समस्तीपुर: बिहार के समस्तीपुर ज़िले के पूसा प्रखंड के बथुआ गांव की रहने वाली रंजू देवी बेरोज़गार थी और आर्थिक तंगी से जूझ रही थी. लेकिन हार मानने के बजाय उन्होंने जीविका समूह से जुड़कर अपनी ज़िंदगी बदलने का फ़ैसला लिया. जीविका की मदद से रंजू देवी ने कस्तूरबा संस्थान से अचार बनाने का प्रशिक्षण लिया. प्रशिक्षण के बाद, उन्होंने ₹30,000 का लोन लिया और घर पर ही अचार बनाना शुरू कर दिया. सीमित संसाधनों के बावजूद, उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और लगातार मेहनत करती रही.
स्वाद के मामले में मशहूर
रंजू देवी ने सबसे पहले आम, नींबू, आंवला, मिर्च जैसे पारंपरिक अचार बनाना शुरू किया. खास बात यह है कि वो किसी भी तरह के केमिकल या प्रिज़र्वेटिव का इस्तेमाल नहीं करती, बल्कि पूरी तरह से घर के बने मसालो और देसी तकनीक से अचार तैयार करती है. आम खरीदने से लेकर उन्हें धोने, काटने, सुखाने और फिर मसालों से तैयार करने तक, सारा काम वह ख़ुद करती है. उनका अचार न सिर्फ़ समस्तीपुर और आसपास के बाज़ारों में बिकता है, बल्कि आज दिल्ली, मुंबई जैसे शहरों तक पहुंच चुका है.
रंजू देवी सफल होलसेलर
रंजू देवी का कारोबार अब काफी बढ़ गया है. उन्हें बिहार सरकार से अनुदान भी मिला, जिससे उनके उत्पादन और वितरण दोनों में वृद्धि हुई. आज वो न केवल खुदरा बल्कि होलसेल स्तर पर भी अचार की सप्लाई कर रही हैं. उनका मासिक लेनदेन ₹1 लाख से ज़्यादा हो गया है. रंजू देवी बताती हैं कि जीविका से जुड़ना उनके जीवन का सबसे बड़ा फ़ैसला था, जिसने उन्हें आत्मनिर्भर और सम्मानजनक जीवन की राह पर ला खड़ा किया.
उनकी कहानी आज कई महिलाओं के लिए प्रेरणा बन गई है. उनके हाथों से बने अचार की हमेशा मांग रहती है और लोग एक बार अचार खरीदने के बाद दोबारा ऑर्डर करने पर मजबूर हो जाते हैं, क्योंकि वह पूरी तरह से देसी तरीके से अचार बनाती है.

