US-Russia Nuclear Submarines: भारत और रूस की अर्थव्यवस्था को ‘डेड इकॉनॉमी’ बताने के बाद अब अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने बड़ा फैसला लिया है। सामने आ रही रिपोर्ट्स के मुताबिक अमेरिका ने अपनी दो परमाणु पनडुब्बियों को रणनीतिक स्थानों की ओर भेजने का आदेश दिया है। शीत युद्ध के दौरान भी काल में ये सैन्य रणनीति अपनाई गई थी।
ट्रंप का परमाणु पनडुब्बियों को रणनीतिक स्थानों पर भेजने का फैसला ऐसे समय पर आया है, जब अमेरिकी टैरिफ और प्रतिबंधों की धमकियों के बावजूद रूस पर कोई विशेष असर नहीं पड़ा है।
ट्रंप के इस फैसले के बाद दोनों देशों के बीच जो लड़ाई सिर्फ बयानों तक सीमित थी, वो अब समंदर की गहराइयों में दिख रही है। दोनों देशों ने अपनी-अपनी परमाणु पनडुब्बियां तैनात कर दी हैं। अब सवाल ये उठ रहा है कि किस देश की सबमरीन है ज्यादा खतरनाक है?
रूस की परमाणु ताकत
इस अमेरिकी फैसले पर रूसी सरकार यानी क्रेमलिन की ओर से कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है, लेकिन एक वरिष्ठ रूसी सांसद विक्टर वोडोलात्स्की ने चेतावनी दी है कि अमेरिका को यह भ्रम नहीं रखना चाहिए कि उसने कोई बड़ा सैन्य कदम उठाया है। उन्होंने कहा कि रूस की परमाणु पनडुब्बियों की संख्या अमेरिका से कहीं ज़्यादा है और जो अमेरिकी पनडुब्बियाँ रूस भेजी गई हैं, वे पहले से ही रूस की नज़र और निगरानी में हैं।
रूस की परमाणु पनडुब्बी क्षमता की बात करें तो इसमें बोरेई-क्लास-डेल्टा IV-क्लास-यासेन-क्लास-अकुला-क्लास जैसी खतरनाक पनडुब्बियों का बेड़ा शामिल है। ये पनडुब्बियाँ SLBM मिसाइलों से लैस हैं। इसके अलावा, रूस के पास ‘डेड हैंड’ सिस्टम भी है, जो एक स्वचालित या अर्ध-स्वचालित परमाणु हथियार नियंत्रण तंत्र है।
जिसे शीत युद्ध के दौरान सोवियत संघ ने विकसित किया था। इस सिस्टम को इस तरह से डिज़ाइन किया गया है कि अगर किसी परमाणु हमले में देश का पूरा नेतृत्व नष्ट भी हो जाए, तब भी यह सिस्टम बड़े पैमाने पर परमाणु जवाबी कार्रवाई कर सकता है।
अमेरिका की परमाणु पनडुब्बी क्षमता
परमाणु पनडुब्बी क्षमता में अमेरिका की बात करें तो उसके पास बैलिस्टिक मिसाइल और तेज़ हमलावर पनडुब्बियाँ हैं जैसे ओहायो-क्लास-वर्जीनिया-क्लास-सीवुल्फ़-क्लास-लॉस एंजिल्स-क्लास। एसएसबीएन की बात करें तो उनकी मुख्य मिसाइल ट्राइडेंट II डी5 है। ये पनडुब्बियाँ टॉमहॉक और हार्पून मिसाइलों के साथ-साथ एमके-48 टॉरपीडो से भी लैस हैं।

