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Ramdarsh ​​Mishra: रामदरश मिश्र ने साहित्य की हर विधा में लिखा, कविताओं ने पाठकों को लुभाया तो उपन्यासों ने दिया संदेश

Ramdarsh ​​Mishra Literary Writing: गद्य और पद्य दोनों विधा में अपनी कलम चलाकर पाठकों के दिलों अद्वितीय जगह बनाने वाले साहित्यकार रामदरश मिश्र सदा अमर रहेंगे.

Published by JP Yadav

Who is Ramdarsh ​​Mishra, Ramdarash Mishra literary writing: रामदरश जी की कविताओं का संसार व्यापक है. जीवन का ऐसा कौन सा रंग होगा जो आपकी कविताओं में उपस्थित न हो. कवि के आत्मसंघर्ष की खुशबू तो इन कविताओं से आती ही है, वसंत, वर्षा, ग्रीष्म और ऋतुओं के सौंदर्यबोध, मानवीय राग- अनुराग, सुख-दुख-उल्लास, बाढ़, आपदा विभीषिका से गुज़रते गांव-समाज, जीव-निर्जीव सब तरह की इकाइयों से कवि ने अपनी रचनात्मकता का आधार निर्मित किया है. उसमें नए संवत्सर की लय है, जिजीविषा, संघर्ष की दास्तान है तथा स्वाभिमानी मनुष्य तथा शोषण-अन्याय व पक्षपातरहित समाज के निर्माण का स्वप्न और संकल्प है.

सभी विधा में किया लेखन (Multi-genre writing)

लगभग सात दशकों में आपसे शायद ही कोई विधा छूटी हो. विधाओं की पारस्परिकता को आपने न केवल जिया बल्कि ऐसी कोई हदबंदी अपने निकट नहीं बनने दी कि अमुक विधा साहित्य में किसी से कमतर है. सातवें दशक में आप कहानी और उपन्यास रचना की ओर मुड़े तथा ‘पानी के प्राचीर’ 1961 (Pani Ke Prachir upanyas)  से कथा की दुनिया में प्रवेश किया. यह आंचलिक उपन्यासों का दौर था. यह उपन्यास आपके कथा – संसार में पहला बड़ा औपन्यासिक हस्तक्षेप माना गया. उसके आठ साल बाद आए उपन्यास ‘जल टूटता हुआ’ ने आपको कथा लेखन में व्यापक ख्याति दी.जिस आंचलिकता का पथ रेणु जैसे कथाकार पहले ही प्रशस्त कर चुके थे उसे अपने उपन्यासों में रामदरश मिश्र ने एक संगति दी. ‘जल टूटता हुआ’ इसकी एक जबर्दस्त रचनात्मक परिणति थी. ‘अपने लोग’ में आपका अपनापन एक ऐसे व्यक्ति के लिए जागता है जो प्रतिभाशाली होते हुए भी उपेक्षा का शिकार बनता है और विक्षिप्ति के कारण विस्मृति के नेपथ्य में डाल दिया जाता है. 9वें दशक में गुजरात के अनुभवों पर आया आपका उपन्यास ‘दूसरा घर’ आपके औपन्यासिक लेखन का एक दूसरा बड़ा मोड़ साबित हुआ. आपके उपन्यासों में मूल्यों की प्रतिष्ठा मिलती है और यह कथानक की कीमत पर नहीं. वक्तव्यों की सूरत में नहीं बल्कि क़िस्सागोई के बहाने सामाजिक-राजनीतिक चारित्रिक पतन पर रोशनी डाली गई है.

साहित्य में संघर्ष की गाथा (Struggle in Literature)

‘बीच का समय’ असुंदर और अशिक्षित पत्नी व पति की कथा है तो ‘सूखता हुआ तालाब’ अंधविश्वासों से जूझते गांवों की कहानी है. ‘अपने लोग’ में व्यवस्था की ज्यादतियों से पागल उमेश के दर्द व प्रगतिशील विचारों के अनुगामी प्रमोद की कहानी कही गई है. प्रमोद यथास्थितिवादिता को तोड़ने की पहल करता है, जिसमें लेखक का अपना चेहरा भी काफी दूर तक पहचाना जा सकता है. ‘रात का सफ़र’, ‘बिना दरवाजे का मकान’ एवं ‘थकी हुई सुबह’ स्त्री जीवन के यथार्थ और संघर्ष की कथा कहते हैं तो बाद के उपन्यासों- ‘परिवार’, ‘बचपन भास्कर का’, ‘एक बचपन यह भी’ , ‘एक था कलाकार आदि में पारिवारिक कथाओं को भी विन्यस्त किया गया है। लेखक स्त्री चरित्रों को अपने विचारों से ताकत देता है। आपके उपन्यासों में आए अनेक स्त्री चरित्र- मंजरी (अपने लोग) बदमी, लवंगी (जल टूटता हुआ), दीपा (बिना दरवाजे का मकान), रूपमती (आकाश की छत), लक्ष्मी (थको हुई सुबह),चेतना (एक बचपन यह भी) आदि आपके इस नैतिक समर्थन की गवाही देते हैं.

