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Premanand Ji Maharaj: माया क्या है, माया का उद्देश्य क्या है? जानें प्रेमानंद जी महाराज से

Premanand Ji Maharaj: प्रेमानंद जी महाराज राधावल्लभ संप्रदाय को मानते हैं. प्रेमानंद जी महाराज अपनी भक्ति, सरल जीवन, और मधुर कथाओं के लिए लोगों में काफी प्रसिद्ध हैं. जानें प्रेमानंद जी महाराज से माया क्या है, माया का उद्देश्य क्या है?

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Premanand Ji Maharaj:  भारतीय क्रिकेटर विराट कोहली और अभिनेत्री अनुष्का शर्मा प्रेमानंद जी महाराज के वृंदावन स्थित आश्रम में पहुंचे. उन्होंने परम पूज्य महाराज प्रेमानंद जी का आशीर्वाद लिया.

प्रेमानंद जी महाराज ने दोनों को कहा कि अपने कार्यक्षेत्र को  भगवान की सेवा समझना चाहिए. गंभीर भाव से रहिए, विनम्र रहना चाहिए, खूब नाम-जप करना चाहिए. जो एक बार अपना असली पिता है जिसने हमें प्रकट किया, बनाया है उसे देखें, उनको देखने की लालसा होनी चाहिए माना जाता है कि वो बहुत सुंदर हैं, देखने योग्य है अपने हैं, प्यारे हैं. अपना यह लक्ष्य बनाएं और चाहें कि अब हमें उनसे मिलना है. उन्होंने हमें जीवन के सब सुख दिखा दिए अब कुछ नहीं चाहिए, अब हमें केवल आप, यानि भगवान चाहिए, अगर आप चाहिए तो सारे सुख आपके चरणों में अपने आप आ जाएंगे.

प्रेमानंद जी महाराज का मानना है कि माया भ्रम है. भ्रम को ढक करके नानात्व का दर्शन करना यह माया है. ‘सर्व खल्विदं ब्रह्म,नेह नानास्ति किञ्चन।’ वेद कहता है कि ब्रह्म के शिवा किचिन मात्र कुछ और नहीं हैं माया का कार्य है ब्रह्म के सिवा कुछ और ब्रह्म का अनुभव ना होने देना. माया का स्वरूप क्या है –
मैं अरु मोर तोर तैं माया।
जेहिं बस कीन्हे जीव निकाया॥
गो गोचर जहँ लगि मन जाई।
सो सब माया जानेहु भाई॥

माया का अर्थ है मैं और मेरा, तू तेरा और जहां तक इंद्रियां जाए सब माया है. आब्रह्मस्तम्ब पर्यन्तम् सर्वं मायामयं जगत् सत्यं सत्यं पुनः सत्यं हरेर्नामैव केवलम्,

तिनके से लेकर भ्रम  लोक तक सब माया द्वारा रचा या है, सत्य है तो हरि और उनका नाम वहीं  सत्य है दूसरा कुछ नहीं है. तो माया क्या है मैं और मेरा और इसका विस्तार है तिनके से लेकर भ्रम लोक तक. इसका कार्य है भर्म को ढक करके अन्य सबकुछ दिखाई देना लेकन भगवान को ना दिखाई देना. जब हम साधना करते हैं तो केवल भगवान दिखाई देते हैं. जैसे गोस्वामी तुलसीदास जी ने भगवान  राम की आराधना की और आराधना परिपकव अवस्था में पहुंची तो वह देख रहे हैं जड़ चेतन जग जीव जत सकल राममय जानि, सब चीज में भगवान श्री राम दिखाई दे रहे थे. जित देखूं तित श्याम मई है, सखी पता नहीं मेरे आंखों को क्या हो गया है. ना स्त्री दिखाई दे रही हैं, ना पुरुष जहां देखती हूं तो केवल मेरे श्याम सुंदर ही दिखाई देते हैं. अब माया खत्म हो गई तो श्याम सुंदर दिखाई दे रहे हैं. माया का पर्दा डालकर के स्वंय भगवान खेल रहे हैं. इसी का नाम माया है.

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“जा हि न चाहिअ कबहुँ कछु तुम्ह सन सहज सनेहु” , बसहु निरंतर तासु मन सो राउर निज गेहु

इसका अर्थ है- जिस व्यक्ति को कभी कुछ भी नहीं चाहिए, जो आपसे स्वाभाविक प्रेम करता है, भगवान् उसके मन में हमेशा निवास करते हैं, वही उनका अपना घर है”; यह शरणागति और निस्वार्थ प्रेम के महत्व को दर्शाता है, जहां व्यक्ति बिना किसी अपेक्षा के भगवान् को अपना लेता है. 

“सकल कामना हीन जे”  जो मनुष्य सभी इच्छाओं से रहित होकर राम भक्ति में लीन रहते हैं, उनका मन राम नाम के प्रेम-अमृत के सरोवर में मछली की तरह रम जाता है, वे नाम से कभी अलग नहीं होते. 

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