दीनू पराशर की रिपोर्ट, Rajasthan News: बयाना कस्बे में स्थित प्राचीन उषा मंदिर, जो न केवल धार्मिक आस्था का केंद्र है, बल्कि भारत की ऐतिहासिक और सांस्कृतिक विरासत का अनमोल हिस्सा भी है, आज जर्जर हालत में पहुंच चुका है। बताया जाता है कि यह मंदिर करीब 6000 वर्ष पुराना है और पुरातत्व विभाग के संरक्षण में होने के बावजूद इसकी देखरेख में भारी लापरवाही बरती जा रही है। यह मंदिर पौराणिक प्रेम कथा से जुड़ा है, जिसमें बाणासुर की पुत्री उषा और श्रीकृष्ण के पौत्र अनिरुद्ध के प्रेम, संघर्ष और विवाह की कथा बसती है।
रानी चित्रलेखा, जो उषा की सहेली थीं, ने इस मंदिर का निर्माण 956 ईस्वी में प्रतिहार वंश के शासनकाल में करवाया था। मंदिर में गरुड़ देव की नीलम रत्न से बनी दुर्लभ मूर्ति सहित राधा-कृष्ण की मूर्तियां भी स्थापित हैं।
ऐतिहासिक घटनाओं की साक्षी
मुगल काल में इस मंदिर को आंशिक रूप से मस्जिद में बदल दिया गया था। बाद में भरतपुर के राजा सूरजमल जाट ने इसका जीर्णोद्धार कराया। यह मंदिर 96 स्तंभों पर बना है और कहा जाता है कि बयाना में सबसे पहले सूर्य की किरणें इसी मंदिर पर पड़ती हैं। हालांकि मंदिर को पुरातत्व विभाग के संरक्षण में रखा गया है, लेकिन उसकी स्थिति देखकर ऐसा प्रतीत नहीं होता। दीवारों पर दरारें, टूटी हुई मूर्तियां और साफ-सफाई की कमी यह दिखाती है कि प्रशासन की ओर से पर्याप्त ध्यान नहीं दिया जा रहा है।
स्थानीय लोग और इतिहास प्रेमी मंदिर को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने की मांग कर रहे हैं, लेकिन अब तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है।
सांस्कृतिक धरोहर का नुकसान
यदि समय रहते मंदिर के संरक्षण के लिए आवश्यक कदम नहीं उठाए गए, तो यह न केवल एक महत्वपूर्ण ऐतिहासिक स्मारक का नुकसान होगा, बल्कि हमारी सांस्कृतिक विरासत का भी अपमान होगा। यह मंदिर आने वाली पीढ़ियों को हमारे इतिहास और परंपरा से जोड़ने का एक अमूल्य माध्यम है। सरकार और पुरातत्व विभाग को चाहिए कि वे जल्द से जल्द उषा मंदिर की मरम्मत और संरक्षण की दिशा में कदम उठाएं। इसके साथ ही इसे राष्ट्रीय पर्यटन मानचित्र पर स्थान दिलाने के लिए प्रयास किए जाएं ताकि यह धरोहर न केवल बची रहे, बल्कि पूरी दुनिया को इसकी ऐतिहासिक गरिमा का अनुभव हो सके।