राम दरश का लेखन मनुष्यता के विश्वास को जगाने का उपक्रम है (Ramdarash Mishra writings on humanity)

सामाजिक न्याय के प्रति भी मिश्र जी की लेखनी उदार रही है. आपके दलित पात्रों में न्याय की लड़ाई लड़ने की चेतना दिखती है.’जल टूटता हुआ’ में हरिजनों में यह चेतना मौजूद है जो सामंती शक्तियों से लोहा लेते हैं. ‘आकाश की छत’ में दलित जन कामरेड जगत की अगुवाई में लामबंद होते हैं. ‘बीस बरस’ उपन्यास की युवती पढ़ लिख कर अध्यापिका बनती है और सवर्णों की लफंगई को मुंहतोड़ उत्तर देती है. इस तरह तलाश करें तो आपके उपन्यासों – कहानियों में अनेक ऐसे पात्र आते हैं जो समय के साथ अपनी वर्गीय स्थिति के सतर्क और सचेत दिखते हैं. इस तरह रामदरश मिश्र का संपूर्ण लेखन मनुष्यता तथा मनुष्य के प्रति मरते हुए विश्वास को जगाने का उपक्रम है.

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आलोचनात्मक पुस्तकें भी लिखीं  – Ramdarash Mishra critical books

रामदरश मिश्र का सर्जनात्मक फलक सुविस्तृत होने के कारण आपके आलोचनात्मक विवेचनात्मक लेखन पर कम ध्यान गया है पर आप साहित्य के विगत सात दशकों के बहुत ही सघन अध्येता रहे हैं तथा समय-समय पर कथा कविता, उपन्यास के परिदृश्य पर अपनी समीक्षात्मक कलम भी चलाई है. विभिन्न विधाओं में रचना करते हुए भी आप हिंदी उपन्यास, हिंदी कहानी, हिंदी कविता, छायावाद व आधुनिक कविता के विभिन्न सर्जनात्मक संदर्भों पर लिखते रहे. आपकी आलोचनात्मक पुस्तकें ‘साहित्य, संदर्भ और मूल्य’ ‘हिंदी उपन्यास एक अंतर्यात्रा’, ‘हिंदी कहानी अंतरंग पहचान’, ‘हिंदी कविता आधुनिक आयाम’, छायावाद का रचनालोक’ व ‘आधुनिक कविता : सृजनात्मक संदर्भ आदि हिंदी आलोचना में एक मानक स्थान रखती है.

संस्मरण में भी मिलता है जादुई लेखन (Magical writing)

हजारी प्रसाद द्विवेदी के निबंधों की चारुता ने आपको धीरे-धीरे निबंध के पथ पर भी प्रशस्त किया जिसके फलस्वरूप ‘कितने बजे हैं’, ‘बबूल और कैक्टस’, ‘घर परिवेश’ ,’छोटे छोटे सुख’ तथा मैं लौट आया हूं मेरे देश जैसे संग्रह आए तो आपकी आत्मकथा ‘सहचर है समय’ ‘बच्चन’ की आत्मकथा के बाद सर्वाधिक चर्चा में रही. यह समय -समय पर आई आपकी आत्मकथा के कई खंडों – ‘जहां मैं खड़ा हूं’, ‘रोशनी की पगडंडियाँ’, ‘टूटते बनते दिन’, ‘उत्तर पथ’ व ‘फ़ुरसत के दिन’ का एकीकृत रूप है. आपके संस्मरणों का तो कहना ही क्या! ‘स्मृतियों के छंद’, ‘अपने अपने रास्ते’, ‘एक दुनिया अपनी’ ,सुरभित स्मृतियां तथा ‘सर्जना ही बड़ा सत्य है’ में आपने अपने समय की अनेक वरेण्य विभूतियों- हजारी प्रसाद द्विवेदी, त्रिलोचन, विद्यानिवास मिश्र, धर्मवीर भारती, ठाकुरप्रसाद सिंह, रघुवीर चौधरी, उमाशंकर जोशी, देवीशंकर अवस्थी, सावित्री सिन्हा, भवानी प्रसाद मिश्र, शमशेर, प्रभाकर माचवे, जैनेंद्र कुमार, गिरिजा कुमार माथुर, विवेकी राय, मदनेश जी और असमय ही विक्षिप्त हो गए प्रतिभाशाली कवि विद्याधर को याद किया तो- विदेशी यात्राओं के अनुभवों को आपने ‘घर घर तक’ और ‘देश यात्रा’ में समेटा है. पिछले कुछ वर्षों आप डायरी लेखन भी करते रहे हैं. जो बातें आत्मकथा व संस्मरणों की पकड़ से छूट – छूट जाती रही हैं, वे तमाम घटनाएं व प्रसंग आपकी डायरियों में आए हैं तथा ऐसी डायरियों के अब तक छः संग्रह आ चुके हैं – ‘आते जाते दिन’, ‘आस – पास’, ‘बाहर भीतर’, ‘विश्वास जिंदा है’, ‘मेरा कमरा’ व सुख दुःख के राग. लगभग डेढ़ दर्जन कविता संग्रह, 15 उपन्यास, कई कहानी- संग्रह व प्रभूत गद्यलेखन के रचयिता रामदरश मिश्र की रचनावली 14 खडों में आज से दो दशक पहले आ चुकी है तथा इसमें भी अब तक के लेखन के कई खंड और जुड़ेंगे-जुड़ते रहेंगे.

यह भी पढ़ें:  Ramdarash Mishra: कुछ फूल कुछ कांटे हमने आपस में बांटे… अस्त हुआ साहित्य का ‘सूरज’

JP Yadav

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