Glory of Ganga Water: गंगा नदी (Ganga River) भारत के सबसे पवित्र नदियों से एक मानी जाती है. गंगा का पानी आसानी से दूषित नहीं होता है. इसका मुख्य कारण सेल्फ-प्यूरिफिकेशन प्रॉपर्टीज हैं, जिनमें बैक्टीरियोफेज की बहुत ज़्यादा संख्या और वैरायटी होती है. यह वायरल प्राकृतिक होते हैं. जो हानिकारक बैक्टीरिया को टारगेट करके मारते हैं. जिसके कारण यह “फ्रेंडली माइक्रो-लाइफ” की तरह काम करते हैं.
शुद्धता के लिए मुख्य कारक
- बैक्टीरियोफेज: यह वायरस सीधेतौर पर बैक्टीरिया को टारगेट करते हैं और उन्हें मार देते हैं. यह नेचुरल डिसइंफेक्टेंट के तौर पर काम करते हैं.
- ऑक्सीजनेशन: गंगा नदी का तेज बहाव घुली हुई ऑक्सीजन को साथ ले जाता है. जिसके कारण बैक्टीरिया की ग्रोथ रुक जाती है. जिससे यह शुद्ध बना रहता है.
- ग्लेशियल सोर्स: ग्लेशियर से निकलने के कारण, पानी शुद्ध, मिनरल्स और ऑक्सीजन से भरपूर होता है. यह खुद को साफ रखने की क्षमता के लिए एक मजबूत आधार बनाता है.
वैज्ञानिक द्वारा बताए गए अनोखे कारण
- बैक्टीरियोफेज: कई वैज्ञानिक अध्ययनों के मुताबिक, बाकी नदियों की तुलना में बैक्टीरियोफेज का अनुपात काफी ज्यादा होता है. रिसर्च्स ने गंगा में 1,100 से ज़्यादा अलग-अलग तरह के फेजल पाए हैं.
- बैक्टीरिया का खात्मा: ये बैक्टीरियोफेज होस्ट-स्पेसिफिक माने जाते हैं. जिसका साफ मतलब है कि वह नदी के इकोसिस्टम में फायदेमंद माइक्रोऑर्गेनिज्म को नुकसान पहुंचाए बिना सिर्फ हानिकारक बैक्टीरिया जैसे विब्रियो कोलेरी और ई.कोलाई को इंफेक्ट करते हैं. यह फेज इन हानिकारक बैक्टीरिया की मौजूदगी में तेजी से बढ़ते हैं. जो उन्हें लगातार खत्म करते रहते हैं.
- हाई डिजॉल्व्ड ऑक्सीजन लेवल: गंगानदी के ऊपरी हिमालयी हिस्सों, जिसमें अलकनंदा और भागीरथी बहती है. तेजी से बहने और ठंडा रहने वाला पानी ज़्यादा मात्रा में डिजॉल्व्ड ऑक्सीजन रखता है. जो जलीय जीवन और माइक्रोबियल प्रक्रियाओं को सपोर्ट करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है.
- औषधीय पौधे: अलकनंदा और भागीरथी हिमालय से नीचे बहते हुए अनोखी चट्टानों, तलछट और औषधीय पौधों के संपर्क में आता है. जिसके कारण घुले हुए खनिज, जैसे कि खास सिलिकेट, पानी के एंटीमाइक्रोबियल गुणों में योगदान करते हैं. यह पानी को साफ रखने में मदद करता है.
अलकनंदा और भागीरथी के हालात
नदी में शानदार प्राकृतिक क्षमताएं होती है. लेकिन हाल ही में हुई रिसर्च से पता चलता है कि सीवेज, इंडस्ट्रियल कचरा और डेवलपमेंट के काम से बढ़ता प्रदूषण इसकी खुद को साफ करने की प्राकृतिक क्षमता पर भारी पड़ रहा है. खासकर की मैदानी इलाकों में. खासकर गोमुख से देवप्रयाग (भागीरथी) और माना से देवप्रयाग (अलकनंदा) तक, रिसर्च में पता लगा है कि कुछ इलाकों में बैक्टीरिया और छोटे जीवों की आबादी बहुत कम है. जो बैक्टीरियोफेज की मौजूदगी के बावजूद पानी को खराब कर रहा है. गंगा का पानी जन्म से ही प्रदूषण से इम्यून नहीं है. इसमें बायोलॉजिकल एजेंट और फिजिकल गुणों का प्राकृतिक विकसित सिस्टम है. जो नदी को साफ और सुरक्षित रखने में मदद करते हैं.