हमारी राष्ट्रीय धरोहर और गर्व का प्रतीक ‘वंदे मातरम’, जिसे हर भारतीय नागरिक सम्मान के साथ गुनगुनाना जानता है लेकिन सवाल यह उठता है कि अबू आज़मी इसे गुनगुनाने से क्यों इनकार कर रहे हैं? क्या उनके धार्मिक मान्यताओं में वंदे मातरम का गायन वर्जित है, या क्या राष्ट्र के धर्म को किसी भी धर्म से ऊपर माना जाना चाहिए? इस बयान ने देशभर में बहस और गर्मागर्मी को जन्म दे दिया है.
अबू आज़मी ने वंदे मातरम को लेकर दिया विवादित बयान
दरअसल, मुंबई में वंदे मातरम को लेकर एक नया विवाद छिड़ गया है. सपा विधायक अबू आज़मी ने वंदे मातरम को लेकर एक विवादित बयान दिया है. आज़मी ने कहा, “कोई भी मुझे वंदे मातरम गाने के लिए मजबूर नहीं कर सकता. किसी भी मुसलमान को वंदे मातरम गाने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता. इस्लाम में धरती और सूरज की पूजा नहीं की जाती; अल्लाह के अलावा किसी की पूजा नहीं की जाती, ” उन्होंने आगे कहा, “जैसे आप नमाज़ नहीं पढ़ सकते, वैसे ही कोई मुसलमान वंदे मातरम नहीं पढ़ सकता.”
गौरतलब है कि मुंबई भाजपा अध्यक्ष अमित साटम ने शुक्रवार सुबह अपने आवास के पास राष्ट्रगीत “वंदे मातरम” के गायन में शामिल होने के लिए सपा विधायक अबू आसिम आज़मी को आमंत्रित किया था. साटम ने अपने अकाउंट से निमंत्रण की एक प्रति साझा करते हुए आज़मी को टैग किया. यहीं से विवाद शुरू हुआ”
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अबू आज़मी ने साटम को कानूनी जवाब देते हुए कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया है कि किसी को राष्ट्रगान गाने के लिए मजबूर करना धार्मिक स्वतंत्रता और अंतःकरण के मौलिक अधिकार का उल्लंघन है. उन्होंने आगे कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने “वंदे मातरम” को राष्ट्रगान “जन गण मन” के समान कानूनी दर्जा और संरक्षण देने की मांग वाली याचिकाओं को खारिज कर दिया है.
आज़मी के जवाब के बाद, भाजपा ने हंगामा शुरू कर दिया. शुक्रवार को अबू आसिम आज़मी के घर के सामने एक मंच पर मंत्री मंगल प्रभात लोढ़ा, मुंबई भाजपा अध्यक्ष अजीत साटम और विधानसभा अध्यक्ष राहिल नार्वेकर ने वंदे मातरम का पाठ किया. बताया जा रहा है कि इसी मंच से कुछ विवादास्पद नारे भी लगाए गए.

