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Neem Karoli Baba: हनुमान भक्त बाबा जिनके चमत्कारों ने बदल दी लाखों की जिंदगी, जानिए उनके नाम के पीछे की कहानी

Neem Karoli Baba: कैंची धाम में स्थित नीम करोली बाबा का आश्रम देश-विदेश में प्रसिद्ध है. स्टीव जॉब्स और मार्क जुकरबर्ग जैसे लोग भी उनके भक्त थे. बाबा का जन्म अकबरपुर में हुआ था और 11 सितंबर, 1973 को वृंदावन में उनका निधन हो गया था.

Neem Karoli Baba: उत्तराखंड में स्थित नीम करोली बाबा का कैंची धाम देश-विदेश में बहुत प्रसिद्ध है. ऐसा माना जाता है कि जो भी भक्त सच्चे मन से बाबा की तपस्थली पर आता है, उसकी हर मनोकामना पूरी होती है. नीम करोली बाबा एक दिव्य पुरुष थें जो भगवान हनुमान के परम भक्त माने जाते हैं. उनके भक्त उन्हें स्वयं भगवान हनुमान का अवतार मानते हैं. यही कारण है कि भारत ही नहीं, बल्कि विदेशों से भी बड़ी संख्या में भक्त कैंची धाम में दर्शन के लिए आते हैं. आश्रम की प्रसिद्धि निरंतर बढ़ती जा रही है.

नीम करोली बाबा का जीवन (Neem Karoli Baba Life History)

नीम करोली बाबा को एक ऐसे संत के रूप में याद किया जाता है जिन्होंने सादा जीवन जिया. उन्होंने अपने अनुयायियों को भी सादा जीवन जीने और अच्छे कर्म करने के लिए प्रेरित किया. उनके जीवन और चमत्कारों के बारे में अनगिनत कहानियां प्रचलित हैं. उनके अनुयायी बताते हैं कि कैसे बाबा ने उनके जीवन को बदल दिया और कठिन समय में उनकी मदद की. एप्पल के संस्थापक स्टीव जॉब्स भी नीम करोली बाबा के भक्तों में से एक थे, जिन्होंने उनके साथ एक महीने से भी ज़्यादा समय बिताया था. इसके अलावा, विदेशों की कई अन्य प्रमुख हस्तियां भी उन्हें एक दिव्य पुरुष मानती थीं.

मृत्यु और समाधि

11 सितंबर, 1973 को वृंदावन में नीम करोली बाबा का निधन हो गया. मृत्यु से कुछ दिन पहले से ही वे स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं से जूझ रहे थे. उनकी मृत्यु का कारण डॉयबिटिक कोमा बताया जाता है. वृंदावन में जिस स्थान पर उन्होंने अंतिम सांस ली थी, वहां एक मंदिर है जहां भक्त आज भी उनके दर्शन के लिए आते हैं.

जीवन और जन्मस्थान

नीम करोली बाबा का जन्म लगभग 1900 में उत्तर प्रदेश के अकबरपुर गांव में हुआ था. नीम करोली बाबा का असली नाम लक्ष्मीनारायण शर्मा था. उनके पिता का नाम दुर्गा प्रसाद शर्मा था. 11 वर्ष की आयु में उनका विवाह हो गया था. ऐसा कहा जाता है कि 17 वर्ष की आयु में उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई थी. इसके बाद उन्होंने घर त्याग दिया और अपना जीवन भगवान हनुमान की भक्ति में समर्पित कर दिया. बाबा का प्रसिद्ध आश्रम, कैंची धाम, नैनीताल में भुवाली से लगभग 7 किलोमीटर दूर स्थित है. हर साल 15 जून को यहाँ एक विशाल वार्षिक उत्सव आयोजित होता है, जिसमें बड़ी संख्या में भक्त शामिल होते हैं.

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कैसे पड़ा नीम करोली बाबा नाम ?

1958 में, उन्होंने घर त्याग दिया और उत्तर भारत में एक संत के रूप में विचरण करने लगे. इस दौरान, उन्हें लक्ष्मण दास, हांडी वाले बाबा और तिकोनिया वाले बाबा जैसे कई नामों से जाना जाता था. जब उन्होंने गुजरात के वावनिया मोरबी में तपस्या की, तो वहां के लोग उन्हें तलैया बाबा कहने लगे. एक बार, बाबा एक ट्रेन के प्रथम श्रेणी के डिब्बे में बिना टिकट यात्रा कर रहे थे. जब टिकट चेकर ने उन्हें देखा, तो उन्हें अगले स्टेशन, नीब करोली पर उतार दिया गया. ट्रेन से उतरकर, बाबा ने अपना चिमटा पास ही ज़मीन में गाड़ दिया और बैठ गए. गार्ड ने ट्रेन को चलने के लिए हरी झंडी दिखाई, लेकिन वह टस से मस नहीं हुआ. जब कई कोशिशों के बाद भी ट्रेन नहीं चली, तो गार्ड ने बाबा से माफ़ी मांगी और उन्हें आदरपूर्वक वापस ट्रेन में बिठा दिया. जैसे ही बाबा ट्रेन में चढ़े, ट्रेन तुरंत चलने लगी. इसी घटना के बाद से वे नीम करोली बाबा के नाम से प्रसिद्ध हुए.

वे कैंची धाम कब आए थे?

बाबा नीम करोली पहली बार 1961 में उत्तराखंड में नैनीताल के पास स्थित कैंची धाम आए थे. वहाँ उन्होंने अपने पुराने मित्र पूर्णानंद जी के साथ मिलकर एक आश्रम बनाने की योजना बनाई, जिसकी स्थापना 1964 में हुई.

Disclaimer : प्रिय पाठक, हमारी यह खबर पढ़ने के लिए शुक्रिया. यह खबर आपको केवल जागरूक करने के मकसद से लिखी गई है. हमने इसको लिखने में सामान्य जानकारियों की मदद ली है. inkhabar इसकी पुष्टि नहीं करता है.

Shivashakti Narayan Singh

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