Pomfret Fish: पोमफ्रेट मछली महंगी होने के साथ-साथ लोगों के लिए एक बड़ी मुश्किल बनती जा रही है. दरअसल, ज्यादा मछली पकड़ने के साथ-साथ जलवायु परिवर्तन से समुद्र का गर्म होना और प्रदूषण जैसे कारणों की वजह से इन मछलियों की संख्या तेज़ी से घटती जा रही है. जिसकी वजह से इन मछलियों के दाम आसामन को भी छूने लगे, खासकर महाराष्ट्र जैसी जगहों पर जहां इसे ‘स्टेट फिश’ के तौर पर लोग बड़े ही पसंद से खाते हैं.
आजीविका पर गहराता संकट
मछुआरों को अब गहरे समुद्र में जाना पड़ता है, जिससे उनका खर्च और भी ज्यादा बढ़ जाता है और मुनाफा में भारी कमी देखने को मिलती है.
थाली से गायब होती मछली
किसी समय में जो मछली कभी तटीय इलाकों का मुख्य भोजन हुआ करती थी, वह अब केवल ‘फाइव स्टार होटलों’ का तेज़ी से हिस्सा बनती जा रही है.
प्रजनन चक्र में बाधा (Interruption in reproductive cycle)
मछली के आकार और वजन में कमी आने का सीधा मतलब यह है कि उनके अंडे देने की क्षमता फिलहाल घटती जा रही है, जिससे भविष्य की खेप (Stocks) खतरे में पड़ गई है.
कैसे बनें जिम्मेदार उपभोक्ता?
मानसून के दौरान जून से अगस्त तक के महीने में जब मछली पकड़ने पर प्रतिबंध होता है, तब समुद्री मछली खरीदने से बचने की ज्यादा कोशिश करनी चाहिए. इसके साथ ही बाजार में 300 ग्राम से कम वजन वाली ‘बेबी पोमफ्रेट’ को किसी भी कीमत पर नहीं खरीदें क्योंकि मांग कम होगी तो मछुआरे इन्हें पकड़ना बंद कर देंगे.
इसके अलावा पोमफ्रेट के बजाय अन्य स्थानीय मात्रा में उपलब्ध मछलियों जैसे बांगड़ा या फिर तारली को ही चुनें ताकि पोमफ्रेट पर दबाव कम हो सके.
सिल्वर पोमफ्रेट को बचाना है ज़रूरी
सिल्वर पोमफ्रेट का अस्तित्व बचाना केवल सरकार की जिम्मेदारी नहीं है, बल्कि यह मछुआरों और उपभोक्ताओं की भी बड़ी और महत्वपूर्ण जिम्मेदारी होनी चाहिए. याद रखें, अगर समय रहते हुए सही कदम नहीं उठाए गए तो, तो आने वाली पीढ़ियाँ इस मछली को केवल किताबों और रील्स में ही देख सकेंगी.

