Odisha News: चिकित्सा जगत में सेवाभाव को अक्सर आदर्श माना जाता है, लेकिन ओडिशा की वरिष्ठ डॉक्टर के. लक्ष्मीबाई ने अपने जीवन की जमा पूंजी दान कर इस आदर्श को एक नए आयाम तक पहुंचा दिया है. सौ साल की आयु पूरी करने जा रहीं इस डॉक्टर ने अपने जन्मदिन के अवसर पर 3.4 करोड़ रुपये की राशि एम्स भुवनेश्वर को महिलाओं के कैंसर उपचार केंद्र की स्थापना के लिए देने का फैसला लिया है.
डॉ. लक्ष्मीबाई का यह कदम किसी औपचारिक कोड, नियम या सरकारी आदेश के कारण नहीं, बल्कि उनके भीतर गहरे बसे मानवीय कर्तव्य की भावना से प्रेरित है. उन्होंने अप्रैल 2025 में एक साधारण-सी प्रतिबद्धता पत्र एम्स भुवनेश्वर को सौंपा था, जिसे वह अपने जीवन का मूल्यवान दस्तावेज मानती हैं.
के. लक्ष्मीबाई के कदम की हर तरफ हो रही तारीफ
उन्होंने यह निर्णय वर्षों तक स्वयं तक रखा और इसे अपने सौवें जन्मदिन 5 दिसंबर 2025 पर समाज को देने वाला विशेष उपहार माना था. लेकिन, उनकी इस सद्भावना की चर्चा धीरे-धीरे चिकित्सक समुदाय से पूरे राज्य में फैल गई और हर ओर से प्रशंसा मिलने लगी.
1926 में जन्मी डॉ. लक्ष्मीबाई ओडिशा की प्रारंभिक महिला स्त्रीरोग विशेषज्ञों में से एक रही हैं. वह 1945–50 में एससीबी मेडिकल कॉलेज, कटक की पहली एमबीबीएस बैच की छात्रा थीं. इसके बाद उन्होंने मद्रास मेडिकल कॉलेज से डीजीओ और एमडी किया. 1950 से सुंदरगढ़ जिला अस्पताल में उनकी सेवा यात्रा शुरू हुई, जिसके बाद उन्होंने लंबे समय तक ब्रह्मपुर के एमकेसीजी मेडिकल कॉलेज में काम किया और 1986 में सेवानिवृत्त हुईं.
पंडित जवाहरलाल नेहरू भी कर चुके हैं सम्मानित
चिकित्सा सेवाओं में श्रेष्ठ योगदान के लिए उन्हें पंडित जवाहरलाल नेहरू की ओर से भी सम्मानित किया गया था. परिवार नियोजन के लिए लैप्रोस्कोपिक प्रशिक्षण लेने वाली वह भारत की पहली महिला डॉक्टरों में शामिल थीं और उन्होंने देश में सैकड़ों सफल शल्यक्रियाएं भी की हैं.
अपने लंबे करियर में उन्होंने हजारों महिलाओं का उपचार किया, कमजोर और असहाय मरीजों को नि:शुल्क सेवाएं प्रदान की हैं. आज 100 की उम्र में भी वह ब्रह्मपुर के भाबानगर क्षेत्र में साधारण जीवन जीती हैं.
डॉक्टर के. लक्ष्मीबाई ने और क्या कहा?
दान की सभी औपचारिकताएं पूरी हो चुकी हैं. उनका स्पष्ट कहना है- “यह धनराशि सिर्फ महिलाओं के कैंसर उपचार पर ही खर्च होनी चाहिए. यह दान नहीं, बल्कि मेरे जीवन मिशन की निरंतरता है.”
5 दिसंबर को उनके शताब्दी समारोह के दौरान यह दान औपचारिक रूप से एम्स को सौंप दिया जाएगा. यह एक ऐसी पहल है जो ओडिशा के चिकित्सा इतिहास में सदा दर्ज रहेगी.

