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कारगिल युद्ध में पाकिस्तान के दांत कर दिए थे खट्टे, आखिरी सांस तक लड़ते रहे कैप्टन अनुज, बहादुरी की दास्तां सुन रोंगटे हो जाएंगे खड़े

Captain Anuj Nayyar: 'टाइगर ऑफ द्रास' के नाम से मशहूर कारगिल युद्ध के नायक कैप्टन अनुज नैयर को उनकी बहादुरी के लिए मरणोपरांत 'महावीर चक्र' से सम्मानित किया गया है। 24 साल के इस जवान ने सिर पर कफन बांधकर दुश्मनों से जंग लड़ी थी।

Published by Sohail Rahman

Captain Anuj Nayyar: आज 7 जुलाई है और आज ही के दिन 1999 में कारगिल युद्ध में कैप्टन अनुज नैयर शहीद हो गए थे। उनकी शहादत पर आज हम उनकी बहादुरी की चर्चा करेंगे। ‘टाइगर ऑफ द्रास’ के नाम से मशहूर कारगिल युद्ध के नायक कैप्टन अनुज नैयर को उनकी बहादुरी के लिए मरणोपरांत ‘महावीर चक्र’ से सम्मानित किया गया है। 24 साल के इस जवान ने सिर पर कफन बांधकर दुश्मनों से जंग लड़ी थी। इस दौरान दुश्मन देश की तरफ से आए ग्रेनेड की चपेट में आने से 7 जुलाई 1999 को वे शहीद हो गए थे। कैप्टन की कहानी आज भी देश के युवाओं को बहादुर बनने की प्रेरणा देती है।

कैप्टन अनुज नैयर का कब हुआ जन्म?

आपको जानकारी के लिए बता दें कि, कैप्टन अनुज नैयर का जन्म 28 अगस्त 1975 को दिल्ली में हुआ था। उनके पिता एस.के. नैयर प्रोफेसर थे और मां मीना नैयर दिल्ली विश्वविद्यालय की लाइब्रेरी में काम करती थीं। उन्हें बचपन से ही सेना और बंदूकों में काफी दिलचस्पी थी। उनके दादा सेना में थे और अनुज का उनसे गहरा नाता था। उनके परिजनों की मानें तो वे बचपन से ही बहादुर थे। एक दुर्घटना में वे गंभीर रूप से घायल हो गए थे, इस दौरान अनुज को बिना एनेस्थीसिया दिए 22 टांके लगे थे। उस दौरान एक युवा लड़के की इस हिम्मत को देखकर डॉक्टर भी हैरान रह गए थे।

12वीं के बाद NDA में हुआ चयन

12वीं के बाद पहले प्रयास में ही अनुज का चयन राष्ट्रीय रक्षा अकादमी (एनडीए) के लिए हो गया था। 1993 में उनकी ट्रेनिंग शुरू हुई और 1996 में वे पासआउट हुए। इसके बाद 21 साल की उम्र में 7 जून 1997 को वे आईएमए देहरादून से बतौर सेकंड लेफ्टिनेंट पासआउट हुए। उन्हें 17वीं जाट रेजिमेंट में कमीशन मिला। दो साल बाद कारगिल युद्ध छिड़ गया और उन्हें युद्ध के मैदान में भेज दिया गया। अनुज को कुछ दिन पहले ही लेफ्टिनेंट से कैप्टन के पद पर प्रमोट किया गया था। उन्हें जाट रेजिमेंट की चार्ली कंपनी के साथ कारगिल युद्ध में भेजा गया था।

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कारगिल की प्वाइंट 4875 चोटी पर पाकिस्तान ने कब्जा कर लिया था और इस कंपनी को अपनी जमीन वापस लेने की जिम्मेदारी दी गई थी। कंपनी ने 6 जुलाई को अपना मिशन शुरू किया, लेकिन शुरुआत में ही कंपनी कमांडर गोलियों से घायल हो गए और उन्हें वहां से हटा दिया गया। इसके बाद कंपनी की कमान 23 वर्षीय कैप्टन अनुज नैयर को दी गई।

अंत तक दिखाई बहादुरी

दुश्मन की स्थिति मजबूत थी और वह हमारे सैनिकों पर सीधा हमला करने की स्थिति में था। दुश्मनों के पास ज्यादा मैनपावर और गोला-बारूद था। वहीं, हमारे सैनिकों के पास छिपने की जगह नहीं थी। एक-एक करके टीम के जवान शहीद होते गए, लेकिन टीम का मनोबल कम नहीं हुआ। कैप्टन अनुज भी घायल हो गए, लेकिन उनके खून से लथपथ हाथ बंदूक की ट्रिगर से हटने को तैयार नहीं थे। उन्होंने एक-एक करके नौ दुश्मन सैनिकों को मार गिराया और तीन बड़े बंकरों को नष्ट कर दिया।

सुबह के 5 बज रहे थे और दुश्मन आसानी से भारतीय सैनिकों को देख सकता था। कैप्टन के साथी ने उन्हें आगे बढ़ने से रोका, लेकिन 23 वर्षीय अनुज नैयर ने आगे बढ़ने का फैसला किया। अनुज नैयर ने सिर पर कफन बांधकर दुश्मन के चौथे बंकर को नष्ट करने के लिए छलांग लगाई। इस दौरान एक ग्रेनेड सीधे उन पर लगा और वे शहीद हो गए। उनकी बहादुरी के लिए उन्हें मरणोपरांत ‘महावीर चक्र’ से सम्मानित किया गया। साथ ही द्रास सेक्टर की सुरक्षा के लिए लड़ते हुए उनकी शहादत के कारण उन्हें ‘टाइगर ऑफ द्रास’ उपनाम दिया गया।

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