कितने साल पुराना है फीणी का इतिहास, जीआई टैगिंग से क्या फायदा होगा? यहां जानें- सबकुछ

Rajasthan Sweet Feeni: राजस्थान की मशहूर मिठाई फीणी का इतिहास करीब 800 साल पुराना है. ऐसे में अगर इस मिठाई को जीआई टैगिंग मिल जाने से इसको देश-विदेश में और पहचान मिल सकती है.

Published by Sohail Rahman

Rajasthan Sweet Feeni: फीणी मिठाई राजस्थान में भारत की सबसे पुरानी खारे पानी की झीलों में से एक सांभर झील के चमकते खारे पानी की तरह ही रहस्यमयी है. यह सदियों से चली आ रही है और इसका इतिहास बहुत पुराना है, फिर भी इसे ज्योग्राफिकल इंडिकेशन (GI) स्टेटस का इंतजार है, जिसके बारे में विशेषज्ञों का मानना ​​है कि यह आखिरकार इसे राष्ट्रीय और वैश्विक पहचान दिला सकता है. परिष्कृत आटे और घी से बनी सांभर फीणी न केवल अपने स्वाद के लिए बल्कि अपनी परतदार बनावट के लिए भी जानी जाती है.

जब गूंधे हुए आटे की एक गेंद को उबलते घी में डुबोया जाता है, तो यह हजारों धागों के एक महीन जाली में खुल जाती है, यह एक लगभग जादुई बदलाव है जिसने इसे ‘रहस्यमयी मिठाई’ की प्रतिष्ठा दिलाई है.

क्या है फीणी का इतिहास? (What is the history of Feeni?)

फीणी के बारे में जानकारी सामने आ रही है कि इस मिठाई की जड़ें इतिहास में बहुत गहरी हैं. आरके शर्मा सेवानिवृत्त प्रिंसिपल, जिन्होंने सांभर के फीनी व्यापार का सर्वे किया था. उनके अनुसार, इस मिठाई का ज़िक्र चंद बरदाई द्वारा रचित पृथ्वीराज रासो में मिलता है. माना जाता है कि राजा पृथ्वीराज चौहान की शादी के दौरान फीणी के मीठे और नमकीन दोनों तरह के वर्जन परोसे गए थे, जिसका मतलब है कि इसका 800 से अधिक वर्षों का लिखित इतिहास है.

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जीआई टैगिंग से क्या फायदा होगा? (What are the benefits of GI tagging?)

जीआई टैगिंग इस मिठाई के लिए गेम-चेंजर साबित हो सकती है. पहचान, इनोवेशन और इंडस्ट्री स्टेटस सांभर फीणी को अंतरराष्ट्रीय बाजारों तक पहुंचने में मदद कर सकता है. इस बारे मेें आरके शर्मा अपनी बात रखते हुए यह भी जोड़ते हैं कि नमक झील से प्रभावित क्षेत्र की अनोखी जलवायु, मिठाई की बनावट और गुणवत्ता में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है. यह सिर्फ एक मिठाई नहीं है, बल्कि राजस्थान की सांस्कृतिक विरासत का प्रतीक है, शर्मा आगे कहते हैं कि एक व्यापार केंद्र के रूप में सांभर की प्रमुखता ने फीणी को क्षेत्र से बहुत दूर तक पहुंचने में मदद की.

मिठाई बनाने वाले परिवारों ने इस पाक कला को पीढ़ियों से संरक्षित रखा है. बंशीलाल, तीसरी पीढ़ी के फीणी बनाने वाले हैं, जो आगे बताते हैं कि वनस्पति घी से बनी फीणी पूरे साल बनाई जाती है, जबकि अधिक कीमती शुद्ध घी वाली फीणी केवल सर्दियों में तैयार की जाती है. वे कहते हैं कि मकर संक्रांति के दौरान इसकी मांग चरम पर होती है.

क्या कहते हैं विशेषज्ञ? (What do the experts say?)

एक्सपर्ट्स का मानना ​​है कि GI स्टेटस न सिर्फ फीणी को नकल से बचाएगा, बल्कि स्थानीय कारीगरों को आर्थिक रूप से मज़बूत भी करेगा. शर्मा आगे कहते हैं कि सही ब्रांडिंग और सरकारी मदद से यह 800 साल पुरानी मिठाई ग्लोबल खाने के नक्शे पर अपनी सही जगह बना सकती है.

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Sohail Rahman

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