Chhath Puja 2025: आज के समय में छठ पूजा लगभग पूरे देश में मनाई जाती है. एक समय था जब यह एक विशेष क्षेत्र तक ही सीमित थी, लेकिन अब ऐसा नहीं है. मोटे तौर पर, छठ पूजा की जड़ें बिहार और उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल क्षेत्र में गहरी हैं. जब बिहार से महिलाएं विवाह के बाद उत्तर प्रदेश आईं, तो वे इस पूजा परंपरा को अपने साथ ले आईं. पौराणिक कथाओं के अनुसार, इसकी उत्पत्ति मुख्य रूप से औरंगाबाद में हुई मानी जाती है.
धीरे-धीरे, यह पूजा पूर्वांचल के कई जिलों में भी लोकप्रिय हो गई, क्योंकि इनकी सीमा बिहार से लगती है. इस परंपरा के विभिन्न पहलुओं की व्याख्या करते हुए, डॉ. रामनारायण तिवारी बताते हैं कि उत्तर प्रदेश और बिहार के छठ गीतों में एक भावनात्मक अंतर है. यही कारण है कि बिहार के गीत अधिक शक्तिशाली और आस्था से भरे हुए प्रतीत होते हैं.
छठ में प्रकृति पूजा का महत्व
छठ पूजा एक वैदिक अनुष्ठान माना जाता है, जिसमें मूर्ति पूजा के बजाय प्रकृति की पूजा की जाती है. वैदिक शास्त्रों में मूर्तियों के बजाय सूर्य और जल की पूजा का उल्लेख है. छठ पर्व की विशेषता उगते और डूबते सूर्य की पूजा है, जो इसे विशेष बनाती है. शाम को छठी माता और सुबह सूर्यदेव की पूजा प्रकृति से जुड़ाव और आध्यात्मिक संतुलन का प्रतीक है. अब सूर्य की मूर्तियां भी बनाकर उनकी पूजा की जाने लगी है, जो वैदिक परंपरा को और करीब लाती है.
मानवता और प्रकृति का जुड़ाव
भोजपुरी लोकजीवन में छठ पर्व केवल पूजा नहीं, बल्कि मानवता और प्रकृति के जुड़ाव का प्रतीक है. पीपल और तुलसी के पौधों की पूजा इसी सांस्कृतिक भावना में निहित है. छठ पूजा हमें प्रकृति के प्रति आस्था और मानवता से देवत्व की ओर बढ़ने का मार्ग दिखाती है. इसलिए, समय के साथ, अधिक से अधिक लोग इस पूजा को करने लगे हैं, और यह पर्व अब केवल पूर्वांचल तक ही सीमित नहीं रहा.

