नेपाल की सड़कों पर उठी GEN-Z की हलचल ने सत्ता की नींव हिला दी थी, अब वही आग पाकिस्तान में भी चिंगारी बनकर फैलती नजर आ रही है. पढ़ाई और फीस के एक छोटे मसले से शुरू हुआ यह विद्रोह जिसमें युवा छात्रों ने ई-मार्किंग और बढ़ती ट्यूशन फीस के खिलाफ मोर्चा खोला, जल्द ही शहबाज़ शरीफ सरकार तक की नीतियों को चुनौती देता एक व्यापक राजनीतिक तूफान बनता दिख रहा है. संकेत साफ़ हैं नेपाल के बाद अब पाकिस्तान में भी युवा-जनरेशन ने अपना मोर्चा खोल दिया है पर कहानी अभी सिर्फ़ शुरुआत में है.
GEN-Z की मुख्य माँगें क्या हैं?
बताया जा रहा है कि छात्रों का असंतोष नए शैक्षणिक सत्र में मैट्रिक और इंटरमीडिएट स्तर पर लागू की गई ई-मार्किंग (डिजिटल मूल्यांकन) प्रणाली से उपजा है. प्रथम वर्ष की इंटरमीडिएट परीक्षा के परिणाम छह महीने देरी से 30 अक्टूबर को घोषित किए गए, लेकिन इससे छात्रों में हंगामा मच गया. उन्होंने अप्रत्याशित रूप से कम अंकों की शिकायत की और ई-मार्किंग प्रणाली को दोषी ठहराया. स्थानीय रिपोर्टों के अनुसार, कुछ छात्रों को उन विषयों में भी पास कर दिया गया जो उन्होंने लिए ही नहीं थे.
हालाँकि सरकार ने इस मामले पर कोई स्पष्टीकरण जारी नहीं किया है, मीरपुर शिक्षा बोर्ड ने ई-मार्किंग की जाँच के लिए एक समिति गठित की है. प्रदर्शनकारियों की एक प्रमुख माँग पुनर्मूल्यांकन शुल्क माफ़ करना है, जो प्रति विषय ₹1,500 है. इस प्रकार सभी सात पेपरों के लिए ₹10,500 का शुल्क लगता है, जिससे गरीब छात्रों पर भारी बोझ पड़ रहा है. यह विवाद लाहौर जैसे पाकिस्तानी शहरों तक फैल गया है, जहाँ पिछले महीने इंटरमीडिएट के छात्रों ने लाहौर प्रेस क्लब के बाहर धरना दिया था. इस आंदोलन का नेतृत्व यूनाइटेड अवामी एक्शन कमेटी (JAAC) कर रही है, जो अक्टूबर में हुई हिंसा में सबसे आगे थी.
पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (PoK) में भी विरोध प्रदर्शन हुए थे.
एक महीने पहले, पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (PoK) में बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन हुए थे. 30 मांगों (कर छूट, आटे और बिजली पर सब्सिडी, और विकास परियोजनाओं को समय पर पूरा करना मुख्य शिकायतों में से थीं) के एक घोषणापत्र के साथ शुरू हुए इस संघर्ष में 12 से ज़्यादा निर्दोष नागरिकों की जान चली गई. पाकिस्तानी प्रशासन ने गोलियां चलाकर इसे दबाने की कोशिश की, लेकिन यह सेना प्रमुख असीम मुनीर की मनमानी और भ्रष्टाचार के खिलाफ एक व्यापक विद्रोह में बदल गया. अंततः, शरीफ सरकार को प्रदर्शनकारियों से बातचीत करने और कुछ प्रमुख मांगों को मानने के लिए मजबूर होना पड़ा, जिसके बाद ही वे शांत हुए.
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