का नाम भी बड़ा रोचक है.
आपको बता दें कि रोहतास जिले से आए इस भैंसा का नाम प्रधान जी है. असल में, जाफराबादी नस्ल का यह 38 महीने का बड़ा भैंसा पहले से ही खबरों में था. इस नस्ल के भैंस का साइज़, बढ़िया दूध देने वाले बच्चे पहले ही कई बार सुर्खियां बटोर चुके हैं. मेले में हिस्सा लेने के बाद इसकी पॉपुलैरिटी और बढ़ गई है।
मेले में दिखी प्रधान बाबू की शान
प्रधान जी के मालिक और पूर्व मुखिया ब्रह्मदेव सिंह कुशवाहा का कहना है कि सोनपुर मेला उनके भैंसे के टैलेंट और क्वालिटी को देश भर में दिखाने का एक शानदार मौका है। करीब आठ फीट लंबा और पांच फीट से ज़्यादा ऊंचा यह भैंसा अपने शानदार लुक से सबका ध्यान खींच रहा है.
गुजरात की मूल नस्ल जाफराबादी की सबसे खास बात इसकी बेहतरीन सेहत और ज़्यादा दूध देने की क्षमता है. इसी वजह से लोग आर्टिफिशियल इनसेमिनेशन के लिए एक राउंड के लिए 2,000 रुपये तक देने को तैयार हैं.
1 करोड़ रुपये का भैंसा, बढ़ रही पॉपुलैरिटी
जानवरों के जानकारों का मानना है कि सोनपुर जैसे बड़े मेले में ‘प्रधान बाबू’ के आने से उसकी कीमत और इज़्ज़त दोनों बढ़ना तय है. जानवरों के व्यापारी और खरीदार अब देख रहे हैं कि क्या यह भैंसा मेले के इतिहास की सबसे महंगी डील में से एक होगा.
प्रधान बाबू की पॉपुलैरिटी, उनकी ब्रीड की क्वालिटी और उनकी शानदार बॉडी ने उन्हें इस साल के सोनपुर मेले का सबसे बड़ा अट्रैक्शन बना दिया है. अब देखना यह है कि 1 करोड़ रुपये का यह भैंसा किस कीमत पर हिस्टोरिक डील हासिल करेगा.
सोनपुर मेला क्या है?
सोनपुर मेला एशिया का सबसे बड़ा और सबसे पुराना पशु मेला माना जाता है, जो हर साल बिहार के सारण जिले के सोनपुर में गंगा और गंडक नदी के संगम पर लगता है. यह मेला कार्तिक पूर्णिमा के आसपास नवंबर से दिसंबर में आयोजित होता है और अपने अनोखे पशुओं जैसे हाथी, घोड़े, ऊँट, बैल, भैंसे, और दुर्लभ नस्लों के लिए दुनियाभर में प्रसिद्ध रहा है. समय के साथ यह मेला सांस्कृतिक, धार्मिक और व्यापारिक गतिविधियों का केंद्र बन गया है, जहां लाखों लोग पशु खरीद–फरोख्त, हस्तशिल्प, स्थानीय कलाओं, खानपान और मनोरंजन का आनंद लेने आते हैं.

