Hussaini Brahmin: कर्बला वो जगह है जहाँ मुसलामानों की जंग यजीद से थी। ये एक ऐसी जंग थी जिसमे हुसैन साहब के पूरे खानदान को शहीद कर दिया गया था। कर्बला कहीं और नहीं बल्कि ये इराक में बस्ता एक शहर है। आपकी जानकारी के लिए बता दें, सदियों पहले इसी जगह पर एक ऐसी लड़ाई लड़ी गई थी जिसने इस्लाम का इतिहास ही बदल दिया। जिसे लोग आज मुहर्रम के तौर पर गम की तरह मनाते हैं। लेकिन, कर्बला की यह लड़ाई सिर्फ़ मुसलमानों के लिए ही नहीं, बल्कि भारत के ब्राह्मणों के लिए भी जानी जाती है। जी हाँ, लगभग 1400 साल पहले, कर्बला की लड़ाई पैगंबर मुहम्मद के नवासे इमाम हुसैन और क्रूर यज़ीद के बीच लड़ी गई थी। इस लड़ाई में इमाम हुसैन का साथ भारत के पंजाब से कर्बला पहुँचे ब्राह्मणों के एक समूह ने भी दिया था। आइए जानते हैं इसके पीछे की असल कहानी।
सबसे मुश्किल समय में खड़े थे साथ
680 ई. में, जब इमाम हुसैन और उनके समर्थक यज़ीद की सेना का सामने कर रहे थे और 10 दिन तक जुल्म सह रहे थे। तब राहाब सिद्ध दत्त और भारतीय ब्राह्मणों ने इमाम हुसैन का साथ दिया था। आपकी जानकारी के लिए बता दें, मोहयाल ब्राह्मणों में बाली, भीमवाल, छिब्बर, दत्त, लाउ, मोहन और वैद जैसी कई उपजातियाँ शामिल हैं। इन्हें हुसैनी ब्राह्मण कहा जाता है। हुसैनी ब्राह्मणों का एक वर्ग आज भी हिंदू रीति-रिवाजों के अनुसार मुहर्रम मनाता है।
जब यजीद की सेना से घिरे थे हुसैन
टीपी रसेल स्ट्रेसी ने अपनी पुस्तक ” हिस्ट्री ऑफ़ द मुहियाल्स: द मिलिटेंट ब्राह्मण क्लान ऑफ़ इंडिया” में एक गाथागीत का भी उल्लेख किया है , जिसमें अरब में दत्तों की उपस्थिति और कर्बला की लड़ाई में उनकी भूमिका का काव्यात्मक रूप में वर्णन किया गया है। कर्बला के मैदान में फरात नदी के किनारे इमाम हुसैन क्रूर सुल्तान यज़ीद की सेना से घिरे हुए थे। इस्लाम को क्रूर हाथों में पड़ने से बचाने के लिए, हुसैन ने मदद के लिए दो पत्र लिखे। एक पत्र उन्होंने अपने बचपन के दोस्त हबीब को और दूसरा पत्र कर्बला से हज़ारों मील दूर, भारत के एक हिंदू मोहयाल राजा राहब सिद्ध दत्त को लिखा। पत्र मिलते ही, माथे पर तिलक और पवित्र धागा बाँधे हिंदुस्तानी पंडितों का एक समूह इमाम हुसैन की मदद के लिए कर्बला की ओर चल पड़ा।
कौन हैं हुसैनी मुसलमान?
आपकी जानकारी के लिए बता दें, शिया मौलाना जलाल हैदर नकवी बताते हैं कि कर्बला की जंग यजीद के जुल्म के सितम के खिलाफ इमाम हुसैन ने लड़ी थी। इस जंग में मुसलमानों का बड़ा तबका यजीद के साथ था, जो हक पर थे वही हुसैन के साथ थे. ऐसे में इमाम हुसैन का साथ देने भारत के ब्राह्मण गए।

