Jain Dharm Ritulas: जैन धर्म में कई ऐसी प्रथाएं हैं जो न केवल अनोखी हैं बल्कि धार्मिक दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण भी हैं। जैन धर्म के दो मुख्य पंथ हैं , श्वेतांबर और दिगंबर। श्वेतांबर साधु-साधवी हल्के सूती वस्त्र पहनते हैं, जबकि दिगंबर पूरी तरह नग्न रहते हैं। इन दोनों पंथों में साधु-साध्वी अपने जीवन में संयम और आत्म-नियंत्रण को सर्वोपरि मानते हैं। यही कारण है कि उनका जीवन भौतिक सुखों से अलग होता है। साधु-साध्वी कभी भी स्नान नहीं करते, बावजूद इसके उन्हें पवित्र और शुद्ध माना जाता है। उनका मुख्य ध्यान बाहरी शुद्धता की बजाय आंतरिक शुद्धता पर होता है।जैन धर्म में यह मान्यता है कि शरीर पर पहनावे या बाहरी शुद्धता मायने नहीं रखते, बल्कि मन और विचारों की शुद्धता ही वास्तविक पवित्रता है।
स्नान न करने का धार्मिक और नैतिक कारण
जैन साधु-साध्वी क्यों स्नान नहीं करते, इसका मुख्य कारण उनके अहिंसा और जीवों की रक्षा के सिद्धांत से जुड़ा है। जैन धर्म के अनुसार, हमारे शरीर पर और आसपास हजारों सूक्ष्म जीव रहते हैं, जिन्हें देखकर हम उनके अस्तित्व को महसूस नहीं कर सकते। यदि साधु-साध्वी स्नान करते हैं, तो इन जीवों का जीवन नष्ट हो जाता है। यह जैन धर्म में अहिंसा का सर्वोच्च पालन माना जाता है।साधु या साध्वी चाहे कितनी भी ठंड या गर्मी हो, वे स्नान नहीं करते। इसके बजाय, गीले कपड़े से अपने शरीर को पोंछकर शुद्ध रखते हैं।
साधु-साध्वी का कठोर और संयमित जीवन
जैन साधु-साध्वी का जीवन अत्यंत कठोर और संयमित होता है। वे जमीन पर ही सोते हैं, बिना किसी गद्दे या बिछौने के। दिन में केवल एक बार ही अन्न ग्रहण करते हैं और बाकी समय भूखे रहते हैं। उनका ध्यान केवल आंतरिक शुद्धता, ध्यान और तपस्या में रहता है।साधु-साध्वी का यह जीवन अनुयायियों के लिए प्रेरणा का स्रोत है। यह दिखाता है कि सच्ची पवित्रता शरीर की शुद्धता में नहीं, बल्कि विचारों और मन की शुद्धता में होती है। इसके अलावा, यह जीवनशैली प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण और जीवों के प्रति करुणा की भावना को भी बढ़ावा देती है।
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