Karwa Chauth Bayna: करवा चौथ का व्रत हर साल कार्तिक माह की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को सुहागन महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र और अच्छे स्वास्थ्य की कामना के लिए रखती हैं. यह व्रत निर्जला रखा जाता है और रात में चंद्रमा दर्शन के बाद ही पारण किया जाता है.
करवा चौथ व्रत की एक महत्वपूर्ण परंपरा है “बायना” देना. बायना का मतलब है व्रत के दौरान पूजा सामग्री और कुछ विशेष सामान का सम्मानपूर्वक देना. आमतौर पर महिलाएं अपनी सास को बायना देती हैं, जिसमें फल, मिठाई, वस्त्र और श्रृंगार का सामान शामिल होता है. यदि सास स्वयं सुहागन नहीं हैं, तो बायना में श्रृंगार का सामान शामिल नहीं किया जाता.
अगर सास नहीं हैं तो किसे दें बायना?
लेकिन, सवाल यह उठता है कि यदि किसी महिला की सास नहीं हो तो बायना देने से व्रत का पूरा फल कैसे मिलेगा? पंडित श्रीधर शास्त्री बताते हैं कि ऐसी स्थिति में महिला अपनी जेठानी को बायना दे सकती है. यदि जेठानी भी नहीं हैं, तो महिला अपने पड़ोस की किसी बुजुर्ग महिला को बायना देकर अपना व्रत बिना किसी बाधा के पूरा कर सकती है.
मधुर संबंध और प्यार भी बनता है
इस तरह से न केवल व्रत का संपूर्ण फल मिलता है, बल्कि परिवार और रिश्तेदारों के साथ मधुर संबंध और प्यार भी बनाए रखा जा सकता है. बायना देना केवल एक परंपरा नहीं है, बल्कि यह व्रत की श्रद्धा और सम्मान को भी दर्शाता है.
बेहद महत्वपूर्ण है ये परंपरा
करवा चौथ का व्रत कठिन माना जाता है, लेकिन सही तरीके से बायना देने और विधिपूर्वक पूजा करने से महिलाएं संपूर्ण फल, वैवाहिक सुख और पति की लंबी उम्र सुनिश्चित कर सकती हैं. यह परंपरा आज भी उतनी ही महत्वपूर्ण है जितनी पहले थी और इसे निभाना करवा चौथ को और भी विशेष बनाता है.
कब मनाया जाएगा करवा चौथ?
बता दें, इस साल करवा चौथ का व्रत 10 अक्टूबर, शुक्रवार को रखा जाएगा. दिनभर का उपवास, चंद्रमा का इंतजार और फिर छलनी से झांकते हुए पति का चेहरा देखना, ये पल हर महिला के लिए भावनाओं से भरे होते हैं. लेकिन, शास्त्रों में कहा गया है कि इस दिन बायना और सरगी जैसे छोटे-छोटे उपाय करने से रिश्ते और भी मधुर हो जाते हैं.

