Premanand Maharaj Padyatra: प्रेमानंद महाराज को हर धर्म के लोग पसंद करते हैं. वृंदावन के इस प्रसिद्ध संत के दर्शन के लिए देश-विदेश से लोग आते हैं. इंटरनेट पर भी प्रेमानंद महाराज को लेकर काफी चर्चा किया जाता है. अपने सत्संग के माध्यम से वे लोगों को सांसारिक और आध्यात्मिक जीवन का ज्ञान देते हैं. अक्सर सत्संग के बाद भक्त अपनी विभिन्न समस्याओं के बारे में प्रश्न पूछते हैं, जिनका संत बड़ी सहजता से उत्तर देते हैं.
प्रेमानंद महाराज पदयात्रा
इसके अलावा प्रेमानंद महाराज पदयात्रा भी करते हैं. पदयात्रा के दौरान लोग महाराज जी का दर्शन करते हैं. वहीं अब संत की पदयात्रा से जुड़ी जानकारी सामने आई है. बताया जा रहा है कि पदयात्रा के समय में बदलाव किया गया है.
कहां होगा पदयात्रा?
इंस्टाग्राम पेज “शिखर यात्रा” ने प्रेमानंद महाराज की पदयात्रा और दर्शन की जानकारी साझा की है. हरिओम ठाकुर ने इस पेज पर एक वीडियो जारी किया है. वीडियो में उन्होंने बताया कि महाराज की पदयात्रा पहले की तरह ही पुराने रास्ते से हो रही है. फर्क बस इतना है कि अब यह श्री कृष्णम शरणम सोसाइटी से लगभग 100-150 मीटर आगे से शुरू होती है. हालांकि पदयात्रा का समय बदल गया है.
बदल गया पदयात्रा का समय
उन्होंने आगे बताया कि जहां पदयात्रा पहले सुबह 4 बजे शुरू होती थी, वहीं अब यह लगभग 2:30 बजे शुरू होती है. अगर आप आने वाले दिनों में वृंदावन में प्रेमानंद महाराज के दर्शन करने या उनकी पदयात्रा में शामिल होने की योजना बना रहे हैं, तो यह जानना ज़रूरी है.
कानपुर में हुआ था प्रेमानंद महाराज का जन्म
संत प्रेमानंद का जन्म कानपुर, उत्तर प्रदेश में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था. उनका बचपन का नाम अनिरुद्ध कुमार पांडे था. उनके पिता का नाम श्री शंभू पांडे और माता का नाम श्रीमती रमा देवी था. प्रेमानंद के दादा ने सबसे पहले संन्यास लिया था. उनके पिता भी ईश्वर की भक्ति में लीन थे और उनके बड़े भाई भी प्रतिदिन भागवत का पाठ करते थे. प्रेमानंद के परिवार में भक्ति का माहौल था और इसका उनके जीवन पर गहरा प्रभाव पड़ा.
13 साल की उम्र में बन गए थे ब्रह्मचारी
प्रेमानंद जी महाराज कहते हैं कि उन्होंने पांचवीं कक्षा से ही गीता का पाठ करना शुरू कर दिया था और इसी से धीरे-धीरे उनकी रुचि अध्यात्म में बढ़ी. उन्होंने आध्यात्मिक ज्ञान भी प्राप्त किया. जब वे 13 वर्ष के हुए, तो उन्होंने ब्रह्मचारी बनने का निर्णय लिया और तत्पश्चात गृह त्याग कर संन्यासी बन गए. अपने संन्यासी जीवन के आरंभ में प्रेमानंद जी महाराज का नाम आर्यन ब्रह्मचारी रखा गया था.

