Nithari Case: नोएडा के बहुचर्चित निठारी कांड से जुड़ा एक बड़ा कानूनी अपडेट सामने आया है। सर्वोच्च न्यायालय(SC) ने इस मामले में सीबीआई की अपीलों को खारिज कर दिया है। इससे केंद्रीय जांच एजेंसी यानी सीबीआई को बड़ा झटका लगा है। इसके साथ ही अब यह माना जा रहा है कि निठारी कांड का कानूनी अध्याय लगभग समाप्त हो गया है।
मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई, न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा और न्यायमूर्ति विनोद चंद्रन की तीन सदस्यीय पीठ ने सीबीआई की अपीलों को खारिज करते हुए इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले को बरकरार रखा। इस फैसले में उच्च न्यायालय ने सुरेंद्र कोली और मनिंदर सिंह पंढेर को सभी मामलों में बरी कर दिया था।
उच्च न्यायालय का फैसला और सर्वोच्च न्यायालय की मुहर
16 अक्टूबर, 2023 को इलाहाबाद हाई कोर्ट ने दोनों दोषियों को कई मामलों में बरी कर दिया था। उच्च न्यायालय ने सुरेंद्र कोली को 12 मामलों में और मनिंदर सिंह पंढेर को दो मामलों में सुनाई गई मौत की सजा को रद्द कर दिया था। यह निर्णय गाजियाबाद की सीबीआई अदालत के उस फैसले को पलटते हुए सुनाया गया, जिसमें निठारी कांड में दोनों को दोषी ठहराते हुए मौत की सजा सुनाई गई थी।
उच्च न्यायालय की खंडपीठ, जिसमें न्यायमूर्ति अश्विनी कुमार मिश्रा और न्यायमूर्ति एसएचए रिजवी शामिल थे, ने 14 याचिकाओं पर एक साथ सुनवाई करते हुए यह ऐतिहासिक फैसला सुनाया। अदालत ने कहा था कि इस मामले में प्रत्यक्षदर्शियों के अभाव और केवल परिस्थितिजन्य साक्ष्यों के आधार पर दोष सिद्ध नहीं किया जा सकता।
अदालत में क्या रखा गया था बचाव पक्ष का पक्ष
सुप्रीम कोर्ट की वकील मनीषा भंडारी ने सुरेंद्र कोली और मनिंदर सिंह पंढेर की ओर से अपना पक्ष रखते हुए कहा कि इस मामले में न तो कोई प्रत्यक्षदर्शी गवाह है और न ही कोई ठोस वैज्ञानिक साक्ष्य जो मौत की सज़ा को उचित ठहरा सके। उन्होंने यह भी तर्क दिया कि पर्याप्त सबूतों के बिना मौत की सज़ा देना न्याय के सिद्धांतों के विरुद्ध है।
अब केवल एक मामले में मौत की सज़ा बरकरार है
हालांकि, यह स्पष्ट किया गया है कि रिम्पा हलधर हत्याकांड में सुरेंद्र कोली की मौत की सज़ा अभी भी बरकरार है। इस विशेष मामले में हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट दोनों ने मौत की सज़ा को उचित ठहराया है। इसके अलावा, एक अन्य मामले में देरी के आधार पर सुरेंद्र कोली की मौत की सज़ा को आजीवन कारावास में बदल दिया गया है।

