Durga Saptashati: दुर्गा सप्तशती शब्द से ही स्पष्ट है कि मां दुर्गा की आराधना में गाए जाने वाले सात सौ श्लोक. दुर्गा सप्तशती का पाठ यूं तो भक्त नित्य ही करते हैं लेकिन यदि इसका पाठ नवरात्रि में किया जाए तो मां भगवती पाठ करने वाले भक्त की सारी मनोकामनाएं पूरी करती हैं. पाठ करने वाले को मां किसी भी तरह की परेशानी से लड़ने की क्षमता प्रदान करती हैंं. यदि आपका कोई शत्रु है तो दुर्गा सप्तशती के पाठ के साथ सकारात्मक प्रयास करने से शत्रुओं पर विजय भी मिलती है. दरअसल दुर्गा सप्तशती मार्कण्डेय पुराण का एक अंश है, जिसके 13 अध्यायों में कुल 700 श्लोक हैं. इन अध्यायों में देवी शक्ति की महिमा का बखान है, सभी जानते हैं मां दुर्गा का एक नाम महिषासुर मर्दिनी है क्योंकि उन्होंने महिषासुर नाम के एक बलशाली राक्षस का वध किया था.
सकारात्मकता का होता है संचार
यूं तो दुर्गा सप्तशती का पाठ कलश स्थापना के साथ ही करना सबसे अच्छा होता है किंतु यदि समयाभाव है तो शाम को मां के चित्र के सामने घी का दीपक जला कर भी कर सकते हैं. दुर्गा सप्तशती का पाठ व्यक्ति में सकारात्मक ऊर्जा का संचार करने के साथ ही उस घर के वातावरण को भी शुद्ध करता है जहां पर इसका पाठ हो रहा होता है. दुर्गा सप्तशती की महिमा में बताया गया है कि यह शत्रुनाशक तो है ही, नियमित पाठ करने से स्वास्थ्य में सुधार आता है और रोगों से छुटकारा मिल जाता है. मान सम्मान और पद प्रतिष्ठा की प्राप्ति होती है.
कौन थे इसके रचनाकार?
दुर्गा सप्तशती की रचना करने वाले मार्कण्डेय ऋषि थे. वे महान ऋषि मृकंदु और मरुदमती के पुत्र थे. ऋषि ने पुत्र प्राप्ति के लिए भगवान शिव का कठोर तप किया जिससे प्रसन्न होकर भगवान शिव प्रकट हुए और वरदान मांगने को कहा. ऋषिवर और उनकी पत्नी ने पुत्र की कामना की तो भगवान ने उनके सामने दो विकल्प रखे, पहला पृथ्वी पर लंबे समय तक जीवित रहने वाला मंद बुद्धि बालक और दूसरा विद्वान धर्मात्मा बालक जिसकी आयु सिर्फ 16 वर्ष थी. उन्होंने दूसरा वर चुना तो पुत्र होने पर उसका नाम मार्कण्डेय रखा. बाल्यकाल से ही वह शिव भक्त हो गया और 16 वर्ष की आयु जिस दिन पूर्ण हुई उस दिन भी बालक शिवलिंग के आगे उनकी आराधना में लीन था. यमराज के दूत उसे लेने आए किंतु शिव जी का पूजन करने के कारण बने कवच को न तोड़ सके. बाद में यही उन्होंने हजारों वर्षों का जीवन पाया और मार्कण्डेय पुराण लिखा जिसका एक भाग दुर्गा सप्तशती के रूप में जाना जाता है.
जो पाना है उसके अनुसार करें पाठ
दुर्गा सप्तशती का पाठ मनोवांछित फल प्रदान करता है इसलिए अपना अभीष्ट तय करके पाठ करना चाहिए. धर्म शास्त्रों के अनुसार दुर्गा सप्तशती का सौ बार का पाठ असाध्य रोगों से मुक्ति के साथ ही सभी प्रकार की बाधाओं को दूर कर सिद्धियां प्राप्त होती हैं. मान्यता है कि 108 बार पाठ करने से अश्वमेध यज्ञ के समान फल की प्राप्ति होती है. कोई व्यक्ति अज्ञात भय के कारण डरा सहमा रहता है तो उस व्यक्ति को सप्तशती का सात बार पाठ करना चाहिए. यदि किसी व्यक्ति के जीवन में प्राणों का संकट आ गया है तो उससे बचने के लिए नौ बार पाठ करने पर संकट से मुक्ति ही नहीं मिलती बल्कि शांति भी प्राप्त होती है. सरकारी सुविधाओं के आकांक्षी व्यक्ति को 11 बार पाठ करना चाहिए. शत्रुओं का नाश करने के लिए 12 और उन्हें वश में करने के लिए 14 बार पाठ करने का विधान है. सुख और श्री की प्राप्ति के लिए 15, पुत्र पौत्र और धन धान्य के लिए 16 बार पाठ करना चाहिए. सरकारी दंड से मुक्ति के लिए 17, महासंकट से मुक्ति के लिए 20 तथा 25 बार का पाठ करने वाले साधक को हर तरह के बंधन से मुक्ति मिल जाती है.

