Corbett Tiger Resever and Fireflies: उत्तराखंड के कॉर्बेट टाइगर रिजर्व (Corbett Tiger Reserve) में कभी रात को जंगल को रोशन करने वाले सुंदर जुगनुओं की संख्या में तेजी से गिरावट देखने को मिली है. ऐसा माना जा रहा है कि कॉर्बेट टाइगर रिजर्व से जुगनु तेज़ी से खत्म होते जा रहे हैं. प्रकृति की इस धड़कन के कमजोर होने पर चिंता जताते हुए, अब कॉर्बेट प्रशासन और वर्ल्ड वाइड फंड फॉर नेचर यानी (WWF) ने मिलकर इन खूबसूरत जीवों के संरक्षण पर एक चिंता जाहिर की है और साथ ही शोध शुरू करने की तैयारी भी शुरू कर दी है.
कॉर्बेट टाइगर रिजर्व के निदेशक ने दी जानकारी:
उत्तराखंड के कॉर्बेट टाइगर रिजर्व के निदेशक डॉ. साकेत बडोला ने इस विषय पर जानकारी देते हुए बताया कि एक समय था जब इस क्षेत्र की हरियाली असंख्य जुगनुओं की रोशनी से रातों को जगमग कर करती थी. लेकिन, अब इनकी संख्या में भारी कमी देखने को मिली है. इस बदलाव की वजह को समझने केलिए हमें वैज्ञानिक अध्ययन को जल्द ही शुरू करना होगा.
घटते जुगनुओं का मतलब ‘बीमार धरती’:
जुगनू पर्यावरण के स्वास्थ्य का एक महत्वपूर्ण संकेतक (Indicator) होते हैं. विशेषज्ञों के मुताबिक, जुगनुओं की संख्या का कम होना इस बात का संकेत देता है कि हमारी धरती धीरे-धीरे बीमार होती जा रही है. बढ़ता प्रदूषण, वाहनों की रोशनी, जंगलों की कटाई और खेती में कीटनाशकों का ज्यादा इस्तेमाल करने से उनके प्राकृतिक आवास और जीवन-चक्र को बुरी तरह प्रभावित किया जा रहा है.
WWF की कंजर्वेशन पार्टनर ने क्या बताया?:
इस मामले में WWF की कंजर्वेशन पार्टनर हेड, नेहा सिन्हा ने जानतकारी देते हुए बताया कि जुगनू, तितलियां और मधुमक्खियां पारिस्थितिकी (Ecology) की आत्मा होते हैं. इनका गायब होना प्रकृति के असंतुलित होने का सीधा संकेत देता है. जुगनुओं को अंधेरे, नमी और लंबी घास वाले शांत माहौल की काफी ज्यादा ज़रूरत होती है, लेकिन कृत्रिम रोशनी उनके शांत माहौल को पूरी तरह से प्रभावित कर देती है. साथ ही उन्होंने आगे बताया कि रात में ज़्यादा रोशनी होने पर वे अपनी प्राकृतिक चमक बंद कर देते हैं.
विशेषज्ञों की एक टीम मिलकर करेगी काम:
इस पहल के ज़रिए, विशेषज्ञों की एक टीम कीट वैज्ञानिकों (Entomologists) के साथ मिलकर यह पता लगा पाएगी कि कॉर्बेट जैसे संरक्षित क्षेत्र को जुगनुओं के लिए दोबारा से कैसे सुरक्षित और अनुकूल बनाया जा सकता है.

